डीएम साहब, भरोसे लायक नहीं रहे सीआरओ, बदल दीजिए!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- ताज़ा खबर
- Updated: 6 June, 2025 20:37
- 314

डीएम साहब, भरोसे लायक नहीं रहे सीआरओ, बदल दीजिए!
-डीएम को पत्र लिखकर जांच अधिकारी सीआरओ कीर्ति प्रकाश के स्थान पर अन्य अधिकारी को जांच अधिकारी बनाए जाने की मांग की
-सीआरओ की भूमिका संदिग्ध मानते कहा कि जांच की प्रक्रिया एक पक्षीय करके क्लीन चिट देने का प्रयास किया जा रहा
-आदित्य श्रीवास्तव ने इस लिए सीआरओ की भूमिका को संदिग्ध बताया, क्यों कि इन्होंने ईओ संजय राव एवं दैनिक भोगी कर्मचारी नित्यानंद सिंह को अपनी जांच रिपोर्ट में आंशिक रुप से दोषी माना
-जब भी नगर पंचायत या पालिका के भ्रष्टाचार की जांच होती तो उसमें जांच अधिकारी हमेशा भ्रष्टाचारियों के दबाव में रहते, दबाव राजनैतिक और पैसे का भी रहता
-यही कारण हैं, कि जांच अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जाती रही, जांच अधिकारियों के बदलने तक की बात कही जाती
-पहले रुधौली की जांच के मामले तत्कालीन सीआरओ संजीव ओझा पर आरोप लगे और अब हर्रैया नगर पंचायम के जांच के मामले में वर्तमान सीआरओ कीर्ति प्रकाश पर आरोपियों को बचाने का आरोप लगा
-जांच अधिकारी हो तो तत्कालीन एडीएम और वर्तमान आईएएस अधिकारी राकेश शुक्ल जैसा, मंत्री और डीएम तक नहीं सुनी, अवकाश पर चले गए, लेकिन फर्जी भुगतान नहीं किया
बस्ती। सवाल उठ रहा है, कि आखिर जांच अधिकारी की जांच से शिकायतकर्त्ता क्यों नहीं संतुष्ट रहता? क्यों शिकायतकर्त्त जांच अधिकारी पर ही आरोप लगाते हुए उनके स्थान पर किसी अन्य अधिकारी को जांच अधिकारी बनाने की अपील करता है? शिकायकर्त्ताओं का संतुष्ट न होने के पीछे तीन कारण हो सकता है, पहला शिकायत का गलत होना दूसरा जांच अधिकारी पर राजनैतिक दबाव और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण जांच अधिकारी को ही प्रभावित करना माना जाता है। प्रभावित करने का मतलब सिर्फ और सिर्फ धन से माना जाता है। यहां पर भ्रष्ट जांच अधिकारियों के आगे शिकायतकर्त्ता पिस कर रह जाता है। उसके पास न तो इतनी शक्ति और न धन ही होता है, कि वह भ्रष्टाचारियों से अधिक पैसा देकर जांच अधिकारी को खरीद सके। जांच अधिकारियों को तो हमेशा भ्रष्टाचारी ही खरीद पाते हैं, क्यों कि उनके पास पावर और मनी दोनों रहता है। एक शिकायतकर्त्ता की मदद करने के लिए कोई नेता आगे नहीं आता, लेकिन भ्रष्टाचारियों की मदद जिले से लेकर लखनउ तक नेता करतें है, और नेता यंूही बिना लाभ के किसी की मदद नहीं करते। अधिकांश जांच अधिकारी पैसे के लालच में गलत रिपोर्ट लगाने को तैयार हो जाते हैं, क्यों कि उन्हें अच्छी तरह मालूम रहता है, कि उनका कुछ नहीं होगा, जिस दिन गलत रिपोर्ट लगाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होने लगेगी, उस दिन शिकायतकर्त्ता संतुष्ट नजर आएगा। कहने का मतलब बहुत कम ऐसे जांच अधिकारी होते हैं, जो नहीं बिकतें है। कभी-कभी उचाधिकारियों का भी दबाव जांच अधिकारी पर रहता है, लेकिन ईमानदार और अच्छा जांच अधिकारी उसे माना जाता हैं, जो दबाव के बीच अपना काम ईमानदारी से करें। इसके लिए तत्कालीन एडीएम और वर्तमान आईएएस अधिकारी राकेश शुक्ल को हमेशा याद किया जाएगा, जिन्होंने मंत्री और डीएम तक के दबाव के आगे नहीं झूके, रास्ता अवष्य निकाल लिया। उन्होंने तत्कालीन डीएम से कहा कि हम दस दिन के लिए अवकाश पर चले जाते हैं, आप किसी अन्य को एडीएम का प्रभार दे दिजीए, वह आप का और मंत्री की इच्छा की पूर्ति कर देगा। हुआ भी वहीं, दस दिन के अवकाश पर चले गए, तब उनके स्थान पर तत्कालीन सीआरओ सोबरन सिंह को एडीएम का प्रभार दिया गया, दो दिन भी नहीं बीता कि उन्होंने दस करोड़ का फर्जी भुगतान कर दिया। मंत्री, डीएम और ठेकेदार तीनों खुश हो गए। सवाल उठ रहा है, कि क्या शिकायतकर्त्ता राकेश शुक्ल जैसे जांच अधिकारी के होने की उम्मीद कर सकता है? हालांकि इन्हें इनकी ईमानदारी का खामियाजा भी भुगतना पड़ा। आईएएस एवार्ड मिलने के बाद भी आज तक इन्हें जिला नहीं मिला, और इनके साथ और इनसे जूनियर लोग कई बार डीएम बन चुके। कहने का मतलब ऐसे लोगों को सरकार भी पसंद नहीं करती। यह सभी लोग जानते हैं, कि जिस तरह सीएमओ बनने के लिए काशन मनी जमा करना पड़ता, ठीक उसी तरह डीएम बनने के लिए भी काशनमनी जमा करना पड़ता, और काषनमनी वही जमा कर पाएगा, जिसने बेईमानी और चोरी से पैसा कमाया हो, राकेश षुक्ल जैसे ईमानदार आईएएस अधिकारी कहां से काषनमनी जमा कर पाएगें?
15 मई 25 को आदित्य श्रीवास्तव ने डीएम सहित शासन को पत्र लिखा, जिसमें हर्रैया नगर पंचायत में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के विरुद्व वित्तीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार संबधित कई पत्र के साथ चेयरमैन के द्वारा पद का दुरुपयोग के साथ नगर पंचायत को वित्तीय क्षति पहुंचाने की कई शिकायतें करने की बात कही गई। साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए उन्हें जांच अधिकारी सीआरओ की ओर से नोटिस जारी हुआ, कहा कि लेकिन नोटिस में किस संदर्भ में साक्ष्य प्रस्तुत करना हैं, यह नहीं बताया गया। कहा कि जांच अधिकारी ने ईओ संजय राव एवं नित्यानंद सिंह की मिलीभगत से प्रस्तुत साक्ष्य के आलोक में जांच न करके आशिक रुप से दोशी मानते हुए जांच रिपोर्ट दे दी। स्पष्ट लिखा कि जांच अधिकारी के रुप में सीआरओ की भूमिका संदिग्ध है। इनके द्वारा निष्पक्ष जांच होना संभव नहीं। कहा कि तथ्य को छिपाया जा रहा है। इस लिए निष्पक्ष जांच के लिए आवष्यक हैं, कि किसी अन्य अधिकारी को जांच अधिकारी बना दिया जाए। 15 दिन बीतने के बाद जब जांच अधिकारी नहीं बदले गए तो इन्होंने फिर डीएम को जांच अधिकारी बदलने की अपील पत्र के जरिए किया।
Comments