उपेक्षा से त्रस्त बुजुर्ग
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 7 January, 2025 18:04
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उपेक्षा से त्रस्त बुजुर्ग,
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय समाज की एक बड़ी विडंबना को ही रेखांकित कर रहा है कि यदि बच्चे बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल नहीं करते तो उनके नाम हस्तांतरित की गई संपत्ति उनसे वापस ली जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट को यह निर्णय इसलिए देना पड़ा, क्योंकि एक बुजुर्ग महिला ने इस आधार पर बेटे के नाम की गई संपत्ति रद करने की मांग की थी कि उसने संपत्ति हासिल करने के बाद उसकी देखभाल करनी बंद कर दी थी।
उसकी इस मांग पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि माता-पिता की देखभाल न करने पर बच्चों को दी गई संपत्ति वापस नहीं ली जा सकती। यह स्वागतयोग्य है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट कर महिला को राहत दी, लेकिन क्या इससे समाज और विशेष रूप से उन बच्चों को कोई सही संदेश जाएगा, जो मां-बाप की संपत्ति हासिल करने के बाद भी उनकी देखभाल नहीं करते या फिर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं?
यह देखना दयनीय है कि ऐसे मामले उस अधिनियम के बावजूद सामने आ रहे हैं, जो बच्चों पर मां-बाप के भरण-पोषण और कल्याण की जिम्मेदारी डालता है। इस अधिनियम के अस्तित्व में होने के बाद भी ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें बच्चे बुजुर्ग मां-बाप की उपेक्षा करते हैं। ऐसे कुछ मामले अदालतों तक भी पहुंचते हैं।
स्पष्ट है कि सक्षम कानून के बाद भी बुजुर्गों की उपेक्षा का सिलसिला कायम है। ऐसा केवल संयुक्त परिवारों के विघटन और उसके नतीजे में बन रहे एकल परिवारों के चलते ही नहीं हो रहा है, बल्कि पारिवारिक मूल्यों की अनदेखी और संस्कारहीनता के कारण भी हो रहा है।
चूंकि बुजुर्गों की देखभाल की जो जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों और विशेष रूप से उनके बच्चों को उठानी चाहिए, वह नहीं उठाई जा रही है, इसलिए ऐसे बुजुर्ग बढ़ रहे हैं, जिनके बच्चे उनकी परवाह नहीं करते। इस कारण वे उपेक्षा की मार सहते हुए एकाकी जीवन जीते हैं और तमाम कष्ट भोगते हैं।
इसी के चलते पश्चिमी देशों की तरह अपने देश में भी वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं, लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि सभी बुजुर्ग आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि वृद्धाश्रम में रह सकें। यह किसी से छिपा नहीं कि बच्चों की उपेक्षा से त्रस्त और आर्थिक रूप से अक्षम बुजुर्ग दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। चूंकि एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है, इसलिए वृद्धाश्रमों की आवश्यकता बढ़ रही है।
सरकारों को इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सजग होना होगा, लेकिन समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। इसमें सफलता तब मिलेगी, जब शिक्षा और संस्कारों के जरिये भावी पीढ़ी को यह संदेश दिया जाएगा कि बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल उसकी नैतिक जिम्मेदारी है।
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