एमपी, एमएलए, अध्यक्ष, प्रमुख, प्रधान बनते ही मिल जाता लूट का लाइसेंस!

एमपी, एमएलए, अध्यक्ष, प्रमुख, प्रधान बनते ही मिल जाता लूट का लाइसेंस!

एमपी, एमएलए, अध्यक्ष, प्रमुख, प्रधान बनते ही मिल जाता लूट का लाइसेंस!

-सारे भ्रष्टाचार की जड़ जनप्रतिनिधियों को मिलने वाला बजट, जनता को पता ही नहीं चलता कि उसके विकास के नाम पर आए बजट को नेताजी ने कब बेच दिया

-यही कारण है, कि अब जनता नेताओं के यहां नहीं जातीे, बल्कि ठेकेदार जातंे, भारी बखरा देकर सारा बजट ले कर चले जाते

-पूर्वांचल का शायद ही कोई ऐसा जनप्रतिनिधि होगा, जो अपना बजट न बेचता हो

-सिंचाई विभाग में नेताओं का टेंडर में हस्तक्षेप न करते तो अब तक लोहे और चांदी का तटबंध बन गया होता

-नेताओं के ठेकेदारों ने कागजों में बाढ़ के नाम पर सरजू नदी में इतना बोल्डर गिरा दिया, जितने में पूरी नदी पट जाती

-नेताओं का ठेका-पटटी में इतना हस्तक्षेप बढ़ गया, कि एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया, कि अगर उनके क्षेत्र में उनके इच्छा के विपरीत किसी ने टेंडर डाला तो सजा भुगतने को तैयार रहे

-कोई स्मारक के नाम पर तो कोई गेट तो कोई टस्ट के नाम पर बजट को बेचा, हमाम में सभी नंगे हो चुके

-सांसद, एमएलए और एमएलसी निधि का पैसा अदला-बदली करके अपने ही स्कूल में धन खपाकर जिंदगीभर के लिए आय का साधन बना लेते

-ठेका-पटटी को लेकर तो जिला पंचायत में आए दिन बाताकाही और नांेकझोंक होती रहती, कोई जिला पंचायत बेच रहा है, तो कोई खड़े-खड़े ग्राम पंचायत ही बेच दे रहा

बस्ती। यह सच है, कि एमपी, एमएलए, जिला पंचायत अध्यक्ष, प्रमुख और प्रधान बनते ही मानो उन्हें सरकारी धन को लूटने का लाइसेंस मिल गया हो। सारे भ्रष्टाचार की जड़ जनप्रतिनिधियों को मिलने वाला बजट को माना जा रहा है। जनता को पता ही नहीं चलता कि कब उसके नेताजी ने उसके विकास के नाम पर आए करोड़ो रुपये के बजट को खड़े-खड़े बेच दिया। पूर्वांचल का शायद ही कोई ऐसे जनप्रतिनिधि होगें, जो अपना बजट न बेचतें हो। कोई स्मारक के नाम पर तो कोई गेट तो कोई टस्ट तो कोई सड़कों का जाल बिछाने के नाम पर बजट को बेच रहें, ऐसा लगता है, मानो हमाम में सभी नंगे हो चुके है। बस्ती के नेताजी ‘माई धीया गौनहरु, बाप, पूत बराती’ के कहावत को सच कर रहे है। यही कारण है, कि अब जनता नेताओं के यहां नहीं जातीे, बल्कि ठेकेदार जातंे, और ठेकेदार भारी बखरा देकर सारा बजट खरीदकर चले जाते है। बजट खरीदने के बाद ठेकेदारों को इस बात की चिंता नहीं रहती कि वह निर्माण कार्य गुणवत्ताविहीन कर रहा या फिर बिना कार्य कराए ही भुगतान ले रहा है। इनकी चहेती कार्यदाई संस्था सिडको भुगतान करने से पहले यह तक देखने नहीं जाती कि निर्माण कार्यो की गुणवत्ता कैसी है? इस संस्था के जेई, एई और एक्सईएन अच्छी तरह जानते हैं, कि माननीयों के रहते न तो कोई जांच होगी और न कोई कार्रवाई, यहां तक कि कार्यो की गुणवत्ता को लेकर कोई शिकायत भी नहीं करेगा। कार्यदाई संस्था के चलते मिनी इंडोर स्टेडिएम का छज्जा गिर गया और एक मजदूर की मौत हो गई, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, एफआईआर तक नहीं दर्ज हुआ, क्यों कि यह मिनी इंडोर स्टेडिएम पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी के सांसद निधि से बन रहा था, और इसकी कार्यदाई संस्था सिडको है। सवाल उठ रहा है, कि एक मजदूर के जान की कीमत माननीयों और सिडको के सामने क्या है? इसी कार्यदाई संस्था के द्वारा महादेवा विधानसभा क्षेत्र में बनाए जा रहे पुलिया ढ़ह गया, विधायक दूधराम ने कार्यदाई संस्था के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किया, बल्कि कहा गिर गया तो तो क्या हुआ, फिर बन जाएगा। अब आप समझ गए होगें कि क्यों जनता बजट को बेचने की बात बार-बार कह रही है। माननीयगण सिर्फ बजट ही नहीं बेचते बल्कि उन ठेकेदारों का बचाव भी करते हैं, जिनके हाथों में बजट बेचा। जिस जिले में जनप्रतिनिधि बजट बेचते हांे, अगर उस जिले के अधिकारी बेलगाम हैं, तो गलती किसकी? सोचिए, जबाव मिल जाएगा। अधिकारी अच्छी तरह जानते हैं, कि कोई भी नेता उनका विरोध इस लिए नहीं कर सकता, क्यों कि उन्हें डर रहता है, कि अगर विरोध किया तो कहीं उनकी बजट बेचने वाली कलई न खुल जाए, कहीं उनकी दुकानंे न बंद हो जाए? कहीं उनके निधियों के निर्माण कार्यो की जांच न हो जाए? अब आप यह भी अव्छी तरह समझ गए होगें कि जिले के अधिकारियों पर क्यों बेलगाम और लापरवाही बरतने का आरोप बार-बार जनता, नेता और भाजपा के सहयोगी दल के मंत्री और विधायक लगा रहें हैं। भले ही अधिकारी चाहें जितना मनमानी और लापरवाही क्यों न करें, कोई नेता बोलने वाला नहीं, मुख्यमंत्री तक बात पहुंचाना तो बहुत दूर की बात है। अब आप को यह भी लग गया होगा कि अधिकारियों की मनमानी और बेलगाम होने की बातें क्यों नहीं सीएम तक पहुंच पा रही है? क्यों पूर्व सांसद ने जिले के माननीयगण को अक्षम बताया था? सिंचाई विभाग में नेताओं का अगर टेंडर में हस्तक्षेप न होता तो अब तक लोहे और चांदी का तटबंध बन गया होता, नेताओं के ठेकेदारों ने कागजों में बाढ़ के नाम पर सरजू नदी में इतना बोल्डर गिरा दिया, जितने में पूरी नदी पट जाती। नेताओं का ठेका-पटटी में इतना हस्तक्षेप बढ़ गया, कि एक विधायक ने तो यहां तक कह दिया, कि अगर उनके क्षेत्र में उनके इच्छा के विरुद्व किसी ने टेंडर डाला तो सजा भुगतने को तैयार रहे। सांसद, एमएलए और एमएलसी निधि का पैसा अदला-बदली करके अपने ही स्कूल में धन खपाकर जिंदगीभर के लिए आय का साधन बना लेते। ठेका-पटटी को लेकर तो जिला पंचायत में आए दिन बाताकाही और नांेकझोंक होती रहती, कोई जिला पंचायत बेच रहा है, तो कोई खड़े-खड़े ग्राम पंचायत को ही बेच दे रहा। बेच सभी रहें है। तभी तो कोई विधायक एक सचिव का तबादला तक नहीं करवा पाता

ऐसे में क्या आशीषजी का आंदोलन सफल हो पाएगा?

वाल उठ रहा है, ऐसे में आशीष शुक्ल ‘सैनिक’ के भ्रष्टाचार मिटाने के आंदोलन का क्या होगा? जिले से भ्रष्टाचार और अत्याचार मिटना तब तक कम नहीं होगा, और जब तक श्रीशुक्ल का आंदोलन सफल नहीं होगा, जबतक नेता बजट बेचना बंद नहीं करेगें। जाहिर सी बात हैं, कि इस लड़ाई का क्या अंजाम होगा? यह सभी को अभी से मालूम है। जिले के लगभग 28 लाख लोगों को यह अच्छी तरह मालूम हैं, कि आशीषजी भले ही चाहें जितना आंदोलन कर लें, लेकिन उनका नेता बजट बेचना नहीं बंद करेगा। भले ही चाहें आशीष शुक्ल जैसे न जाने कितने लड़ाई लड़ते-लड़ते कुर्बान हो जाए लेकिन जिले से न तो भ्रष्टाचार समाप्त होगा और न अत्याचार ही कम होगा। जिस नेताओं ने भ्रष्टाचार करना और बजट बेचना बंद कर दिया, और भ्रष्टाचार मिटाने के आंदोलन में शामिल हो गए, उस दिन कम से कम जिले के अधिकारियों पर बेलगाम होने और मनमानी करने का आरोप नहीं लगेगा। क्या जिले के सांसद, विधायक, एमएलसी, जिला पंचायत अध्यक्ष, प्रमुख और प्रधान इसके लिए तैयार हैं?

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