हरीश द्विवेदी महाभारत के धृष्टराष्ट की तरह बस्ती को मिटाने में लगे!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 8 May, 2025 22:38
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हरीश द्विवेदी महाभारत के धृष्टराष्ट की तरह बस्ती को मिटाने में लगे!
-आखिर भाजपा रवींद्र गौतम के सच का सामना क्यों नहीं कर पा रही?
-इस बार एक और सच का आइना दिखाते हुए कहा, कि नेताजी के अहंकार ने बस्ती में भाजपा का लगभग राम नाम सत्य करवा ही दिया, एक दिया जो जल रहा, उसको भी बुझाने में लगें
-शक्तिदेव दूबे ने कहा कि एक दिया जो जल रहा है, उसको भी बुझाने में लगे हैं, जयश्रीराम
-हरीश ओझा ने लिखा कि खुद को खुदा मानने की गलतफहमी पतन का कारण बनती
-पत्रकार राज कुमार पांडेय लिखते हैं, जिस तरह से कमीषनबाजी हो रही है, और आरोप लग उसकी जांच आवष्यक
-विजय द्विवेदी लिखते हैं, प्रदेश नेतृत्व को बस्ती पर विचार करना चाहिए नही ंतो आगे का रास्ता कठिन हो जाएगा
-भाजपा के दिलीप शर्मा लिखते हैं, कि यह लड़ाई पार्टी को मजबूत करने के लिए नहीं बल्कि कौन कितना खा रहा है, कहां खा सकता है, कौन खिला सकता है, के लिए हो रही
-कामरेड केके त्रिपाठी कहते हैं, कि असलियत उजागर हो रही है, भाजपा मतलब हम भ्रष्टम के भ्रष्ट हमारे, मिसकाल्ड पार्टी
-क्या भाजपा का रामनाम सत्य हो जाने के बाद पार्टी के नेता रविंद्र गौतम के सच का सामना करेगें, तब तक तो बहुत देर हो जाएगी
-रविंद्र गौतम के एक पोस्ट ने राजनीति जगत में तहलका मचा दिया, सैकड़ों लोगों ने शेयर किया और न जाने कितनों ने कमेंट करते हुए कहा पोस्ट को सही कहा
-नेताजी के बारे में इससे पहले इतनी तीखी प्रतिक्रिया न तो सुनी गई और न पढ़ी ही गई
बस्ती। वैसे भाजपा के पूर्व महामंत्री रविंद्र गौतम न जाने कितनी बार पार्टी को सच का आईना दिखा चुके है। लेकिन सत्ता के नशे में चूर प्रांतीय नेतृत्व हर बार एक कर्मठी और पुराने कार्यकर्त्ता के सच को झुठलाती है, हालांकि इससे पार्टी को बहुत नुकसान हुआ और हो रहा है, फिर भी पार्टी रविंद्र गौतम जैसे लोगों का न तो सम्मान करती है, और न इनके सुझाव पर ध्या नही देती, इसके बावजूद यह आग उगलने वाले सच को निरंतर पत्रों और सोषल मीडिया के जरिए उजागर करते रहते है। इस बार इन्होंने जिस सच के आइने को दिखाया, उस सच को दिखाने की हिम्मत बहुत कार्यकर्त्ताओं में होती है, सच को उजागर वही व्यक्ति कर सकता हैं, जो भाजपा का सच्चा सिपाही होता है। बताते हैं, कि इनके कड़वे सच का सामना करने में किसी भी भाजपा के नेताओं में साहस नहीं हैं। यह आग हर उस कार्यकर्त्ता के दिल में लगी हुई, जिसकी उपेक्षा बराबर की गई। भाजपा को लगभग 40 साल देने वाले रविंद्र गौतम को आजकल यह समझ में नहीं आया कि आखिर उनकी उपेक्षा क्यों बार-बार की जा रही है, क्यों उनके स्थान उपर नेता के मनई-तनई को प्राथमिकता दी जाती? क्यों उनसे अधिक योग्य नेता के चालक को माना गया? यह सवाल रविंद्र गौतम जैसे अनेक कर्मठी कार्यकर्त्ता उन नेताओं से कह रहे हैं, और पूछ रहे हैं, कि आखिर उनकी गलती क्या है? क्यों उन्हें खाटी कार्यकर्त्ता के होने की सजा दी जा रही है? क्या इस लिए दी जा रही है, क्यों कि वह किसी के आदमी बनकर नहीं सकते या फिर इस लिए दी जा रही है, कि उनके पास टिकट खरीदने के पैसा नहीं। यह भी सच हैं, कि किसी कार्यकर्त्ता के पास टिकट खरीदने के लिए पैसा भले ही न हो लेकिन उसके पास पार्टी के लिए कुछ भी करने का जज्बा अवष्य रहता है। बहरहाल, इस बाजार रुपी राजनीति में वही सफल हैं, जिसकी जेब में माल हो। बिना माल वाले को कोई पूछता तक नहीं, जब कि पार्टी के प्रति सबसे अधिक वफादारी इन्हीं लोगों के पास होती।
बहरहाल, इस बार रविंद्र गौतम ने पार्टी को जिस सच से रुबरु कराया, उससे पार्टी में भूचाल आ गया। लिखा कि कहा, कि ‘नेताजी के अहंकार ने बस्ती में भाजपा का लगभग राम नाम सत्य करवा ही दिया, एक दिया जो जल रहा, उसको भी बुझाने में लगें है’ इसपोस्ट पर इतने कमेंट हुए कि शायद ही इससे पहले किसी पोस्ट पर इतना कमेंट हुआ होगा। सभी ने पूर्व सांसद को निशाना बनाते हुए पोस्ट किया। शक्तिदेव दूबे ने कहा कि एक दिया जो जल रहा है, उसको भी बुझाने में लगे हैं, जयश्रीराम। हरीश ओझा ने लिखा कि खुद को खुदा मानने की गलतफहमी पतन का कारण बनती। पत्रकार राज कुमार पांडेय लिखते हैं, जिस तरह से कमीशनबाजी हो रही है, और आरोप लग उसकी जांच आवष्यक। विजय द्विवेदी लिखते हैं, प्रदेश नेतृत्व को बस्ती पर विचार करना चाहिए नहीं तो आगे का रास्ता कठिन हो जाएगा, भाजपा के दिलीप शर्मा लिखते हैं, कि यह लड़ाई पार्टी को मजबूत करने के लिए नहीं बल्कि कौन कितना खा रहा है, कहां खा सकता है, कौन खिला सकता है, के लिए हो रही है। कामरेड केके त्रिपाठी कहते हैं, कि असलियत उजागर हो रही है, भाजपा मतलब हम भ्रष्टम के भ्रष्ट हमारे, यह मिसकाल्ड पार्टी है। नेताजी के बारे में इससे पहले इतनी तीखी प्रतिक्रिया न तो सुनी गई और न पढ़ी ही गई। अधिवक्ता रामेंद्र त्रिपाठी लिख्ते हैं, कि बस्ती की राजनीति में ऐसा घमासान पार्टी और संगठन को करना चाहिए जैसा आज तक इतिहास में न हुआ हो, लेकिन दुभार्ग्य है, कि किसी भी नेता में इच्छा शक्ति प्रबल नहीं है। क्या बताए मन मसोस कर रह जाता, दो टके के लोग आज बस्ती को छलने का काम जो कर रहे हैं, उनको चुन-चुनकर जबाव देने की क्षमता रखता हूं। शांत इस लिए हूं, क्यों कि बस्ती में भरोसेमंद लोग कम है, जनता बहुत अच्छी हैं, लेकिन नेता गलत फायदा उठा रहे हैं। सूर्यबली सिंह लिखते हैं, रविंद्र गौतम उन लोगों में से जिन्होंने पार्टी को पसीने और खून से सींचा। राम कृष्ण यादव लिखते हैं, कि अंहकार जिसको भी है, उसका पतन तय है, चाहें वह आम आदमी हो या फिर चाहें नेता। रामू गुप्त लिखते हैं, कि हम तो डूबेगें सनम तुमको भी ले डूबंगे। यही कार्यक्रम बस्ती में चल रहा है। बस्ती से भाजपा की राजनीति इस लिए समाप्त हो गई क्यों कि कुछ लोग भाजपा की राजनीति को अपनी बपौती समझ लिए थे, जो जनता को बिलकुल पसंद नहीं आया। सुनील कुमार अग्रहरि लिखते हैं कि हमने सुना है, बहादुरपुर में नकली प्रमुख 40 फीसद बखरा ले रहे है। इन लोगों को अब न पार्टी का ख्याल है, न कार्यकर्त्ताओं का, यह लोग सिर्फ इनकम का ख्याल रखते है। भाजपा के धर्मराज गुप्त लिखते हैं, कि जनपद में कौर ऐसा नेता है, और कौन ऐसा विभाग हैं, जिसके अधिकारी बिना बखरा के काम कर रहे। कमल किशोर शुक्ल लिखते हैं, जनपद में भाजपा शून्य ही हो गया है। देखिए आगे क्या होता। कहते हैं, कि भाजपा पार्टी नहीं परिवार हैं, और परिवार चलाने की जिम्मेदारी मुखिया की होती। मनोज मिश्र लिखते हैं, कि जिले के नेता मालामाल लाटरी लाभ योजना में लगे हुए है। कर्त्तव्यनिष्ठ, समर्पित एवं कर्मशील कार्यकर्त्ता एकांतवास और वनवासी कर दिए गए। अब पहले वाली भाजपा नहीं रही, अब इससे कोई जुड़ना भी नहीं चाहता। गिरिजेश दूबे कहते हैं, कि कष्ट यह है, कि यहां पर कार्यकर्त्ता काम करता, इस्तेमाल भी कार्यकर्त्ता ही होता, लेकिन उसे कोई नहीं पूछता अन्याय सहकर भी वह लगा रहता है, कार्यकर्त्ता के नाम पर नेता मलसई काट रहे है। प्रदीप कुमार दूबे लिखते हैं, कि जो किसी का दिया बुझाएगा प्रभु उसका दिया बुझा देगें।
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