बांग्लादेश की लीपापोती

बांग्लादेश की लीपापोती

बांग्लादेश की लीपापोती               

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का यह कहना सच्चाई पर पर्दा डालने जैसा ही है कि हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाएं राजनीति से प्रेरित ही अधिक थीं। ऐसा कहकर बांग्लादेश सरकार केवल भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी गुमराह करने की कोशिश कर रही है, लेकिन वह इसमें सफल होने वाली नहीं है।

इसलिए नहीं, क्योंकि हिंदू-बौद्ध एकता परिषद की शिकायत के आधार पर बांग्लादेश पुलिस ने जो जांच की, उसकी रपट ही अंतरिम सरकार की पोल खोल रही है।

बांग्लादेश पुलिस की जांच रपट के आधार पर अंतरिम सरकार ने यह तो कह दिया कि हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले की अधिकतर घटनाएं सांप्रदायिक नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रकृति की थीं, लेकिन वह यह स्पष्ट करने की स्थिति में नहीं कि आखिर जब 350 मामलों की जांच शेष है तो फिर वह किसी निष्कर्ष पर कैसे पहुंच रही है।

प्रश्न यह भी है कि यदि हत्या, हिंसा, लूट और आगजनी की घटनाएं राजनीति प्रेरित थीं तो क्या उनकी गंभीरता कम हो जाती है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अल्पसंख्यकों के दमन और उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या कहीं अधिक कम है।

इस पर हैरत नहीं कि अपनी पुलिस की रपट के आधार पर अंतरिम सरकार ने इस नतीजे पर भी पहुंचना सुविधाजनक समझा कि 150 से अधिक मामलों में कोई प्रमाण नहीं मिल सके।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश-दुनिया को यह बताने के लिए लालायित है कि उसके यहां सब कुछ सही है, लेकिन इससे यह छिपने वाला नहीं है कि वह अपने यहां के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की घटनाओं पर लीपापोती कर रही है।

बांग्लादेश सरकार कुछ भी कहे, सच यही है कि वहां के हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। भारत सरकार के लिए यही उचित होगा कि वह अल्पसंख्यकों पर हमले के मामले में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के निष्कर्ष को खारिज करे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों की जरूरत पर बल दे।

ऐसा करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस कट्टरपंथी तत्वों और जिहादियों के हाथों में खेल रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि अंतरिम सरकार ने अनेक जिहादियों और आतंकियों को जेल से रिहा किया है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलने वाले चरमपंथी संगठनों को पाबंदी से मुक्त भी किया है।

भारत इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि अंतरिम सरकार ने किस तरह भारत को चिढ़ाने के लिए पाकिस्तान से मेलजोल बढ़ाया है। चिंताजनक केवल यह नहीं है कि यूनुस और उनके सलाहकार भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने का काम कर रहे हैं, बल्कि वे ऐसे कहीं कोई संकेत नहीं दे रहे हैं कि उनकी दिलचस्पी शीघ्र चुनाव कराने की है।

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