‘सुरवार खुर्द’ के लोग ‘सफाई कर्मी’ को नहीं ‘पहचानते’!

‘सुरवार खुर्द’ के लोग ‘सफाई कर्मी’ को नहीं ‘पहचानते’!

‘सुरवार खुर्द’ के लोग ‘सफाई कर्मी’ को नहीं ‘पहचानते’!

  • -राजस्व गांव बन्नी में गंदगी का अम्बार, सफाई व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त, सफाई कर्मी कर रहें साहबों के घरों की सफाई और खिला रहें बच्चे

बस्ती। जिले के 80 फीसद गांव वाले अपने सफाई कर्मी को पहचानते तक नहीं। अधिकांश सफाई कर्मी या तो मौज मस्ती करते या फिर नेतागिरी, जब से सरकार ने इन्हें राज्य कर्मचारी का दर्जा दिया, तब से इन लोगों को सफाई करना या फिर सफाई कर्मी कहलाना पसंद नहीं। आधे से अधिक सफाई कर्मी गांव की सफाई छोड़कर साहबों के घरों और कार्यालयों की सफाई करने में लगे हैं, भले ही चाहें गांव में गंदगी के चलते सक्रामक बीमारी फैल रही है, इनके सेहत पर कोई फर्क नहीं। सूरज चक्रवर्ती नामक सफाई कर्मी तो पूरा जिला ही नहीं प्रदेश के अन्य लोग भी जानते हैं, अपने कार्यो के प्रति जितनी ईमानदारी और गांव के असहाय लोगों की कूड़ाकरकट बेचकर मदद करने का जो जज्बा श्रीचक्रवर्ती में देखा गया, वह जज्बा अन्य में नहीं दिखाई देता। गांव वाले ऐसे ही सफाई कर्मियों की अपेक्षा करते हैं, गांव वालों का कहना है, कि सफाई कर्मियों के लापरवाह होने के पीछे प्रधानों का बहुत बड़ा हाथ हैं, अगर प्रधान फर्जी हाजीरी लगाना बंद कर दें, तो यह लोग सुधर जाएगें।

रुधौली विकासखंड के ग्राम पंचायत सुरवार खुर्द के राजस्व गांव बन्नी में साफ-सफाई की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। ग्रामीणों के अनुसार, गांव में लंबे समय से गंदगी का अम्बार लगा हुआ है, सफाई कर्मी नियमित रूप से ड्यूटी पर नहीं आते। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रधान की मिलीभगत के कारण सफाई व्यवस्था सिर्फ कागजों में चल रही है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस मामले में मीडिया की ओर से भी अधिकारियों के संज्ञान में लाया जा चुका लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। ग्रामीणों का आरोप है कि सफाई कर्मी संतोष कुमार, प्रधान के विशेष लोगों की कृपा से वर्षों से एक ही ग्राम पंचायत में तैनात हैं, और बिना काम किए वेतन लेते हैं। आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि सफाई कर्मी खुद सफाई न करके महीने में एक-दो बार दिहाड़ी मजदूरों से सफाई कराते हैं। गांव से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर तैनात होने के बावजूद सफाई कर्मी की अनुपस्थिति पर ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं। लगातार वर्षों से एक ही स्थान पर जमे रहने की वजह और सहायक विकास अधिकारी की मौन भूमिका भी ग्रामीणों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। सरकार जहां स्वच्छ भारत मिशन पर लाखों रुपये खर्च कर रही है, वहीं गांव में सफाई की बदहाली सरकारी योजनाओं की पोल खोल रही है। नेताओं द्वारा प्रतीकात्मक कार्यक्रमों में झाड़ू चलाने और फीता काटने के बावजूद गांवों में सफाई का अभाव साफ दिख रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान की निरंकुशता और मिलीभगत के चलते सफाई कर्मी घर बैठे ही वेतन लेने के लिए मजबूर हो गए हैं। जब इस संबंध में सहायक विकास अधिकारी रमेश चंद्र यादव से बात की गई तो उन्होंने बताया कि प्रकरण की जांच कराई जाएगी और दोषी पाए जाने पर नियम के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।

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