एक नंबर का पैसा मेडिकल कालेज से, दो का प्राइवेट नर्सिगं होम से!

एक नंबर का पैसा मेडिकल कालेज से, दो का प्राइवेट नर्सिगं होम से!

एक नंबर का पैसा मेडिकल कालेज से, दो का प्राइवेट नर्सिगं होम से!

-मेडिकल कालेज बस्ती के आधा दर्जन डाक्टर वेतन तो सरकार से ले रहे, लेकिन सेवा प्राइवेट अस्पतालों में दे रहें

-असिस्टेंट प्रोफेसर पद का लाभ उठाकर यह डाक्टर अस्पताल से इच्छित नर्सिगं होम में ले जाकर आपरेशन करती

-कोई सर्जन सर्जरी कर रहा है, तो कोई आर्थोपैथिक वाला हडडी का आपरेशन कर रहा है, तो कोई गाइनी डिलीवरी करवा रहा तो कोई रेडियोलाजिस्ट आपरेशन कर रहा

-दो हजार के इम्पलांट को 17-17 हजार में मेडिकल कालेज के आर्थो सर्जन, हर डाक्टर  ने दलाल पाल रखा, जब कि इन सभी ने शपथ-पत्र दिया है, कि वे लोग प्राइवेट प्रेक्टिस नहीं करेगें

-सर्जन डा. शैलेंद्र अधिकतर यह मरीज को कैली अस्पताल से बरगला कर एमएस हास्पिटल ले जाते, आर्थो वाले डा. विजय शंकर स्टेशन रोड के प्राइवेट अस्पताल में ले जाकर आपरेशन करते और पहले नंबर पर चल रही गाइनी डा. वंदना टीवी अस्पताल के सामने रेडियंट अस्पताल लेजाकर आपरेशन करती, अधिकांश मरीज आयुषमान के होतें,

-रेडियोलाजिस्ट डा. राजेश पासवान यह तो सबके फादर हैं, इनकी और किरन सर्जिकल के बीच एक समझौता हैं, कि आपरेशन पासवान करेगें और भर्ती एवं इलाज किरन सर्जिकल वाले करेगें, यानि दोनों मिलकर मरीजों का खून चूसेगें, भले ही चाहें मरीज मर ही क्यों न जाए?

बस्ती। मेडिकल कालेज को हथियार बनाकर मरीजों का खून चूसने वाले डाक्टरों की कोई कमी नहीं है। मेडिकल कालेज के जो असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन करने से पहले यह शपथ लेतेे हैं, कि वह अपने पेशे के साथ कभी गददारी नहीं करेगें और न ही प्राइवेट प्रेक्टिस ही करेगें, वही सबसे अधिक अपने पेशे और मेडिकल कालेज प्रशासन के साथ गददारी करते है। मेडिकल कालेज के जो डाक्टर अपना ईमान और धर्म बेचकर पैसा कमा रहे हैं, उन्हें जरा भी इस बात का एहसास नहीं कि वह कितना बड़ा सामाजिक अपराध कर रहे हैं, पैसे के लिए पवित्र पेशे को बदनाम कर रहे है। पैसे के लिए मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे है।

अभी तक तो जिला अस्पताल, महिला अस्पताल, सीएचसी और पीएचसी के सरकारी डाक्टरों पर मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़कर पैसा कमाने का आरोप लगता रहा, लेकिन अब तो मेडिकल कालेज के डाक्टरों पर भी मरीजों का खून चूसने का आरोप लगने लगा। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि क्या डाक्टर्स ने इस पेशे को मानव सेवा के रुप में अपनाया या फिर मरीजों का खून चूसने को अपना धर्म बनाया? यह भी सवाल उठ रहा है, कि क्या बिना मरीजों का खून चूसे सर्वाइव नहीं किया जा सकता? पत्रकारों को दोष देने वाले डाक्टर्स मरीजों की नजर में सबसे बड़े दोषी है। बयानबाजी करके यह न तो अपने को निर्दोष साबित कर सकते और दूसरे को दोषी ही बना सकते है। सुधरने की जरुरत पत्रकारों को नहीं बल्कि डाक्टर्स को है। अगर इन्हें पुराना रुतबा हासिल करना है, तो पुराने ढर्रे पर चलना होगा, भगवान का दर्जा हासिल करना होगा, मुसीबत पड़ने पर मरीजों को अपना खून तक देना होगा, मानवता दिखानी होगी, मदर टेरेसा जैसा मानव सेवा करना होगा। कठिन तो हैं, लेकिन नामुमकिन नहीं।  आईए अब हम आपको मेडिकल कालेज के डाक्टर्स का सच बताने जा रहे है। मेडिकल कालेज इसी लिए बनाया गया है, ताकि मरीजों का निःशुल्क अच्छा इलाज हो सके, उन्हें अन्य सरकारी अस्पतालों की अपेक्षा बेहतर सुविधा मिल सके, यहां पर वेल क्वालीफाईड डाक्टर्स मिलेगें। देखा जाए तो सरकार की योजना में कोई कमी नहीं है। कमी है, तो डाक्टर्स में। अगर मेडिकल कालेज का डाक्टर्स किसी गरीब मरीज से यह कहे कि अगर बेहतर सुविधा और जान की हिफाजत चाहिए तो मेरे बताए नर्सिगं होम में जाना होगा। जिस मेडिकल कालेज में बेहतर से बेहतर सुविधा और इलाज हो रहा है, वही मेडिकल कालेज यहां के डाक्टर्स को सुविधाविहीन बता रहा है। इन्हें इस लिए मेडिकल कालेज से बेहतर नर्सिगं होम नजर आ रहा है, क्यों कि इन्हें मरीजों का जो खून चूसना होता है। मेडिकल कालेज का प्रशासन इस लिए जिला अस्पताल सहित अन्य सरकारी अस्पतालों से बेहतर और पारदर्शी माना जाता है, क्यों कि मेडिकल कालेज का प्रिसिंपल सीएमओ, एसआईसी, एमओआईसी की तरह बेईमान और चोर नहीं होते। मेडिकल कालेजों में मरीजों की समस्याओं को सुना जाता है, निस्तारण भी किया जाता है। उसे सीएमओ और एसआईसी की तरह दबाया या फिर सौदेबाजी नहीं की जाती। यह सही है, कि मेडिकल कालेज के कुछ डाक्टर्स की वजह से बदनामी हो रही है।

अगर मेडिकल कालेज महामाया के सर्जन और ओमवीर हास्पिटल के डाक्टर नवीन चौधरी का मामला सामने न आया होता और पल्टू नामक मरीज की मौत न हुई होती तो किसी को यह पता नहीं चलता कि मेडिकल कालेज के डाक्टर्स भी ऐसे हो सकते हैं। जब इसकी छानबीन बस्ती के मेडिकल कालेज के डाक्टरों के बारे में की गई तो पता चला कि इस मेडिकल कालेज में एक डाक्टर नवीन चौधरी नहीं बल्कि उनके जैसे अनेक डाक्टर्स है। मरीज की जान लेने वालों में जिले के जानेमाने रेडियोलाजिस्ट डा. राजेष पासवान भी है। दुनिया के यह पहले ऐसे सरकारी डाक्टर होगें जिन्होंने रेडियोलाजिस्ट होने के बाद भी मरीज के फोड़े का आपरेशन किया, जिसके चलते गालुर यादव की मौत हो गई। इस मामले में डा. पासवान के आलावा मरीज के परिजन ने किरन सर्जिकल वाले डा. एसपी चौधरी को भी जिम्मेदार माना। मेडिकल कालेज बस्ती के आधा दर्जन डाक्टर वेतन तो सरकार से ले रहे, लेकिन सेवा प्राइवेट अस्पतालों में दे रहें। असिस्टेंट प्रोफेसर पद का लाभ उठाकर यह डाक्टर अस्पताल से मरीजों को इच्छित नर्सिगं होम में ले जाकर आपरेषन करते/करती। कोई सर्जन सर्जरी कर रहा है, तो कोई आर्थोपैथिक वाला हडडी का आपरेशन कर रहा है, तो कोई गाइनी डिलीवरी करवा रहा तो कोई रेडियोलाजिस्ट आपरेशन कर रहा। दो हजार के इम्पलांट को 17-17 हजार में मेडिकल कालेज के आर्थो सर्जन बेच रहे हैं, इनपर दलाल पालने का आरोप लग रहा है, मरीजों से यह कहते हैं, कि फंला आदमी से संपर्क करो। जब कि इन सभी ने शपथ-पत्र दिया है, कि वे लोग प्राइवेट प्रेक्टिस नहीं करेगें। सर्जन डा. षैलेंद्र अधिकतर यह मरीज को कैली अस्पताल से बरगला कर एमएस हास्पिटल ले जाते, आर्थो वाले डा. विजय शंकर स्टेशन रोड के प्राइवेट अस्पताल में ले जाकर आपरेशन करते और पहले नंबर पर चल रही गाइनी डा. वंदना टीवी अस्पताल के सामने रेडियंट अस्पताल ले जाकर आपरेशन करती, अधिकांश मरीज आयुषमान के होतें। चूंकि डिलीवरी के मामले में मेडिकल नंबर वन पर चल रहा है, इसका फायदा गाइनी वंदना उठा रही है। रेडियोलाजिस्ट डा. राजेश पासवान यह तो सबके फादर हैं, इनकी और किरन सर्जिकल के बीच एक समझौता हैं, कि आपरेशन पासवान करेगें और भर्ती एवं इलाज किरन सर्जिकल वाले करेगें, यानि दोनों मिलकर मरीजों का खून चूसेगें, भले ही चाहें मरीज मर ही क्यों न जाए? जब भी प्रिंसिपल दबाव बनाते हैं, तो यह लोग इस्तीफा देने की धमकी देते हैं, और कहते हैं, कि डेढ़ लाख की सैलरी में क्या होता है? चूंकि मेडिकल कालेज फैक्लटी की कमी से जूझ रहा है, इस लिए मेडिकल कालेज प्रशासन भी ऐसे खून चुसवा डाक्टर्स के खिलाफ कोई एक्षन नहीं ले पा रहे है। बहरहाल, दो-चार को छोड़कर जिले भर के अन्य डाक्टर्स मानवता को ताक पर रखकर पैसा कमाने में लगे है। पहले की तरह अब इनके भीतर मरीजों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं रह गई।

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