मारने-पीटने, अपमानित, चीरहरण करने वालों का साथ क्यों दे रहें क्षत्रिय?

मारने-पीटने, अपमानित, चीरहरण करने वालों का साथ क्यों दे रहें क्षत्रिय?

मारने-पीटने, अपमानित, चीरहरण करने वालों का साथ क्यों दे रहें क्षत्रिय?

-आखिर क्यों नहीं अब क्षत्रियों का खून खौलता, क्यों ऐसे लोगों का दामन पकड़ रहे हैं, जो लोग बहुओं को सरेआम अपमानित करते, बेटे को जेल भेजवाते

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर जिले के कुछ क्षत्रियों का खून क्यों नहीं खौलता? क्यों वह लोग ऐसे लोगों का दामन पकड़ते जो उनकी बहुओं को अपमानित करते, और बेटे को जेल भेजवाते? मरवाते और पिटवातें है। क्या कोई क्षत्रिय इतना कमजोर हो सकता है, कि वह पत्नी का चीरहरण करने वाले से बदला भी ना ले सके? बदला लेने को कौन कहे, उनके साथ चल रहें है। महिलाओं की इज्जत के लिए कुर्बान होने वाले क्षत्रिय अगर अपनी ही पत्नी की इज्जत को नहीं बचा सकते या फिर इज्जत पर हाथ डालने वालों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते तो फिर ऐसे लोगों को क्षत्रिय कहने का कोई हक नहीं। पत्नी का चीरहरण करने वालों के साथ अगर गलबहियां करेगें तो सवाल तो पूरे खानदान पर उठेगा। यह भी सवाल उठ रहा है, कि क्या पत्नी के इज्जत से बड़ा राजनीति हो गया? जिस परिवार ने गौर ब्लॉक पर 38 साल तक राज किया, अगर उसी परिवार का बेटा एवं पूर्व प्रमुख पिता महेश सिंह के इच्छा के विपरीत उस भाजपा का दामन थाम लिया, जिस पार्टी के लोगों  पत्नी की साड़ी चुनाव में खींचा। एक तरफ पत्नी अपने अस्तित्व की लड़ाई उन भाजपाईयों से न्यायालय में लड़ रही है, जिन्होंने ना सिर्फ नामांकन के समय अपमानित किया बल्कि पति के साथ मारपीट भी किया, उनके कपड़े तक फाड़े, जेल तक भेजवाया। वहीं दूसरी तरफ पत्नी और पिता को अपमानित करने वालों के साथ बेटा बैठकर चाय और भोजन कर रहे है।

अगर कोई युवा नेता अपने सपने को पूरा करने के लिए उन लोगों से हाथ मिलाता है, जिसने पूरे परिवार को अपमानित किया, तो उसे समाज क्या कहेगा? ऐसे लोग ना तो सपा के हो पाए और ना अपनी पत्नी की इज्जत ही बचा पाए। किसी भी क्षत्रिय परिवार के लिए इससे बड़ी षर्म की बात हो ही नहीं सकती। यह पहले ऐसे क्षत्रिय नहीं है, जिन्होंने परिवार को अपमानित करने वालों का दामन पकड़ा। इन्हीं की श्रेणी में बनकटी का भी एक क्षत्रिय परिवार आता है। इस परिवार को भी ठीक उसी तरह प्रमुखी के चुनाव में अपमानित किया गया, जिस तरह महेष सिंह के परिवार को किया गया, हत्या के आरोप में परिवार के एक सदस्य को जेल भी जाना पड़ा, और यह सबकुछ भाजपा के लोगों के कारण हुआ। अरविंद सिंह की तरह यह परिवार भी आज प्रमुखी का पद पाने के लिए उन्हीं लोगों के साथ चल रहे हैं, जिन लोगों ने नामांकन के समय मारपीट किया, नामांकन तक करने नहीं दिया। घटना के बाद यही लोग कहते थे, कि जीवन भर भाजपा का साथ नहीं दूंगा। जीवनभर को कौन कहे, साल दो साल में ही यह परिवार अपमान को भूल गया। इसी तरह रुधौली का एक क्षत्रिय परिवार भी है। इस परिवार के मुखिया के साथ नामांकन के समय हाथापाई किया। आज वहीं परिवार उन्हीं लोगों के बगल में बैठा है, जिन्होंने अपमानित किया। सवाल उठ रहा है, कि क्या इसी को ही राजनीति कहते है? जहां पर परिवार की महिलाओं की इज्जत और बेटे को जेल भेजवाने वालों का साथ दिया जाए? क्या परिवार की इज्जत से बढ़कर कोई पद है?  इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी यह लोग जिस तरह सीना तान कर चलते हैं, उससे लगता ही नहीं कि इनके या फिर इनके परिवार के लोगों के साथ कोई घटना भी हुई हो। ऐसे लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिए, कि समाज उन्हें देख रहा है। इन लोगों से अच्छा तो उन गांव वालों को माना जाता है, जो अपने और परिवार की इज्जत के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते है। यह लोग उन लोगों को कभी नहीं भूलते जिन लोगों ने उनकी बहु बेटियों के साथ कुछ गलत किया है।

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