आर्थिक अपराधी,

आर्थिक अपराधी,

आर्थिक अपराधी,                       

 यह स्वागतयोग्य तो है कि इंटरपोल की नई व्यवस्था के तहत यह जानने में आसानी होगी कि विदेश भागे आर्थिक अपराधियों ने कहां कितना धन छिपा रखा है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या अवैध तरीके से अर्जित किए गए और विदेश भेजे गए इस काले धन को हासिल करने में भी आसानी होगी?

बात तब बनेगी, जब इस धन को सरलता से हासिल करने की भी राह खुले और साथ ही संबंधित आर्थिक अपराधी को देश भी लाया जा सके। आर्थिक अपराधियों की ओर से विदेश में जमा किए गए धन का पता लगाने के लिए इंटरपोल ने सिल्वर नोटिस जारी करने की जो नई मुहिम शुरू की है, उसमें भारत भी भागीदार है।

यह अच्छा है कि इंटरपोल ने पहला सिल्वर नोटिस जारी कर दिया, लेकिन यह ध्यान रहे कि शराब कारोबारी विजय माल्या और हीरा व्यापारी नीरव मोदी को अब तक भारत नहीं लाया जा सका है। यही स्थिति नीरव मोदी के सहयोगी मेहुल चोकसी की भी है।

इनके अलावा भारत से भागे कुछ और आर्थिक अपराधी भी हैं। इनमें से कुछ के बारे में तो यह अनुमान लगा लिया गया है कि उन्होंने कितना धन विदेश भेजा, लेकिन अन्य के काले कारनामों की तह तक नहीं पहुंचा जा सका है।

जिस तरह भारत अपने आर्थिक अपराधियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में समर्थ नहीं हो पा रहा है, उसी तरह अन्य देश भी। इसका कारण यह है कि इंटरपोल के हस्तक्षेप के बाद भी अनेक देश अपने यहां रह रहे दूसरे देशों के आर्थिक अपराधियों को प्रत्यर्पित करने में आनाकानी करते हैं।

दुर्भाग्य से इनमें पश्चिमी देश भी हैं। क्या यह किसी से छिपा है कि विजय माल्या और नीरव मोदी आदि को ब्रिटेन से लाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि विश्व के प्रमुख देश आर्थिक अपराध से निपटने की हामी तो भरते रहते हैं, क्योंकि जब ऐसा करने की बारी आती है तो वे अपेक्षित सहयोग देने से इन्कार करते हैं।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि काला धन जमा करने की दृष्टि से सुरक्षित माने जाने वाले देश भी आर्थिक अपराधियों के प्रति कुल मिलाकर नरम रवैया ही अपनाए हुए हैं। इसी कारण भारत और अन्य देशों का काला धन वापस लाने का अभियान सफल नहीं हो पा रहा है।

इसका प्रमाण यह है कि इंटरपोल ही यह कह रहा है कि आर्थिक अपराधियों की ओर से दूसरे देशों में जमा की गई अधिकांश संपत्ति बरामद नहीं की जा सकी है। समस्या केवल यह नहीं कि प्रमुख देश दूसरे देशों से भागकर आए आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं करते।

समस्या यह भी है कि वे उनके साथ-साथ आतंकियों को सौंपने के मामले में भी सकारात्मक रवैये का परिचय नहीं देते।

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