आखिर एक पत्रकार दूसरे पत्रकार का विरोधी क्यों?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- ताज़ा खबर
- Updated: 18 April, 2025 18:53
- 29

आखिर एक पत्रकार दूसरे पत्रकार का विरोधी क्यों?
बस्ती। पत्रकारों के लेखनी का विरोध अगर पुलिस या फिर आसामाजिक तत्व करें तो समझ में आता है, लेकिन जब एक पत्रकार दूसरे पत्रकार का विरोध करता है, तो यह बात समझ से परे। जब भी किसी पत्रकार के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है, या फिर मुकदमा दर्ज होता है, तो उसका विरोध करने के बजाए कुछ पत्रकार ऐसे होते हैं, जो इसी बहाने पुलिस की तरह अपनी खुन्नस निकालने लगते है। बाकायदा सोशल मीडिया पर खुशी का ना सिर्फ इजहार करते हैं, बल्कि हवा देते हैं, और चाहते हैं, कि अगर कार्रवाई ना हो रही हो तो हो जाए। पत्रकारों को पत्रकारों का विरोध करने वाली मानसिकता से उबरना होगा, और इसके लिए पत्रकार संगठनें के पदाधिकारी कारगर साबित हो सकते है। हालही में हर्रैया में जब एक पत्रकार जेल गए तो दूसरे पत्रकार ने जमकर उनकी बखियां यह कहकर उघेड़ी कि जब मेरे खिलाफ कार्रवाई हुई तो इन्होंने सोशल मीडिया पर खुषी का इजहार किया था। हैरान करने वाली बात यह है, कि जब धमेंद्र पांडेय के खिलाफ हर्रैया थाने में एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ तो एफआईआर की प्रति भेजते हुए एक पत्रकार ने निवेदन किया कि भईया खबर अवष्य प्रकाशित होनी चाहिए। अगर एक पत्रकार की सोच अपने साथियों के प्रति इसी तरह की रहेगी तो समाज पत्रकारों का मजाक उड़ाएगा ही। अगर एक पत्रकार इसी तरह खुन्नस निकालने के लिए मौका तलाशता रहेगा तो घबड़ाइए नहीं यह मौका कभी ना कभी सभी को मिलेगा। सवाल यह नहीं हैं, कि पत्रकार भी पुलिस की तरह खुन्नस निकालने लगे है। सवाल यह है, कि हमने समाज में क्या संदेश दिया? जब से पत्रकार संगठनें कमजोर हुई तब से इस तरह की समस्या पैदा होने लगी। अगर पत्रकारों ने अपना आपा खो दिया तो संगठनें और उनके पदाधिकारी क्या कर रहे हैं? पत्रकार संघ का राष्टीय अध्यक्ष, प्रदेष अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष बन जाने से कुछ नहीं होगा, जब तक पत्रकार एकजुट नहीं होगें, और एक दूसरे की मदद करने को खुद आगे नहीं आएगे। संगठनों के अध्यक्षों को भी पद की गरिमा का ख्याल रखना होगा। उन्हें पत्रकारों का आइडिएल बनना होगा। लेकिन यहां पर तो कुछ ऐसे संगठन के पदाधिकारी हैं, जिनके पास अपने साथियों के लिए समय नहीं रहता, लेकिन उनके पास नेताओं और कारोबारियों के पास जाने के लिए समय ही समय रहता है। ऐसे लोगों के पास जाने में इन्हें कोई परहेज नहीं होता, लेकिन साथियों के साथ जाने में इनके पास बहाना ही बहाना होता है। सवाल यह भी उठ रहा है, कि जब कुछ पत्रकार, पत्रकारिता की गरिमा को बनाए रख सकतें हैं, तो संगठनों के पदाधिकारी क्यों नहीं? आज अगर किसी पत्रकार के खिलाफ कोई बात हो जाती है, तो वह संगठनों के पदाधिकारियों के पास क्यों नहीं अपनी पीड़ा लेकर जाता? क्यों वह अधिकारियों और नेताओं के पास चला जाता? इस सवाल का जबाव उन लोगों को देना है, जिन्हें पत्रकारों ने इसी दिन के लिए पदाधिकारी बनाया। जिले का पत्रकार ना जाने क्यों बिखरा-बिखरा सा हुआ नजर आ रहा है? एक पत्रकार दूसरे पत्रकार को नीचा दिखाने के मौके तलाशता। समाज के सामने नंगा करने का प्रयास करता है। निजिता तो भंग करता। जिस समस्या का समाधान प्रेस क्लब कर सकता है, उसे लेकर वह अधिकारियों के पास जाता हैं। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि उसे प्रेस क्लब के पदाधिकारियों पर विष्वास नहीं रहा। कहना गलत नहीं होगा कि यह विष्वास का संकट पत्रकारों ने नहीं बल्कि पदाधिकारियों ने खड़ा किया। पदाधिकारियों का अधिकारियों के पास नियमित ना जाना और पत्रकारों की समस्याओं से रुबरु ना कराना, किसी कमी की ओर ईशारा करता है। एक पत्रकार दूसरे पत्रकार के बीच दिन प्रति दिन खाई और दूरियां बढ़ती जा रही है। प्रेस क्लब ना तो खाई को पाटने और ना दूरियों को नजदीकी में बदल पा रहा। इसका मतलब यह बिलकुल ही नहीं हुआ कि प्रेस क्लब ने कुछ काम ही नहीं किया, बहुत किया, लेकिन जो करना चाहिए था, उसमें वह पूरी तरह सफल नहीं रहा। प्रेस क्लब को एअरकडिशनिगं कर देने से कुछ नहीं होगा, जब तक प्रेस क्लब का एक-एक सदस्य प्रेस क्लब की गतिविधियों से संतुष्ट ना हो। जिस प्रेस क्लब की बुनियाद ही पत्रकारों की एकता पर खड़ी हो, उसमें अभाव क्यों दिख रहा? एक पत्रकार और दूसरे पत्रकार के बीच में अगर खाई रह जाती है, तो उसका प्रभाव पूरे प्रेस क्लब पर पड़ता है। जिले के पत्रकारों का यह सौभार्ग्य हैं, कि उन्हें इतना षानदार और जानदार प्रेस क्लब भवन मिला। राजधानी को छोड़कर यह पहला ऐसा प्रेस क्लब होगा, जो वातानुकूलित होगा।
Comments