.तो क्या 800 स्कूलों का नामोनिशान मिट जाएगा
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 21 June, 2025 20:46
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.तो क्या 800 स्कूलों का नामोनिशान मिट जाएगा
दारु की दुकानें बढ़ेगी और स्कूलों की संख्या घटेगीं, वाह रे योगी क्या नीति बनाई
-सरकार खुद चाहती है, लोग शिक्षित न हो, होगें तो नौकरी मांगेंगे
-शिक्षा से ही सबका विकास होगा, विधालय का मर्ज करना निष्चित ही विधायलों को बंद करने की शुरुआत
-स्कूल बंद कर देना समस्या का समाधान नहीं, कौन अध्यापक हैं, तो छोटे-छोटे बच्चों को दूरदराज के गांव में पढ़ने को भेजेगा
-सरकारी स्कूलों कर दशा को सुधारने की आवष्यकता हैं, न कि बंद करने की, अस्पतालों में डाक्टर नहीं स्कूलों में बच्चे नहीं क्या यही है, संतुलित विकास की नीति
-प्राइवेट एवं सरकारी स्कूलों के द्वंद में लटकती शिक्षा पर अधिकारियों का प्रयोग शिक्षा व्यवस्था को रसातल पर ले जा रहा
-सरकार को या तो सरकारी स्कूलों की दशा सुधारनी चाहिए, या फिर निजी स्कूल में बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था करना चाहिए
बस्ती। अगर सरकार अपनी जिद्व पर अड़ी रही तो पहली जुलाई से 50 से कम छात्र संख्या वाले लगभग 800 बेसिक के स्कूलों का बस्ती से नामोनिशान मिट जाएगा। 2400 शिक्षकों के पद प्रभावित होगें। पूरे प्रदेश में तीन हजार स्कूलें विलुप्त हो जाएगी और 35 हजार से अधिक पद प्रभावित होगे। इसे लेकर पूरे प्रदेश में बवाल मचा हुआ हैं, लोग कह रहे हैं, कि योगी सरकार की यह कैसी नीति हैं, जहां पर दारु की दुकानें बढ़ाई जा रही है, और स्कूलों की संख्या घटाई जा रही है। कहते हैं, कि सरकार खुद चाहती है, कि लोग शिक्षित हो, क्यों अगर शिक्षित होगें तो उन्हें नौकरी देनी पड़ेगी। योगीजी को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा से ही सबका विकास होगा, विधालय का मर्ज करना निष्चित ही विधायलों को बंद करने की शुरुआत है। स्कूल बंद कर देना समस्या का समाधान नहीं, कौन अध्यापक हैं, जो छोटे-छोटे बच्चों को दूरदराज के गांव में पढ़ने को भेजेगें। सरकारी स्कूलों की दशा को सुधारने की आवष्यकता हैं, न कि बंद करने की, अस्पतालों में डाक्टर नहीं स्कूलों में बच्चे नहीं, क्या यही है, संतुलित विकास की नीति। प्राइवेट एवं सरकारी स्कूलों के द्वंद में लटकती शिक्षा पर अधिकारियों का प्रयोग शिक्षा व्यवस्था को रसातल पर ले जा रहा। सरकार को या तो सरकारी स्कूलों की दशा सुधारनी चाहिए, या फिर निजी स्कूल में बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था करना चाहिए। लोगों का कहना और मानना हैं, अगर सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो रही है, तो इसके लिए सरकार की नीति जिम्मेदार है। अगर स्कूलों को विलुप्त करने की सरकार की योजना सफल हुई तो इसका सबसे अधिक प्रभाव गांव-गढ़ी के गरीब परिवार के बच्चों पर पढ़ेगा, वह निरक्षर हो जाएगें, क्यों कि कोई भी गार्जिएन अपने बच्चों को दूर दराज के स्कूलों में भेजना पसंद नहीं करेगा, नतीजा गरीब बच्चों का निरक्षर रहना।
प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष उदयशंकर शुक्ल कहते हैं, कि जब सरकार ने बच्चों के नामांकन में छह साल की सीमा का निर्धारण किया, तब से बच्चों की संख्या कम होने लगी। इसका मतलब यह हुआ कि जब बच्चा छह साल का होगा, तभी उसका दाखिला कक्षा एक में होगा। वहीं पर मांटेसरी स्कूलों में चार साल के बच्चों का भी दाखिला कर दे रहे है। सवाल करते हैं, कि जो बच्चा चार साल की उम्र से ही मांटेसरी स्कूल में पड़ रहा है, वह क्या छह साल की उम्र होने पर सरकारी स्कूलों में दाखिला लेगा? कहते हैं, कि सरकार ने कहा था, कि हम हर आंगनबाड़ी में प्री-प्राइमरी स्कूल की व्यवस्था करेगें, जब बच्चा छह साल का हो जाएगा तो उसे प्री-प्राइमरी स्कूल से प्राइमरी स्कूल में कक्षा एक में दाखिला देगें। आज तक सरकार ने एक भी प्री-प्राइमरी स्कूल की व्यवस्था आगंनबाड़ी में नहीं किया। यानि सरकार की नीतियों के कारण छह साल के पहले वाले बच्चे मांटेसरी स्कूल में चले गए, और जब कोई बच्चा एक बार मांटेसरी स्कूल में चला जाता है, तो उसके गार्जिएन उसे सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं कराते है। कहते हैं, कि पूरे प्रदेश में बच्चों की संख्या कम होने का कारण सरकार का छह साल की बाध्यता और आधार कार्ड को अनिवार्य करना रहा। आज भी हजारों बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास आधार कार्ड नहीं है। यानि अगर किसी बच्चे के पास आधार कार्ड नहीं हैं, और भले ही उनकी उम्र छह साल की है, तो भी उसका दाखिला सरकारी स्कूल में नहीं हो सकता। शिक्षक दौड़-दौड़कर परेशान हो जा रहे हैं, लेकिन कोई आधार कार्ड बनवाने के लिए तैयार नहीं, अगर यही हाल रहा है, तो छात्रों की संख्या और भी कम हो जाएगी। जिन बच्चों का दाखिला हो चुका है, उनका भी अनिवार्य रुप से आधार कार्ड बनाना है। इस चक्कर में अध्यापकों का हजारों रुपया अपनी जेब से लगाना पड़ रहा है। परेशानी अलग से उठानी पड़ रही है। कहते हैं, कि अगर सरकार अपने मकसद में कामयाब हो गई तो हजारों पद समाप्त हो जाएगें, अघ्यापक, बांगनबाड़ी, रसोईया, शिक्षा मित्र और अनुदेशक का पद समाप्त हो जाएगा। भविष्य में अध्यापकों की नियुक्ति नहीं होगी और सरकार की मंशा भी यही भी यही है। बेरोजगारी बढ़ेगी। कहते हैं, कि बीएसए जबरिया दबाव देकर हेडमास्टर से हस्ताक्षर करवा ले रहे है। मर्ज होने से पहले प्रधान, विधालय शिक्षा समिति की अनुमति लेनी होगी। बिना अनुमति के कोई भी स्कूल मर्ज नहीं हो सकता, इसी लिए हेडमास्टर पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए जा रहे है। कहते हैं, संगठन इसका पूरजोर हरस्तर पर विरोध करेगा। हरीश सिंह कहते हैं, सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने की आवष्यकता है, न कि उन्हें बंद करने की। समरदास यादव कहते हैं, स्कूल बंद कर देना समस्या का समाधान नहीं हो सकता, छोटे-छोटे बच्चों को दूसरे दूर दराज के गांव में भेजने को कौन अध्यापक भेजेगा। दीपक यादव कहते हें, छोटे स्कूलों में शिक्षकों की कमी और बुनियादी ढांचे की समस्याओं को ठीक करने पर ध्यान देना चाहिए, ताकि स्कूल बंद करने की नौबत न आए। घनष्याम यादव कहते हैं, सरकार खुद चाहती है, कि लोग शिक्षित न हो, जब शिक्षित होगें तो नौकरी मांगेंगें। सुरेंद्रनाथ द्विवेदी कहते हैं, कि प्राइवेट एवं सरकारी स्कूलों के द्वंद में लटकती षिक्षा पर अधिकारियों का प्रयोग शिक्षा व्यवस्था को रसातल में ले जा रही है।
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