कार्यकर्त्ता का धरने पर बैठना यह बताता कि बिल्डिगं की नींव हिल चुकी!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 21 June, 2025 21:13
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कार्यकर्त्ता का धरने पर बैठना यह बताता कि बिल्डिगं की नींव हिल चुकी!
-आशीषजी का आंदोलन किसी अधिकारी और नेता का मोहताज नही, नौजवान पीला गमछा कंधे पर डालकर अपना भविष्य बर्बाद कर रह
-मिलने लगा आशीषजी को उनकी मेहनत का फल छह में एक मांग हुई पूरी, मालवीयरोड कांड को लेकर कोतवाल हुए निलंबित
-खुटहन, जीतीपुर, लालगंज, कटेष्वरपार्क और उभाई कांड की लड़ाई बाकी
-इनका आमरण अशन बेकार नहीं जाएगा, जो अलख इन्होंने जलाया वह धीरे-धीरे पूरे जिले में जलने लगी
-वर्तमान दूषित व्यवस्था में किसी का भी सिस्टम से लड़ना आसान नहीं होता, चूंकि इस लड़ाई में जनता इनके साथ है, इस लिए परिणाम मिलेगा
बस्ती। अगर कोई लड़ाई चाहे खुद के लिए चाहंे आम लोगों के लिए ईमानदारी और निष्पक्ष होकर लड़ी जाए तो सफलता मिलती हैं, भले ही देर या कठिनाई सहकर मिलती है, लेकिन मिलती अवष्य है। कौन जानता था, कि आशीष शुक्ल को इतनी जल्दी सफलता मिलेगी। छह में से इनकी एक मांग मालवीय रोड जमीनी विवाद के मामले में मिली, कोतवाल को निलंबित होना पड़ा। खुटहन, जीतीपुर, लालगंज, कटेष्वरपार्क और उभाई कांड की लड़ाई में सफलता मिलना बाकी है। वर्तमान दूषित व्यवस्था में किसी का भी सिस्टम से लड़ना आसान नहीं होता, चूंकि इस लड़ाई में जनता इनके साथ है, इस लिए सफलता मिल रही है। इन्होंने आमरण अशंन के जरिए जो अलख जलाया है, वह धीरे-धीरे पूरे जिले में जलने लगी है। बहुत कम लोग ऐसे होगें जो इस आंदोलन का समर्थन न करते हो, आज वे लोग भी समर्थन कर रहे हैं, जो यह कहते रहते थे कि आंदोलन सफल नहीं होगा और यह लड़ाई राजनीति के लाभ के लिए लड़ी जा रही है। धरना स्थल पर डीएम और एसपी आए या न आए कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर एमपी एमएलए भी नहीं आते तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्यों कि यह धरना किसी अधिकारी या नेता का मोहताज नहीं है। कहा भी जाता है, कि जिस मूवमेंट को आम समर्थन मिलता है, समझो वह मूवमेंट सही दिशा में जा रहा है। श्रुति के अग्रहरि लिखती है, कि जनप्रतिनिधियों का काम तो बहुत है, लेकिन पूर्व सांसदजी ने बहुत काम विकास का किया था, लेकिन फिर भी एक लाख वोटों से हार गए, इसपर कुछ लोगों का कहना था, कि सांसदजी बहुत लोगों के र्काक्रम में नहीं पहुंच पाते थे, और जो वर्तमान हैं, उनसे किसी से कोई उम्मीद ही नहीं है। इस लिए उनकी कोई चर्चा ही नहीं करता। आंेकार नाथ त्रिपाठी लिखते हैं, कि भाई बस्ती की हालत बहुत ही खराब हैं, नौजवान पीला गमछा कंधे पर डालकर अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं, खाली रात दिन फोटो खिंचवा करके फेसबुक पर डालना इनसे मिलना, उनसे मिलना होता है, जब फंस जाते हैं, तो कोई काम नहीं आता। अब्दुल हमीद कहते हैं, कि जनता भी नेताओं के साथ एक सेल्फी में ही खुश हो जाती है, वह अपनी समस्याओं को भी नहीं उठा सकते, नेताओं के पास पहुंचकर बर्फी पानी और पान तक जनता अपनी औकात समाप्त कर लेती है। संदीप श्रीवास्तव लिखते हैं, कि इसी लिए टेंट वाले लेता कहलाए जाते हैं, और आगे चलकर खत्म हो जाते हैं, कोई पूछने वाला नहीं होता। इनका समर्थन कमलेश श्रीवास्तव कमलजी ने भी किया। अमित श्रीवास्तव लिखते हैं, कि नेताओं का कार्यक्रम में पहुंचकर केवल कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना ही उनका कार्य रह गया है, दरवाजे पर तभी आते हैं, जब दनको वोट की जरुरत ही। जब वोटर को नेताओं की जरु3रत होती तो वह नदारत रहते है। भाजपा के धर्मराज गुप्त फालो करते हैं, और कहते हैं, कि जनप्रतिनिधि केवल अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं, यदि आप ने उनकी तारीफ का पुल नहीं बांधा तो आप खराब कार्यकर्त्ता माने जाएगें, कार्यकर्त्ता और जनता वह ताकत हैं, जिसका अंदाजा कुछ लोगों को नहीं है। कार्यकर्त्ता का तो बुरा हाल हो चुका है, अपने ही सरकार में धरने पर बैठना इस बात का सबूत हैं, कि बिल्डिगं की नींव हिल चुकी है। बिल्डिगं कब ढह जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन ढहना तय है।
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