नक्सलियों की चुनौती,
- Posted By: Tejyug News LIVE
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- Updated: 7 January, 2025 18:01
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नक्सलियों की चुनौती,
"छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों की ओर से घात लगाकर किए गए हमले में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड यानी डीआरजी के ड्राइवर समेत नौ जवानों का बलिदान यही बता रहा है कि नक्सली गुटों के दुस्साहस का वैसा दमन नहीं हो सका है, जैसा अपेक्षित है। चूंकि वे एक तरह से शासन व्यवस्था को सीधी चुनौती दे रहे हैं, इसलिए उनके सफाए के अभियान इस तरह चलना चाहिए कि उन्हें कहीं भी छिपने का मौका न मिले।
यह ठीक है कि केंद्र सरकार ने यह संकल्प ले रखा है कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद को समाप्त कर दिया जाएगा, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति को सुनिश्चित करते हुए यह भी देखा जाना जरूरी है कि आखिर नक्सलियों को आधुनिक हथियार और विस्फोटक कहां से मिल रहे हैं? गत दिवस उन्होंने जिस विस्फोटक का इस्तेमाल कर डीआरजी की गाड़ी को निशाना बनाया, वह इतना शक्तिशाली था कि जवानों के चिथड़े उड़ गए और वाहन के परखच्चे उड़कर पेड़ पर जा टंगे।
यदि यह मान लिया जाए कि नक्सली उगाही और वन संपदा के दोहन के जरिये पैसा जुटा लेते हैं, तो भी प्रश्न यह उठता है कि आखिर वे आधुनिक हथियार कहां से हासिल कर ले रहे हैं? यह तो सामने आता ही नहीं कि उन्हें घातक हथियारों की आपूर्ति कौन करता है? आखिर क्या कारण है कि तमाम नक्सलियों को मार गिराने और उनके गढ़ माने जाने वाले इलाकों में विकास के तमाम कार्यक्रम संचालित किए जाने के बाद भी उनकी ताकत कम होने का नाम नहीं ले रही है?
नक्सली अपने खिलाफ जारी अभियान के बीच जिस तरह रह-रहकर सुरक्षा बलों को निशाना बनाने और उन्हें क्षति पहुंचाने में समर्थ हो जाते हैं, वह चिंता का कारण है। नक्सली गुटों में भर्ती होने वालों की उल्लेखनीय कमी न आने से यह भी लगता है कि आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के बीच उनकी पकड़ अभी इतनी ढीली नहीं पड़ी है कि उनकी जड़ें उखड़ती दिखें।
ऐसे में उनके खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान को और धार देने के साथ ही उन कारणों का पता लगाकर उनका निवारण करना भी जरूरी है, जिनके चलते वे लोगों का समर्थन हासिल करने में समर्थ हैं। निःसंदेह नक्सलवाद एक विषैली-विजातीय विचारधारा है, लेकिन नक्सलियों को जड़-मूल से समाप्त करने के लिए उनसे विचारधारा के स्तर पर भी लड़ा जाना आवश्यक है।
इससे ही नक्सलियों और उन्हें वैचारिक खुराक देने वालों के इस झूठ का पर्दाफाश किया जा सकता है कि वे वंचितों के उन अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, जो उनसे छीने जा रहे हैं। इस झूठ को बेनकाब करने के लिए यह भी जरूरी है कि आदिवासियों के नैसर्गिक अधिकार बाधित न होने पाएं। इससे ही उनका भरोसा हासिल किया जा सकता है और उन्हें नक्सलियों से दूर किया जा सकता है।
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