एक भाजपाई ने दूसरे भाजपाई को लगाया 50 लाख का चूना

एक भाजपाई ने दूसरे भाजपाई को लगाया 50 लाख का चूना

एक भाजपाई ने दूसरे भाजपाई को लगाया 50 लाख का चूना

बस्ती। यह देश के उन गरीब निवेशकों का दुर्भाग्य रहा है, कि सभी चिट फंड कंपनियों ने कभी पैसा दोगुना के नाम पर तो कभी आवास का सपना दिखाकर लूटा, इन लोगों का पैसा न सकार वापस करा पाई और न्यायालय ही कुछ कर पाई, न्यायालय ने तो सुबर्तो राय जैसे लोगों को जेल की हवा तो खिला दी लेकिन सरकार कुछ नहीं पाई, यहां तक कि लाइसेंस देने वाला विभाग और आरबीआई भी कुछ खास नहीं कर पाई। किस तरह एक गरीब व्यक्ति एक-दो रुपया जुटाकर इस आस में जमा करता है, कि एक न एक दिन उसके घर होने का सपना अवष्य पूरा होगा। इनके सपने तब टूटते हैं, जब इन्हें पता चलता है, कंपनी के लोग तो फरार हो गए। गम में कई दिनों तक यह लोग सो भी नहीं पाते। भोजन भी ठीक से नहीं कर पाते, लेकिन ठगी करने वालों को इससे क्या लेना देना? पूर्वंाचल में गरीबों का पैसा लूटने वालों ने गोरखपुर का अपना केंद्र बनाया, इसी गोरखपुर से एक दर्जन से अधिक चिट फंड कंपनी अरबों रुपया लेकर फरार हो गई। इसी कड़ी में टाइम सिटी कंपनी का नाम भी जुड़ गया, इन्होंने भी अपना केंद्र गोरखपुर को बनाया और करोड़ों रुपया लेकर चंपत हो गए। जितने भी चिट फंड कंपनियां फरार हुई, उन कंपनियों का संबंध किसी न किसी रुप में सत्ताधारी नेताओं से अवष्य रहा। आप को जानकर हैरानी होगी कि बस्ती में टाइम सिटी कंपनी ने एक भाजपाई का लगभग 50 लाख रुपया लूट लिया। भाजपा और अपनी बदनामी के डर से यह खुलकर सामने नहीं आ रहे है। कहने का मतलब एक भाजापाई ने दूसरे भाजपाई को चूना लगाया। पूर्व विधायक के सफाई के बाद अनेक लोग खुलकर सामने आने लगे। दिग्विजय सिंह राना ने लिखा कि मैं भी लोगों का पांच लाख जमा कराया है, अभी तक पैसा नहीं मिला। इस पर जिलाध्यक्ष अखिलेश सिंह ने पूछा कि कितना पैसा टोटल करके बताइए, कहा कि 10 लाख से अधिक। इस पर दीपक सोनी लिखते हैं, कि राना भईया ले लो जल्दी नही ंतो चुनाव आ जाएगा। ओम प्रकाश त्रिपाठी कहते हैं, कि 2.44 लाख जमीन के नाम टाइम सिटी मंे जमा है, अब तो यह सोनहा से कार्यालय बंदकरके भाग गए। समझ में नहीं आ रहा है, कि अब किससे और कहां बात करुं। शशिविंद कुमार उपाध्याय बब्लू लिखते हैं, कि हमारा चार लाख फंसा है। नीरज गुप्त कहते हैं, कि मेरा भी टाइम सिटी में 45 हजार से 50 हजार फंसा हुआ है। सुशील दूबे लिखते हैं, कि इस्तीफा देने से लोगों के द्वारा ठगे गए रुपये वापस आ जाएगें क्या? कहते ळें, लोगों के पैसे कब वापस कर रहे है। संजय पटेल लिखते हैं, कि शुक्लाजी आपने रिजाइन भी दे दिए और सब कुछ पता भी है, कब और किसको कितना दिया गया। राजू गुप्त लिखते हैं, कि आजकल जितनी भी चिटफंड कंपनियां भागी है, उनमें राजनेताओं का बड़ा हाथ रहा। अजय सिंह गौतम लिखते हें, कि सच तो यह है, कि जब आप विधायक थे, तो जनता को जितना आपने इग्नोर किया, उतना कोई जनप्रतिनिधि ने नहीं किया। रिशी कुमार लिखते हैं, कि शुक्लाजी अगर आप इतने बड़े ईमानदार हो तो एफआईआर से पहले क्यों नहीं पत्रकार वार्ता किया? चंद्र प्रकाश लिखते हैं, कि पहले निवेशकों से पैसा जमा कराओ फिर इस्तीफा दे दो।

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