कृषि विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में हो रहा खाद की कालाबाजारी
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 19 December, 2024 14:31
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कृषि विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में हो रहा खाद की कालाबाजारी
-संरक्षण के नाम पर खुदरा और खाद के थोक विक्रेताओं से लिया जाता सुविधा शुल्क
-सुविधा शुल्क मिल जाने के बाद अधिकारी ना तो नमूना लेते, ना निरीक्षण करते, ना निरीक्षण आख्या उपलब्ध कराते और ना कार्रवाई ही करते
-सुविधा शुल्क में इतनी ताकत हैं, कि अधिकारी नमूना इस लिए नहीं लेते क्यों कि अमानक मिलने पर उन्हें लाइसेंस को निरस्त करना पड़ेगा
-इससे पहले हर साल दर्जनों नमूने फेल होते रहें हैं, लाइसेंस निरस्त भी हुए, लाइसेंस निरस्त होने का डर भी विक्रेताओं को रहता था, अमानक खाद की विक्री नहीं होती थी
-75 फीसद दुकानों की जियो टैकिगं और बोर्ड तक नहीं लगवाए गए, जिसके चलते धड़ल्ले से अमानक और अधिक रेट में खाद बेचा जा रहा
-शासन के टारगेट देनें के बाद भी अधिकारी ना तो रैक प्वांइट, बफर गोदामों और रिटेल प्वांइट पर की छापेमारी/निरीक्षण करने जाते, छापेमारी की प्रगति जीरो जा रही
बस्ती। जिस कृषि विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी किसानों को मानक, निर्धारित रेट पर खाद उपलब्ध कराने की है, अगर उसी विभाग के अधिकारियों के संरक्षण में खाद की कालाबाजारी होती है, तो किसानों को खाद कौन दिलवाएगा, कौन उन्हें मुनाफाखोरों और कालाबाजारियों एवं अमानक खाद बेचने वालों से मुक्ति दिलाएगा? यह पहला ऐसा विभाग हैं, जहां पर भ्रष्टाचार की षुरुआत पटल से होकर चपरासी और साहब के चालक से होकर जेडीई, उप निदेषक कृषि एवं जिला कृषि अधिकारी पर जाकर समाप्त होता है। कहने का मतलब इस विभाग के लोगों का भ्रष्टाचार करना मानो इन लोगों का जन्म सिद्ध अधिकार हो। चूंकि सभी भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं, इस लिए कार्रवाई करे तो करें कौन? कार्रवाई उन्हीं लोगों के खिलाफ होती है, जो अधिकारियों के टारगेट पर रहते है। चाहें वह कर्मचारी हो या फिर चाहें वह सुविधा शुल्क ना देने वाला विक्रेता हो। इस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी रवी और खरीफ का सीजन प्रारंभ होने के पहले किसानों को खाद कैसे उपलब्ध हो इसकी रुपरेखा नहीं बनाते, बल्कि इस बात की रुपरेखा बनातें हैं, कि किस तरह अधिक से अधिक खाद की कालाबाजारी, निरीक्षण और नमूना लेने के नाम पर वसूली हो सके। इस विभाग के अधिकारी और कर्मचारी अगर किसानों के हित के बारे में सोचते और रणनीति बनाते तो किसान, विभाग और सरकार की जय-जयकार करता। दूषित व्यवस्था को देख आज किसान इस विभाग के लोगों और खाद विक्रेताओं के खिलॉफ जितना अपषब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उतना पुलिस के बारे में भी नहीं करतें। चूंकि भ्रष्टाचार के इस खेल में विभाग के मंत्री से लेकर संत्री तक रहते हैं, इस लिए अधिकारी बेलगाम हो गएं है। कहा भी जाता है, कि जिस विभाग के मंत्री पर भ्रष्टाचारियों का साथ देने का आरोप, किसान लगाते हो, उस विभाग के अधिकारी और बाबू को किसान ईमानदार कैसे कह सकता है? जिस विभाग में फर्जी अभिलेखों के सहारे लगभग आधा दर्जन कर्मचारी नौकरी कर रहे हों, उस विभाग का भगवान ही मालिक। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं, कि जिन बाबूओं की नियुक्ति की नींव अधिकारियों ने ईट और गारे के बजाए भ्रष्टाचार पर खड़ा किया हो, उस बाबू और अधिकारी से ईमानदारी की उम्मीद कैसे किसान कर सकतें हैं?
सरकार हर साल निरीक्षण, छापेमारी, रैकप्वाइंट एवं बफर गोदामों का टारगेट जिले के जिला कृषि अधिकारी को देती है, ताकि कोई खाद की ना तो कालाबाजारी कर सके और ना अमानक के साथ निर्धारित दर से अधिक पर खाद बेच सके। विभाग के पोर्टल से मिली जानकारी के अनुसार कंपनी के बफर गोदामों, रैकप्वांईट की जांच के लिए 114 का लक्ष्य दिया गया, इसी तरह 15 थोक विक्रेताओं के यहां 234 छापेमारी एवं 816 रिटेलर्स के यहां छापेमारी के लिए टारगेट वित्तीय साल 24-25 में दिया गया। अधिकारियों को कुल 1164 छापेमारी करनी थी, लेकिन हैरानी होती है, कि एक भी छापेमारी नहीं की गई, और ना नमूने ही लिए गए, और जब छापेमारी नहीं होगी और नमूने नहीं लिए जाएगें तो कार्रवाई कैसे होगी? कैसे लोगों में दहशत का माहौल होगा। कार्रवाई ना हो इसके लिए प्रति रिटेलर्स रवी और खरीफ में चार हजार का चंदा देता। होलसेलर का चंदा इसमें शामिल नहीं है। जिस विभाग के अधिकारियों के पास हर साल अगर चंदे के रुप में 70 लाख से अधिक आते हों, उस विभाग के अधिकारी क्यों अपना कारोबार बंद करेगें, वह भी गरीब किसान के लिए। किसानों को खाद मिले या ना मिले इनसे कोई मतलब नहीं, इन्हें तो सिर्फ चंदे से मतलब रहता है। यही इस विभाग के अधिकारियों का फारमूला भी है। धड़ल्ले से कालाबाजारी हो सके इसके लिए 75 फीसद दुकानों की जियो टैंकिग ही नहीं कराइ गई, जिससे पोर्टल पर पता ही नहीं चलता कि कौन दुकान कहां पर खाद बेच रहा है। दुकानों पर बोर्ड तक नहीं लगवाए गए। रैकप्वाइंट पर 19 नमूने लेने का लक्ष्य था, लेकिन एक का भी नहीं लिया गया। रिटेलर के 136 और होल सेलर्स के यहां से 39 खाद के नमूने लेने थे, मगर एक भी नहीं लिया। अधिकारी से जब सवाल-जबाव किया गया तो बगले झांकने लगे।
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