रिश्ता तोड़ सकते, आका को भूल सकते, दोस्ती छोड़ सकते, लेकिन बखरा नहीं!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 19 December, 2024 23:54
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रिश्ता तोड़ सकते, आका को भूल सकते, दोस्ती छोड़ सकते, लेकिन बखरा नहीं!
-सवाल उठ रहा है, कि क्या भ्रष्टाचार में डूबी जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायतें, नगर पंचायतें, ग्राम पंचायतें और नगर पालिका माडल बन सकती?
-कोई भी संस्था तभी माडल बन सकता है, जब वह भ्रष्टाचार मुक्त हो, इसके लिए अध्यक्षों को बहुत बड़ी कुर्बानी देनी होगी, उन्हें बखरा लेना बंद करना पड़ेगा, जो वह नहीं कर सकते
-कोई भी संस्था बिना भ्रष्टाचारमुक्त हुए देश और प्रदेश की कौन कहे, जिले का माडल नहीं बन सकता, इस बात को केजी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा भी आसानी से समझ सकता
-जिन संस्थाओं में सबसे अधिक बखरा लिया जाता है, उन्हीं संस्थाओं के मुखिया अपनी संस्था को माडल बनाने की बाते बढ़चढ़कर करते, ऐसा करके वह क्षेत्र की जनता और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को धोखा दे रहें
-जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायतों का कार्यकाल अंतिम दौर में चल रहा है, अगर यह संस्थाएं अरबों खर्च करने के बाद भी माडल नहीं बन पाई, तो क्या कोई नगर पंचायत और पालिका करोड़ों खर्च करने के बाद माडल बन पाएगी?
-संस्थाओं के अध्यक्ष एक बार पुरानी यारी दोस्ती तोड़ सकते, अपने आका को भूल सकते, लेकिन बखरा लेना नहीं छोड़ सकते
बस्ती। कुर्सी पर बैठते ही सबसे पहले जिला पंचायत अध्यक्ष और उसके बाद क्षेत्र पंचायतों और ग्राम पंचायतों के अध्यक्षों ने मीडिया और जिले की जनता से पहला वादा किया था, कि वह अपनी-अपनी संस्थाओं को जिले का ही नहीं बल्कि प्रदेष का माडल संस्था बनाएगें। एचएमबी रिेकार्ड भी खूब बचाया, कार्यकाल समाप्त होने को हैं, लेकिन एक भी मुखिया अपनी संस्था को प्रदेष का कौन कहे जिले का माडल तक नहीं बना पाई, अलबत्ता अपनी संस्था को भ्रष्टाचार की आग में अवष्य झांेक दिया, उसके बाद बारी आई नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के अध्यक्षों की, इनमें कई ऐसे नगर पंचायतें हैं, जिनके अध्यक्षों ने अपनी संस्था को प्रदेष का ही नहीं बल्कि देष का माडल बनाने का वादा किया। जनता कह रही हैं, कि जब सदर ब्लॉक के ओठघनपुर कला के प्रधान तौल राम साढ़े पांच लाख खर्च करके अपने ग्राम पंचायत को माडल बना सकते हैं, तो क्यों नहीं पांच छह करोड़ खर्च करने वाला बनकटी का ग्राम पंचायत खोरिया माडल बन पाएगा? हालांकि अभी नगर पंचायतों और नगर पालिका के अध्यक्षों को अन्य अध्यक्षों की तरह उतना समय नहीं मिला, लेकिन जो मिला उसे देखकर नहीं लगता कि भविष्य में इनमें कोई संस्था माडल भी बन सकता, क्यों कि माडल बनने और बनाने का जो पहला मानक हैं, वह है, संस्थाओं का भ्रष्टाचारमुक्त होना। सवाल उठ रहा हैं, कि जब कोई संस्था भ्रष्टाचारमुक्त ही नहीं है, तो वह कैसे प्रदेश और देश का माडल बन सकती है? कैसे उस संस्था का परचम पूरे देश में लहराएगा? जब जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायतें और ग्राम पंचायतें अरबों खर्चा करने के बाद माडल नहीं बन पाई, तो क्या करोड़ों खर्च करने के बाद नगरपालिका और नगर पंचायतें माडल बन पाएगी? हकीकत यह है, कि यह लोग रिष्ता तोड़ सकतें, आका को भूल सकतें, दोस्ती छोड़ सकतंे, संस्थाओं को चूल्हे भाड़ में झोंक फेंक सकते हैं, लेकिन बखरा नहीं नहीं छोड़ सकते, इसके लिए यह खुद टेकेदारों के घर सुबह-सुबह पहुंच जाते हैं, ताकि ठेकेदार बखरा लेकर भाग ना जाए। ऐसा भी वाक्या एक नगर पंचायत का सामने आ चुका है। कहा जाता हैं, कि अध्यक्ष जब तक बखरा लेना बंद नहीं करेगें तब तक माडल बनने का मानक पूरा नहीं होगा। यह कहा भी जा रहा है, कि जिन संस्थाओं की बुनियाद ही बखरे के ईट और सीमेंट से खड़ी हो, वह संस्था कैसे माडल बन सकता है? क्या कभी जिला पंचायत, 14 क्षेत्र पंचायतें, 12 नगर पंचायतें और 1185 ग्राम पंचायतें माडल बन पाएगी? जिन अध्यक्षों का मकसद ही अधिक से अधिक बखरा लेने का हो, वह क्या अपनी संस्था को माडल बना पाएगें। ऐसे लोग जो रात दिन बखरा का माला जपते हों, क्या वह लोग संस्था को माडल बना पाएगें? अगर कोई जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी से जिनका जन्म ही जिला पंचायत में बखरा से हुआ हो, क्या आप और हम ऐसे व्यक्ति से जिला पंचायत को माडल बनाने की उम्मीद कर सकते है? जबाव ना में होगा। यह वही लोग हैं, जिन्होंने अपने आका को धोखा दिया, जिले की जनता के साथ विष्वासघात किया, सरकारी धन को लूटा, क्या ऐसे लोगों से हम आप यह उम्मीद करेंगे कि यह बखरा लेना छोड़ देगें। इस तरह के लोग जब कुर्सी से उतरते हैं, तो इनका सम्मान इनके अपने ही नहीं करते। घर वाले तक इन्हें इज्जत की निगाह से नहीं देखते। ऐसे लोगों का नाम बहुत जल्द गुम हो जाता, और यह लोग गुमनामी के अंधेरें में चले जाते है। बखरा लेने वालों का सम्मान कुर्सी पर रहते भले ही मजबूरी में उनके और कार्यालय के लोग कर दें, लेकिन जैसे ही यह कुर्सी से उतरते हैं, इन्हें सम्मान के स्थान पर अपमान मिलता है। नमस्ते करने वाला कोई नहीं मिलता। हर कोई यह कहता है, कि वह देखो सरकारी धन को लूटने वाला लुटेरा जा रहा है। जिले में कई ऐसे अध्यक्ष हैं, जो लेते तो हैं, सबसे अधिक बखरा, लेकिन अपनी संस्था को माडल बनाने की बात बढ़चढ़कर कर करते है। जो बखरा लेने और संस्था को माडल बनाने की बातें करते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता सबकुछ देख और समझ रही है।
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