है कोई, हर्रैया में अरविंद सिंह जैसा राजनीति का माहिर खिलाड़ी!
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 7 April, 2025 22:03
- 45

है कोई, हर्रैया में अरविंद सिंह जैसा राजनीति का माहिर खिलाड़ी!
-मौके का फायदा अगर किसी को उठाना सीखना है, तो वह अरविंद सिंह से सीख सकता, ना जाने कैसे इस बार अर्जुन गोड़ के मामले में यह फंस गए
-अगर यह माहिर खिलाड़ी ना होते तो यह सारे दलों की सरकारों में कभी खुद तो, कभी पत्नी, तो कभी बेटा, लगातार छह बार चेयरमैन की कुर्सी पर काबिज ना रहते
-जो व्यक्ति विधायक जगदंबा सिंह, सुखपाल पांडेय, अनिल सिंह, राम प्रसाद चौधरी, राजकिशोर सिंह हरीश द्विवेदी एवं विवेकानंद मिश्र का दामन थामकर कुर्सी हासिल कर सकता हैं, वह व्यक्ति राजनीति का कितना बड़ा खिलाड़ी होगा, अंदाजा लगाया जा सकता
-इतना लंबा कुशल राजनीति का सफर तय करने के बाद अगर जेल जाने की नौबत आती है, तो इसके लिए इनका बुरा दिन भी माना जा सकता
-इस माहिर खिलाड़ी का बुरा दिन लाने वाला और कोई नहीं हर्रैया क्षेत्र एक नेताजी है, इस नेता को अगर इग्नोर ना किए होते और हरीष द्विवेदी/विवेकानंद मिश्र का दामन ना थामे होते तो आज इन्हें जेल जाने की नौबत ना आती
-गन्ना विकास समिति विक्रमजोत की कुर्सी हासिल करने के लिए जितने भी दांव पेंच हो सकते थे, इन्होंने सभी आजमाया, लेकिन यह अर्जुन गोड़ के मामले में चूक गए
बस्ती। भले ही डाक्टर अरविंद सिंह कृषि विष्वविधालय कुमारगंज में फूलों में लगने वाले पादक नामक रोग के विशेषज्ञ रहें हों, लेकिन यहां पर इन्हें वह नाम और शोहरत नहीं मिला, जो इन्हें विक्रमजोत गन्ना समिति के चेयरमैन के रुप में मिला। देखा जाए, तो इनकी असली पहचान चेयरमैन बनने के बाद ही हुई, हालांकि इन्होंने कभी विधानसभा और लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन इनकी दखलंदाजी अवष्य रही। रामप्रसाद चौधरी ने जब इन्हें चेयरमैन बनाने में मदद किया तो उसका एहसान चुकाने के लिए इन्होंने लोकसभा चुनाव में खूब मदद किया। इनके बारे में कहा जाता है, कि इनसे बड़ा राजनीति का माहिर खिलाड़ी पूरे हर्रैया विधानसभा क्षेत्र में नहीं होगा। इन्होंने चेयरमैन की कुर्सी हासिल करने के लिए सभी दलों में अपना घुसपैठ बनाया, तभी तो इनके बारे में कहा जाता है, कि मौके का फायदा अगर किसी को उठाना सीखना है, तो वह अरविंद सिंह से सीख सकता, ना जाने कैसे इस बार अर्जुन गोड़ के मामले में यह फंस गए। अगर यह राजनीति के माहिर खिलाड़ी ना होते तो यह सारे दलों की सरकारों में कभी खुद तो, कभी पत्नी, तो कभी बेटा, लगातार छह बार चेयरमैन की कुर्सी पर काबिज ना रहते। जो व्यक्ति विधायक जगदंबा सिंह, सुखपाल पांडेय, अनिल सिंह, राम प्रसाद चौधरी, राजकिशोर सिंह हरीश द्विवेदी एवं विवेकानंद मिश्र का दामन थामकर कुर्सी हासिल कर सकता हैं, वह व्यक्ति राजनीति का कितना बड़ा खिलाड़ी होगा, इसका अंदाजा आसानी से कोई भी लगा सकता है। इतना लंबा कुशल राजनीति का सफर तय करने के बाद अगर इनके जेल जाने की नौबत आती है, तो इसके लिए इनका बुरा दिन ही माना जा सकता। इस माहिर खिलाड़ी का बुरा दिन लाने वाला और कोई नहीं बल्कि हर्रैया क्षेत्र एक नेताजी का नाम सामने आ रहा हैं, इस नेता को अगर इन्होंने इग्नोर ना किया होता और हरीष द्विवेदी/विवेकानंद मिश्र का दामन ना थामा होता तो आज इन्हें जेल जाने की नौबत ना आती। गन्ना विकास समिति विक्रमजोत की कुर्सी हासिल करने के लिए जितने भी दांव पेंच हो सकते थे, इन्होंने सभी को आजमाया, लेकिन यह अर्जुन गोड़ के मामले में चूक गए। यह अपने आका के भरोसे रह गए, हालांकि आका का ही प्रभाव रहा कि चार माह तक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। अगर नेताजी ना लगे होते तो सालों बीत जाते मुकदमा दर्ज नहीं होता। हालांकि इसे लेकर खूब चर्चा हो रही हैं, रामगढ़ के एक कार्यक्रम में तो बात इतनी बढ़ गई, थी, कि हाथापाई की नौबत आ गई थी। नेताजी कितना सफाई देते रह गए, कि एफआईआर के मामले में उनका कोई हाथ नहीं हैं, अगर होता तो चार माह पहले ही एफआईआर दर्ज हो जाता। नेताजी और अरविंद सिंह का यह मामला यहीं समाप्त होने वाला नहीं है, इसका प्रभाव समिति के 13 अप्रैल 25 को होने वाले एजीएम की बैठक में भी देखा जा सकता है। क्षेत्र के लोग कहते भी है, कि अरविंद सिंह के साहबजादे चेयरमैन की कुर्सी पर नहीं बैठ पाते, अगर बलराम सिंह तेलियाजोत ना जाते। एक तरह से देखा जाए तो इन्हें तेलियाजोत जाने का खामियाजा भुगतना पड़ा। क्यों कि सबसे पहले इन्होंने ही अरविंद सिंह के पुत्र की शिकायत की थी, यह कहते भी है, कि अगर उनकी शिकायत का निस्तारण प्रशासन कर देता तो सिद्वांत सिंह चेयरमैन ना बन पाते। यह सही है, कि सिद्वांत सिंह को आबादी की जमीन पर किसान बनाकर सदस्य बनाया गया, लेकिन यह भी सही है, कि बाद में इन्हें किसी के दिए गए दान की जमीन पर किसान बना दिया गया। लेकिन गलत को तो सही ठहराया नहीं जा सकता। वैसे सारा झगड़ा एजीएम की बैठक कराने और ना कराने को लेकर होने की चर्चा है।
Comments