समितियों के कम्पूटरीकरण के नाम पर हुआ 11.80 करोड़ का घोटाला
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 18 June, 2025 20:20
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ंसमितियों के कम्पूटरीकरण के नाम पर हुआ 11.80 करोड़ का घोटाला
-दो साल से 216 पैक्स की समितियों पर पड़ा 432 कम्पयूटर आज तक नहीं खुला
-यूपीसीबी ने समितियों को कम्पूटरीकरण के नाम पर कप्यूटर तो भेज दिया, लेकिन कम्पयूटर चलाएगा कोैन इसका प्रशिक्षण नहीं दिया, जब कि प्रशिक्षण के नाम पर लिए गए भुगतान
-केंद्र की पुनरोनिधानिक पैक्स कप्यूटीराईजेशन योजना के तहत प्रदेष के करीब तीन हजार समितियों का कम्पयूटरीकरण होना
-इस योजना की निगरानी दागियों को थमा दी गई, ऐसे को नोडल बना दिया, जिस पर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके
-सिस्टम इंटीगेटर का कार्य जिस संस्था को सौंपा गया, उसके मुखिया का नाम सुनील कुमारी श्रीवास्तव, इन्हें हर माह 1.50 लाख का भुगतान होता
-बस्ती सहित पूरे प्रदेश में समितियों के कम्पयूटरीकरण के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ, जाहिर सी बात, इतना बड़ा घोटाला बिना यूपीसीबी के टाप अधिकारियों और मंत्री के बिना संभव नहीं
-पूरे प्रदेश से इसकी सीबीआई जांच की मांग उठ रही, पूछा जा रहा है, कि जब कम्पयूटर बाक्स से खुला ही नही ंतो इस पर और इसके प्रषिक्षण के नाम पर इतनी बड़ी रकम खर्च करने का क्या औचित्य
-इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कितनी समितियों में कम्पयूटर का इस्तेमाल हुआ, और कितने में नहीं हुआ
-जिला सहकारी बैकों पर दबाव बनाया जाता है, कि वह प्रशिक्षण का इंतजाम करें, जिस बैंक की ब्रांच सप्ताह में एक दिन खुलती हो वह क्या प्रषिक्षण देगा
-जिस समय बस्ती सहित 16 डीसीबी को 60 अरब रुपया दिया गया था, अगर उसी समय स्टाफ भी उपलब्ध करा दिया होता तो आज जिला सहकारी बैंकों के ब्रांच सप्ताह में एक दिन न खुलती
-बैंक का डिपाजिट कैसे बढ़ेगा, और कैसे छवि सुधरेगी जब मंत्री और बैंक के टाप अधिकारी घोटाले में लिप्त एआर और डीआर को बचाते रहेगें
बस्ती। मंत्री से लेकर यूपीसीबी के आला अधिकारी पर पैक्स समितियों के सुधार और सुविधा देने के नाम पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लग रहा है। राजधानी वाले पूरे प्रदेश को लूट रहे हैं, एआर और डीआर मंडल और जिले को लूट रहे है। कहने का मतलब हर जगह लूट मची हुई है। कोई धान/गेहूं खरीद के नाम पर लूट रहा है, तो कोई धान खरीद सेंटर बनाने के नाम पर अपनी जेबें भर रहा है। सवाल उठ रहा है, कि जब जिले और मंडल स्तर और राजधानी में लूट मची है, तो सहकारिता को गर्त में जाने से कौन रोक पाएगा? अब पैक्स समितियों के कम्पयूटरीकरण के नाम पर सिर्फ बस्ती में ही 11.80 करोड़ के घोटाले की खबरे राजधानी से लेकर बस्ती में आ रही है। इस बार भी घोटाले का खुलासा मीडिया ने ही किया। इसी लिए कहा जाता है, कि यूंही नहीं बार-बार यह जा रहा है, कि बस्ती सहित प्रदेश की सहकारिता को गर्त में ले जाने और उसकी साख गिराने में विभागीय मंत्री और यूपीसीबी के आला अधिकारी, डीआर एवं एआर ही जिम्मेदार है। अगर इन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाया होता तो आज बैंक को खाता खुलवाने के लिए घर-घर न जाना पड़ता और न अधिवक्तागण एवं व्यापारीगण के साथ बैठक कर उनसे खाता खोलवाने और डिपाजिट करने की अपील चेयरमैन को करना पड़ता। जिस सहकारिता की बागडोर अमित षाह जैसे लोगों के हाथ में हो, अगर उस सहकारी बैंक की षाखा सप्ताह में एक दिन खुलती हो और खाताधारकों को अपना ही पैसा निकालने के लिए चेयरमैन तक से सिफारिश करनी पड़ती हो, उस सहकारिता को भगवान ही डूबने से बचा सकते है। जिस विभाग के मंत्री और आला अधिकारी रिक्त पदों पर भर्ती न करवा सके, उस बैंक का डूबना तो तय है, साथ ही अगर एआर और डीआर समितियों से आरकेवीवाई का करोड़ों रुपया डीसीबी को न दिलवा सके, उस समिति का भी डूबना तय है। 11 साल से केंद्र में और नौ साल से यूपी में भाजपा की ही सरकार हैं, उसके बाद भी मंत्री और अधिकारी पैक्स समितियों और डीसीबी को उनके पैरों पर खड़ा नहीं कर सके, उन्हें बुनियादी सुविधा तक उपलब्ध नहीं करा सके, ऐसे में तो सवाल तो उठेगें ही। अगर यही हाल रहा तो सहकारिता को आने वाले में शमशान घाट तक ले जाने के लिए चार व्यक्ति भी नहीं मिलेगें। अगर जिला सहकारी बैंक का चेयरमैन एक चपरासी तक की नियुक्ति नहीं कर सकता तो चेयरमैन बनने से क्या फायदा? जब एक नगर पंचायत के चेयरमैन को हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने और सैकड़ों बेराजगारों को नौकरी देने का अधिकार मिल सकता है, तो जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन को क्यों नहीं मिल सकता? जब तक चेयरमैन को अधिकार नहीं मिलेगें तब तक बैंक की हालत दिन-प्रति दिन बिगड़ती ही जाएगी। एक दिन ऐसा आएगा कि चेयरमैन भी एआर और डीआर की तरह घोटाला करने लगेगें।
हम बात कर रहे थे, बस्ती में पैक्स समितियों के कम्पयूटरीकरण के नाम पर 11.80 करोड़ के घोटाले की। घोटाला इस कहा जा रहा है, क्यों कि जो कम्पयूटर दो साल पहले भेजा गया, वह आज भी उसी तरह बक्से में बंद है, जिस तरह आया था। एक-एक समिति को दो-दो कम्पयूटर सहित पूरा सिस्टम भेजा गया। यानि जिले में 432 कम्पयूटर आया। ऐसा भी नहीं प्रशिक्षण के लिए सरकार ने एजेंसी को पैसा नहीं दिया, पैसा भी दिया, लेकिन प्रशिक्षण कागजों में दिखाकर भुगतान ले लिया। अब डीसीबी पर दबाव बनाया जा रहा है, िकवह प्रशिक्षण दें, जिसके पास खुद स्टाफ की कमी हो, वह कैसे प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा और क्यों करेगा? पैक्स समितियों को राष्टीकृत बैकों की तरह सरकार ने कम्पयूटराइज्ड करने का निर्णय लिया। केंद्र की पुनरोनिधानिक पैक्स कप्यूटीराईजेशन योजना के तहत प्रदेश के करीब तीन हजार समितियों का कम्पयूटरीकरण होना था। इसमें बस्ती की 216 समितियां भी शामिल है। इस योजना की निगरानी दागियों को थमा दी गई, ऐसे को नोडल बना दिया, जिस पर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके, सिस्टम इंटीगेटर का कार्य जिस संस्था को सौंपा गया, उसके मुखिया का नाम सुनील कुमारी श्रीवास्तव, इन्हें हर माह 1.50 लाख का भुगतान होता, इन पर लखीमखीरी में बैंक सचिव के रहते 8.13 करोड़ के नगदी का क्षरण का आरोप लगा चुका है। पूरे प्रदेश से इसकी सीबीआई जांच की मांग उठ रही, पूछा जा रहा है, कि जब कम्पयूटर बाक्स दो साल से खुला ही नहीं तो इस पर और इसके प्रशिक्षण के नाम पर इतनी बड़ी रकम खर्च करने का क्या औचित्य? इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कितनी समितियों में कम्पयूटर का इस्तेमाल हुआ? क्यों कि अधिकांश समिति के सचिव की बोर्ड पर अगुंली और कम्पयूटर खोलना तक नहीं जानते। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि दो साल से अधिक समय बीत गया, लेकिन न तो मंत्री और न यूपीसीबी के आला अधिकाधिरियों ने यह देखने और जानने का प्रयास किया कि समितियां कम्पयूटरीकृत हुई कि नहीं, अगर देखे होते तो करोड़ों रुपये का कंप्यूटर न सड़ गया होगा।
बस्ती सहित पूरे प्रदेश में समितियों के कम्पयूटरीकरण के नाम पर करोड़ों का घोटाला हुआ, जाहिर सी बात, इतना बड़ा घोटाला बिना यूपीसीबी के टाप अधिकारियों और मंत्री के मिलीभगत से संभव नहीं हो सकता। कम्पयूटरीकरण के नाम पर एक समिति पर पांच लाख के खर्च होने का अनुमान है। पूरे प्रदेश से इसकी सीबीआई जांच की मांग उठ रही, पूछा जा रहा है, कि जब कम्पयूटर, बाक्स से खुला ही नही ंतो इस पर और इसके प्रशिक्षण के नाम पर इतनी बड़ी रकम कैसे खर्च कर दी गई? इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि कितनी समितियों में कम्पयूटर का इस्तेमाल हुआ, और कितने में नहीं हुआ?
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