मरीज टांडा का, आपरेशन नीजि अस्पताल बस्ती में, इलाज मेडिकल कालेज में!

मरीज टांडा का, आपरेशन नीजि अस्पताल बस्ती में, इलाज मेडिकल कालेज में!

मरीज टांडा का, आपरेशन नीजि अस्पताल बस्ती में, इलाज मेडिकल कालेज में!


-यह है, ओमवीर अस्पताल के सर्जन डा. नवीन चौधरी का सच, इन्होंने यूंही नहीं पत्नी अर्चना चौधरी के साथ मिलकर बस्ती में एंपायर खड़ा किया


-टांडा की मरीज श्रीमती मरीज और कारोबारी दीपक केडिया ने खोली डा. नवीन चौधरी और उनके रैकेट का खुलासा, इस रैकेट में एजेंट के रुप में वार्ड ब्याय भी शामिल

-आयुष्मान कार्ड धारक महिला मरीज ने कहा कि डाक्टर साहब और उनका वार्ड ब्याय ने कहा कि बस्ती में बेहतर इलाज होगा, हमारी एंबुलेस ले जाएगी और ले आएगी, चार पांच मरीज लेकर एंबुलेस बस्ती आई

-अगूंठा लगाया, हार्निया का आपरेशन किया, चार पांच दिन तक खाने को कुछ नहीं दिया, फिर दीपक को फोन किया कि एक हजार भेज दीजिए नहीं तो हम लोग भूखे मर जाएगें

-दीपक केडिया ने कहा कि डा. नवीन डाक्टर नहीं, हैवान है, मरीजों को भूखा मरने के लिए छोड़ रखा जबकि आयुष्मान के मरीजों को खानापीना इलाज सबकुछ निःशुल्क

-कहा कि डा. नवीन चौधरी जैसे डाक्टर सरकार को ही चूना लगा रहे हैं, टांडा के मरीज को मेडिकल कालेज से बेहतर इलाज बताकर बस्ती अपने नर्सिंग होम ले जाते, वहां आपरेशन करते और फिर मेडिकल कालेज लाकर भर्ती कर देतें

-वायरल वीडियो के बाद मेडिकल कालेज प्रशासन डा. नवीन कुमार चौधरी की जांच कर रहा

बस्ती। आईएमए और लिफाफा लेकर डा. नवीन चौधरी के पक्ष में खबर लिखने और चलाने वाले कुछ मीडिया को यह नहीं मालूम कि जिस डाक्टर का वह लोग बचाव कर रहे हैं, वह डाक्टर आयुष्मान के मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं, उन्हें भोजन तक नहीं देते और मरने के लिए बिस्तर पर छोड़ देते हैं, भूख से तड़पने वाली महिलाएं अगर टांडा के दीपक केडिया नामक व्यक्ति से खाने के लिए पैसा न मंगाती तो भूख से मर भी जाती। अगर ऐसे डाक्टर का बचाव आईएमए और मीडिया करता है, तो भगवान ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करेगा, डाक्टर नवीन चौधरी से अधिक मरीज और जनता आईएमए और कुछ मीडिया को दोषी मान रही है। कहती है, कि डाक्टर, आईएमए एवं मीडिया के लोगों में क्या फर्क रह गया? एक चैनल के 12 मिनट के वीडियो में जिस तरह महिला मरीज और डा. नवीन के काले कारनामों का फंडाफोड़ करने वाले टांडा के व्यापारी दीपक केडिया कहते हैं, उसे सुनकर और देख किसी का दिन पसीज जाएगा। कहते हैं, कि मेडिकल कालेज के मरीजों को कैसे मेडिकल कालेज में तैनात डा. नवीन चौधरी मेडिकल कालेज से बेहतर इलाज का झांसा देकर बस्ती अपने नीजि अस्पताल में आयुष्मान के मरीजों को अपने एंबुलेंस से ले जाते हैं, और वहां आपरेशन करते हैं, और मरीजों से आयुष्मान के कागज पर अगूंठा लगाकर लाखों रुपये का भुगतान लेते है। मरीजों को भोजन तक नहीं देतें, अस्पताल वाले कहते हैं, कि अगर भोजन करना हो अपने पैसे से करो सरकार भोजन का पैसा नहीं देती, जबकि सरकार आयुष्मान के मरीजों को इलाज से लेेकर आपरेषन और भोजन तक की निःशुल्क सुविधा देती है, लेकिन मानवता के दुष्मन डा. नवीन मरीजों को मरने के लिए बिस्तर पर ही छोड़ देते है। कहते हैं, कि जब श्रीमती मरीज ने फोन पर कहा कि साहब कुछ पैसा भेज दीजिए नहीं तो मैं भूख से मर जाउंगी, तब हमने एक हजार रुपया भेजा, उसके बाद मरीज की जान बची। कहते हैं, कि अगर किसी मरीज की जान इलाज के दौरान हो जाए तो बात समझ में आती है, लेकिन अगर महिला मरीज की जान भूख के कारण चली जाए तो समझ में नहीं आता, सवाल करते हैं, कोई डाक्टर कैसे इतना निर्दयी हो सकता है। जिस मरीज के बल पर डाक्टर महल खड़ा करते हैं, अगर उसी मरीज को भूख से मरने के लिए छोड़ दिया जाए तो इससे बड़ी हैवानियत और क्या हो सकती है? इसी लिए मीडिया बार-बार ऐसे डाक्टर्स को खून चुसवा डाक्टर कहती आ रही है। श्रीमती मरीज की नजर में डा. नवीन दुनिया के पहले ऐसे डाक्टर होगें जो अपने मरीजों को भूखों मरने के लिए छोड़ देते हैं, टांडा की रहने वाली मरीज का बस्ती में कोई नहीं था, जिससे वह भोजन मांग सके। अगर ऐसे डाक्टर का बचाव आईएमए और लिफाफा लेने वाले पत्रकार करेगें तो मानवता का तो खून होगा ही। अब आप लोगों की समझ में आ गया होगा कि इतने कम समय में और एक दो लाख की सैलरी में कैसे कोई साम्राज्य खड़ा कर सकता है? यह लोग मरीजों का खून चूस-चूस कर महल खड़ा करते है। इसी लिए मरीज और जनता ऐसे डाक्टर्स को जेल में देखना चाहती है। ऐसे डाक्टर्स मरीज की जान भी लेते हैं, और यह भी कहते हैं, कि मरीज की मौत का कारण खुद मृतक का परिवार है। डाक्टर्स साहब भगवान के कहर से डरिए और मरीजों की आहें और बददुआएं मत लीजिए नहीं तो कभी न कभी आप को और आपके परिवार को भी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। श्रीमती मरीज ने बताया कि डाक्टर नवीन ने बताया कि हार्निया का आपरेशन करना पड़ेगा, और मेडिकल कालेज में कोई सुविधा नहीं हैं, इस लिए तुम्हें बस्ती मेरे नर्सिगं होम में चलना पड़ेगा, डाक्टर ने यह भी कहा कि मेरा एंबुलेस बस्ती ले जाएगी, वहां आपरेशन होगा और टांका भी वहीं कटेगा कोई तकलीफ नहीं होगी, फिर मेरा एंबुलेस वापस टांडा ले आएगी, बताया कि मेरे साथ चार और मरीज थे, मेरा आपरेशन किया कागज पर अंगूठा लगाया, और आयुष्मान से भुगतान ले लिया। चार दिन तक बिस्तर पर बिना खाए पीए पड़ी रही, जब अधिक भूख लगी तो भोजन मांगा लेकिन नहीं दिया, फिर हमने दीपक जी को फोन किया और वहां से एक हजार मंगाया तब जाकर जान बची। कहा कि बस्ती में अल्टासाउंड करवाई 800 रुपया लिया। पांच हजार मेडिकल कालेज के बाहर जांच करवाने के नाम पर खर्च हुआ, जब कि मरीज का एक रुपया भी खर्च नहीं होना चाहिए। दीपक ने बताया कि यह मरीजों को बरगलाकर बस्ती ले जाते हैं, और फिर वहां आपरेषन करके मेडिकल कालेज में लाकर इलाज के लिए भर्ती कर देते है। इसी लिए कहा जाता है, कि मरीज टांडा का आपरेशन बस्ती में और इलाज अंबेडकरनगर में। आप लोगों ने क्या ऐसा कहीं देखा और सुना होगा। दीपक का कहना है, कि डा. नवीन ने जितना भी पैसा कमाया वह सभी टांडा के आयुष्मान के मरीजों से कमाया। 85 फीसद टांडा के मरीजों का आपरेशन बस्ती में हुआ, और वापस लाकर मेडिकल कालेज में भर्ती करवा दिया जाता है।

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