मिथिलेश निषाद’ के बाद ‘गीता देवी’ पर चलेगा ‘लोकायुक्त’ का चाबुक!

मिथिलेश निषाद’ के बाद ‘गीता देवी’ पर चलेगा ‘लोकायुक्त’ का चाबुक!

मिथिलेश निषाद’ के बाद ‘गीता देवी’ पर चलेगा ‘लोकायुक्त’ का चाबुक!

-सल्टौआ की प्रमुख गीता देवी के भ्रष्टाचार की जांच के लिए 501 पेज के दस्तावेज के साथ लोकायुक्त में दर्ज कराया गया परिवाद वाद

2-लोकायुक्त के जांच के दायरें में प्रमुख के साथ ना जाने कितने भ्रष्ट बीडीओ आएगें

3-इन्हें कार्रवाई का पता तब चलेगा जब यह निलंबित या फिर प्रमुख के साथ इनके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज होगा

4-लोकायुक्त में इसकी षिकायत सल्टौआ के रेंगी निवासी राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकार फूलचंद्र चौधरी ने किया

5-लोकायुक्त के निशाने पर रामनगर और साउंघाट ब्लॉक के प्रमुख भी आने वाले

बस्ती। कप्तानगंज की प्रमुख मिथिलेश निषाद के बाद सल्टौआ की प्रमुख गीता देवी लोकायुक्त के जांच के दायरे में आ चुकी हैं। रामनगर और साउंघाट के प्रमुख भी जल्द ही लोकायुक्त के रडार पर आ सकते है। ऐसा लगता है, कि पूर्व सांसद के हारने की सजा भाजपा शासित ब्लॉकों के प्रमुखों को मिल रही है। मीडिया पहले से ही कहती आ रही है, कि जिस तरह क्षेत्र पंचायतों में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, उसके लिए किसी दिन प्रमुखों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। खासतौर से एक सांसद और चार विधायक के हारने के बाद। यूंही नहीं लोग लोकायुक्त के पास जा रहे हैं, इनकी जब कहीं से भी नहीं सुनी गई तब शिकायतकर्त्ता लोकायुक्त की चौखट पर न्याय मांगने के लिए जाता है। हालांकि इसके लिए शिकायतकर्त्ता को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। साक्ष्य जुटाने पड़ते हैं, लोकायुक्त के यहां परिवाद दाखिल करने से पहले हजारों की फीस जमा करनी पड़ती है। जाहिर सी बात हैं, यह सबकुछ एक सामान्य व्यक्ति नहीं कर पाएगा, वह व्यक्ति या तो मजबूत होगा या फिर किसी जनप्रतिनिधि से उसे मजबूती मिलती होगी। यह सही है, कि एक भी क्षेत्र पंचायत के प्रमुख ने अपने ब्लॉकों को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं कराया, जिसके लिए उन्होंने शपथ लिया था। यह भी सही है, कि जो व्यक्ति करोड़ों रुपया खर्च करके प्रमुख बनेगा उससे ईमानदारी की उम्मीद करना बेमानी होगा। ऐसा प्रमुख पहले सूदसमेत चुनाव का खर्चा निकालेगा, और उसके बाद वह अपने सात पुष्तों के लिए इंतजाम करेगा। कहना गलत नहीं होगा कि आज जो ब्लाकें भ्रष्टाचार की आग में जल रही है, उसके लिए भाजपा के नेताओं को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह लोग अपना तो चले गए, लेकिन प्रमुखों को आग में झुलसने के लिए छोड़ गए। कहना गलत नहीं होगा कि सबसे अधिक भ्रष्टाचार की आग में महिला प्रमुख वाले ब्लॉकें में जल रही है। कहना गलत नहीं होगा कि लोकायुक्त के जांच के घेरें में आने वाले प्रमुखों को भाजपा के सांसद और चार विधायकों के हारने की सजा मिल रही है। ऐसा भी नहीं कि इस आग में बीडीओ जलने से बच जाएगें। भ्रष्टाचार फैलाने में प्रमुखों से अधिक बीडीओ लोगों को जिम्मेदार माना जा रहा है, यह जानते हुए कि सरकार ने इन्हें सरकारी धन का दुरुपयोग रोकने के लिए ब्लॉकों में तैनाती किया, इसके लिए सरकार ने इन्हें भारी भरकम वेतन के साथ अनेक सुविधा भी दे रही है। यह लोग सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने को कौन कहे, खुद सरकारी धन को लूटने में लगे हुए हैं। प्रमुख और बीडीओ मिलकर ब्लाकों को एक तरह से लूट रहे है। ऐसा भी नहीं कि इन्हें प्रमुखों की तरह करोड़ों खर्च करना पड़ा हो, फिर भी यह लोग भ्रष्टाचार के मामले में प्रमुखों का कान काटे हुए है। ऐसा लगता है, कि मानो प्रमुखों से अधिक बीडीओ का खर्चा है। अगर कोई सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार करता है, तो वह अक्षम होता है। रही बात जनप्रतिनिधियों की तो वह इसी लिए जनप्रतिनिधि बनता है, ताकि वह अपने सात पुष्तों का इंतजाम कर सके। महल खड़ा कर सके, पोर्टिकों में फारचूनर और डिफेंडर जैसी लक्जरी गाड़ियां खड़ी हो। अगर इन्हें कोई चोर/भ्रष्टाचारी कहता है, तो इन्हें बुरा भी नहीं लगता, यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं, कि जब लोग पीएम और सीएम को भ्रष्टाचारी कह सकते हैं, तो हम्हें कह दिया तो इसमें बुरा मामने और नाराज होने की कौन सी बात है। कहा जा रहा है, कि लोकायुक्त के पास जो मामले जा रहे हैं, उनमें अधिकांशं राजनैतिक से प्रेरित होते है। यह भी कहा जा रहा है, कि अगर भाजपा के पूर्व सांसद और चारों विधायक नहीं हारते तो शायद किसी को लोकायुक्त के पास जाने की आवष्यकता ही नहीं पड़ती। रही बात सल्टौआ ब्लॉक की प्रमुख गीता देवी की तो इन्होंने कहा कि अगर लोकायुक्त उनके क्षेत्र पंचायत निधि की जांच करना चाहती है, तो हम उनका स्वागत करते है। कहा कि मैं खुद जांच टीम के साथ एक-एक कार्यो को दिखाउंगी। इनका दावा है, कि उनके क्षेत्र पंचायत में जितना विकास हुआ है, और योजनाओं को संचालित करने में जितनी पारदर्षिता बरती गई, उतना शायद ही अन्य किसी ब्लॉक में हुआ होगा। दावा किया कि कहीं भी गलत नहीं हुआ, लाखों करोड़ों की कौन कहें, एक हजार रुपये का भी गलत नहीं हुआ। यह बात लोकायुक्त की जांच में साबित भी हो जाएगा।

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