बेमेल गठबंधन

बेमेल गठबंधन

बेमेल गठबंधन,                 

 जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का यह कथन विपक्षी गठबंधन के घटकों के बीच आई दरारों को ही रेखांकित कर रहा है कि आइएनडीआइए को भंग कर देना चाहिए। उन्होंने यह टिप्पणी आइएनडीआइए नेताओं के इन बयानों के संदर्भ में की कि गठबंधन तो केवल लोकसभा चुनावों के लिए था।

निःसंदेह ये बयान दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच छिड़ी रार की अनदेखी करने के इरादे से दिए गए हैं, लेकिन इससे बात बनने वाली नहीं है, क्योंकि सब जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद आइएनडीआइए के घटकों ने जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव मिलकर लड़े।

हरियाणा इसका अपवाद रहा था, क्योंकि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से मिलकर चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। अब यही काम आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में किया, क्योंकि वह राजधानी को अपना गढ़ मानती है। कांग्रेस भी दिल्ली की अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ने को तैयार नहीं, क्योंकि उसने लंबे समय तक यहां शासन किया है।

कांग्रेस यह भी जानती है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रति किसी तरह की नरमी बरतने से वह अपनी बची-खुची राजनीतिक जमीन वैसे ही गंवा देगी, जैसे अन्य राज्यों में गंवा चुकी है। यह एक तथ्य है कि आइएनडीआइए के अधिकांश घटक कांग्रेस के वोट बैंक पर कब्जा करके उभरे हैं।

यदि कांग्रेस गठबंधन धर्म के नाम पर सहयोगी दलों के लिए मैदान खाली करती गई तो जिन चंद राज्यों में उसकी प्रभावी उपस्थिति है, वहां भी वह कमजोर हो जाएगी।

आइएनडीआइए के घटक दल भी इससे परिचित हैं कि यदि उन्होंने अपने गढ़ों में कांग्रेस के प्रति उदारता बरती तो वह उनके उस वोट बैंक को अपने पाले में कर सकती है, जिसे उन्होंने कभी उससे ही छीना था। वास्तव में इन्हीं विरोधाभासों के कारण आइएनडीआइए एक बेमेल गठबंधन है।

यह समझा जाना चाहिए कि कांग्रेस और उसके साथी दल एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी नहीं हैं। उनके बीच कुछ साझा है तो केवल यही कि भाजपा को हराना है। चूंकि उनके पास इसके अलावा और कोई साझा उद्देश्य नहीं, इसलिए उनके बीच कोई नीतिगत स्पष्टता भी नहीं।

स्पष्टता के इसी अभाव के चलते आइएनडीआइए अपने लिए कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं तैयार कर सका। आगे इसके आसार भी नहीं, क्योंकि अब नेतृत्व को लेकर खींचतान शुरू हो गई है। हैरानी नहीं कि आने वाले दिनों में आइएनडीआइए में बिखराव और अधिक बढ़े तथा इस गठबंधन का वही हश्र हो, जो इसके पहले अन्य विपक्षी गठबंधनों का हुआ।

अतीत में तीसरे-चौथे मोर्चे के नाम पर न जाने कितनी बार विपक्षी एकता के प्रयास हुए, लेकिन वे एक सीमा से आगे नहीं बढ़ सके। किसी भी गठबंधन की सफलता के लिए यह आवश्यक होता है कि नेतृत्व करने वाले दल का प्रभुत्व हो। आइएनडीआइए में ऐसा नहीं है।

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