मंटू’ दूबे जैसा नहीं, ‘सचिन’ दूबे जैसा प्रधान संघ का ‘अध्यक्ष’ चाहिए!

मंटू’ दूबे जैसा नहीं, ‘सचिन’ दूबे जैसा प्रधान संघ का ‘अध्यक्ष’ चाहिए!

मंटू’ दूबे जैसा नहीं, ‘सचिन’ दूबे जैसा प्रधान संघ का ‘अध्यक्ष’ चाहिए!

-अगर बहादुरपुर ब्लॉक प्रधान संघ के अध्यक्ष सचिन दूबे जैसा अन्य ब्लाकों के अध्यक्ष हो जाए तो किसी बीडीओ और प्रमुख की हिम्मत प्रधानों से बखरा मांगने और भ्रष्टाचार करने की नहीं पड़ेगी

-वहीं पर अगर रामनगर ब्लॉक प्रधान संघ अध्यक्ष पवन कुमार द्विवेदी उर्फ मंटू दूबे जैसा हो जाए तो पूरा जिला भ्रष्टाचार में डूब जाएगा

-नकली प्रमुखों और बीडीओ के खिलाफ जिस तरह सचिन दूबे ने बस्ती से लेकर लखनउ तक आवाज उठाया, अगर इसी तरह की आवाज अन्य अध्यक्ष लोग उठाते तो क्षेत्र पंचायतें और ग्राम पंचायतें भ्रष्टाचार की आग में ना झुलसती

-जिस जिले का नकली प्रधान संघ अध्यक्ष का गांव भ्रष्टाचार की आग में जल हो रहा हो उस जिले का भगवान ही मालिक

-बीडीओ और प्रमुखों से प्रधानों को अगर षोषण का षिकार होने से बचाना है, तो सचिन दूबे जैसी हिम्मत और ईमानदारी सभी अध्यक्षों को दिखानी होगी

बस्ती। अगर ब्लॉक प्रधान संघ का अध्यक्ष ही बेईमान और भ्रष्टाचारी होगा तो उस ब्लॉक के प्रधान भी बेईमान और भ्रष्टाचारी होगें, ऐसा माना जाता है। हालांकि सभी प्रधान अपने अध्यक्ष की तरह नहीं होते, लेकिन अधिकतर ब्लॉकों के प्रधान अपने अध्यक्ष की तरह बेईमान और भ्रष्टाचारी ही निकलते हैं। खासतौर से जिस ब्लॉक का अध्यक्ष पवन कुमार द्विवेदी जैसा हो, उस ब्लॉक का भगवान ही मालिक। इसी लिए कहा जाता है, कि प्रधानों को रामनगर के मंटू दूबे जैसा नहीं बल्कि बहादुरपुर के सचिन दूबे जैसा अध्यक्ष चाहिए, जिसमें इतनी हिम्मत हो  कि वह नकली प्रमुखों और भ्रष्ट बीडीओ के खिलाफ धरना प्रदर्षन और बस्ती से लेकर लखनउ तक उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सके। एक तरफ मंटू दूबे हैं, जिन्होंने सरकारी धन को लूटने के लिए मनरेगा और ग्राम निधि के सारे नियम कानून तोड़कर तिजोरी भरी, और एक सचिन दूबे हैं, जो इस लिए अपने गांव में 23-24 लाख का तो कच्चा काम करवा लिया, लेकिन एक हजार का भी पक्का काम इस लिए नहीं कराया, ताकि प्रधान यह कह सके कि पद का दुरुपयोग किया, इनकी मंषा रही है, कि पहले उनके प्रधान साथियों को रेसियो के तहत पक्का काम मिले, और कोई इनका षोषण ना करने पाए। अगर यह भी चाहते तो अपने पद का दुरुपयोग करके मंटू दूबे की तरह दो करोड़ 71 लाख का कच्चा और पक्का काम करवा सकते थे, लेकिन यह मंटू दूबे की तरह नहीं बनना चाहतें। जब जरुरत पड़ी तो इन्होंने नकली प्रमुख के हाथों मार खाने वाले बीडीओ गणेष दत्त षुक्ल के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाया, ब्लॉक पर धरना प्रदर्षन किया, सीएम तक को पत्र लिखा, और जब इन्होंने देखा कि मार खाने के बाद बीडीओ साहब सभी प्रधानों को साथ में लेकर चलना चाहते हैं, और ईमानदारी से काम करना चाहते हैं, तो इन्होंने उसी बीडीओ का साथ दिया, जिसका इन्होंने विरोध किया था।

यह प्रदेश के शायद पहले ऐसे ब्लॉक प्रधान संघ के अध्यक्ष होगें जिन्होंने नकली प्रमुखों को प्रधानों से मिलने वाले साढ़े तीन फीसद बखरा को बंद करवाया, इतना ही नहीं इन्होंने उस परम्परा को भी समाप्त करवाया, जिसमें नकली प्रमुख, प्रधानों से जबरिया पत्रावली लेकर बीडीओ से स्वीकृति कराने के लिए ले जाते थे। यह पहले ऐसे प्रधान संघ के अध्यक्ष होंगे, जिनका सभी प्रधान सम्मान करते हैं, और बात भी मानते है। इस ब्लॉक के प्रधानों का कहना है, कि अध्यक्ष हो तो सचिन दूबे जैसा। इसी लिए कहा जा रहा है, कि अगर सचिन दूबे जैसा अध्यक्ष हर ब्लॉक में हो जाए तो किसी भी असली/नकली प्रमुख और बीडीओ की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वह प्रधानों का हक मार सके। वही ब्लॉक कमजोर होता हैं, जिनके अध्यक्ष कमजोर और चाटुकार होते है। अगर सचिन दूबे को छोड़ दिया जाए तो कोई भी ऐसा अध्यक्ष नहीं जो लूटपाट गैंग का सदस्य ना हो। यह लोग ना तो खुद आइडिएल बनते हैं, और ना ग्राम पंचायतों और क्षेत्र पंचायतों को ही आईडिएल बनने देतें है। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि लगभग सभी क्षेत्र पंचायतों में सरकारी धन की लूट मची हुई, लेकिन बहादुरपुर प्रधान संघ के अध्यक्ष के सिवाय किसी अध्यक्ष ने ना तो बीडीओ और ना ही प्रमुखों के खिलाफ आवाज उठाया, धरना प्रदर्षन करने की तो बात ही छोड़ दीजिए। सदर ब्लॉक इसका अपवाद हो सकता है। लालची किस्म के अध्यक्षों का प्रमुखों और बीडीओ ने खूब लाभ उठाया, इन्हें हथियार के रुप में इस्तेमाल तक किया। असली अध्यक्षों में तो थोड़ा बहुत मान-सम्मान बचा भी है, लेकिन नकली अध्यक्षों ने तो प्रमुखों और बीडीओ के आगे आत्मसमर्पण तक कर दिया। इसके लिए नकली जिला प्रधान संघ के अध्यक्ष को जिम्मेदार माना जा रहा है।

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