एआर और कृषि विभाग की टीम मिलकर करा रहें, खाद की कालाबजारी!

एआर और कृषि विभाग की टीम मिलकर करा रहें, खाद की कालाबजारी!

एआर और कृषि विभाग की टीम मिलकर करा रहें, खाद की कालाबजारी!

-नहीं रहा इन्हें किसी का डर, डीएम की सिधाई का फायदा उठा रहे हैं, दोनों विभागों के अधिकारी

-डीएम के आदेश के बाद भी अभी तक किसानों और मीडिया को खाद की उपलब्धता के बारे में कोई नहीं दी

-होल सेलर रिटेलर से कमा रहा है, और रिटेलर किसानों को चूना लगा रहा, अधिकारी रिटेलर्स और होल सेलर्स दोनों से धन की उगाही कर रहें

-अधिकारियों, रिटेलर्स और होल सेलर्स के बीच किसान पिसकर रह रहा है, पूरा प्रशासनिक अमला मिलकर भी किसानों को एक बोरी खाद तक उचित दाम में नहीं दिला पा रहें, ऐसे प्रशासन और विभागों की टीम का क्या फायदा जब किसानों को अधिक मूल्य पर खाद लेना

-जिला स्तरीय निरीक्षण टीम जिसमें जिला कृषि अधिकारी, अतिरिक्त जिला कृषि अधिकारी, पीपीओ, उप निदेषक कृषि, एसडीओ एवं भूमि संरक्षण अधिकारी ने एक भी न तो होलसेलर्स के गोदामों का निरीक्षण किया, और न रैक प्वाइंट पर आने वाले खाद का ही नूमना और जांच किया

-पूरा जिला खाद में जल रहा है, और अधिकारी, बाबू और समितियों के सचिव नोट बटोरने में लगे हुए

-अपर कृषि निदेशक चावल खाद की कालाबाजारी की जांच करने आए, निर्देश तो किसानों से मिलकर समस्या जाने का था, लेकिन जैसे ही मोटा लिफाफा मिला यह सारे निर्देश भूल गए जैसे खाली हाथ आए थे वैसे खाली हाथ चले गए

बस्ती। हर साल सरकार किसानों की आय को दोगुना करने का एचएमबी रिकार्ड बजाती हैं, लेकिन सवाल उठ रहा कि आखिर किसानों की आय कैसे दोगुनी होगी, जब उनके आय का बड़ा हिस्सा ब्लैक में खाद लेने में चला जाएगा। हर साल खाद की कालाबाजारी जिला कृषि अधिकारी और एआर की टीम मिलकर करवाती है। इन अधिकारियों का चिंता किसानों को समय से और चिंता दाम पर खाद उपलब्ध कराने की नहीं रहती है, बल्कि इनकी चिंता अधिक से अधिक खाद की कालाबाजारी के जरिए नोट कमाने की रहती है। उचित दाम और समय से खाद उपलब्ध कराने की तो बात ही छोड़ दीजिए, यह लोग किसानों को खाद कहां-कहां उपलब्ध हैं, इसकी भी जानकारी नहीं दे पाते, अगर किसानों को यह पता चल जाए कि अमूक रिटेलर्स या समिति पर खाद उपलब्ध हैं, तो यकीन मानिए किसान रिटेलर्स और सचिवों से निपट लेगा, जो जिला कृषि अधिकारी खाद की उपलब्ध्ता तक की जानकारी मीडिया और किसानों को न दे सके, वह अधिकारी कहने के लायक नहीं, जिले के किसानों का यह दुर्भाग्य हैं, उसे सिद्धाथनगर जैसा डीएम नहीं मिला, जिले के किसानों को इतना सीधा डीएम मिले जिनकी बात जिला कृषि अधिकारी नहीं सुनते। मीडिया की शिकायत पर डीएम ने जिला कृषि अधिकारी को फोन पर कड़े में आदेश दिया था, कि सूचना विभाग को प्रत्येक दिन खाद की उपलब्धता की जानकारी दी जाए, ताकि मीडिया के जरिए किसानों को पता चल सके कि खाद कहां-कहां उपलब्ध है। आदेश दिए चार दिन हो गए, लेकिन अभी तक डीएओ ने सूचना विभाग को कोई जानकारी नहीं, अगर दिया होता तो मीडिया को पता चल जाता। अब आप समझ गए होगें, जिले का किसान क्यों सिद्धार्थनगर जैसा डीएम चाहता है। क्यों कि नहीं रहा अधिकारियों का डर डीएम का नहीं रह गया, अधिकारी डीएम की सिधाई का खूब फायदा उठा रहे हैं। जिसका सबसे बड़ा सबूत डीएम के आदेश के बाद भी अभी तक किसानों और मीडिया को खाद की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।  जानकारी देने के बजाए वसूली में लगे हुएं है। होल सेलर रिटेलर से कमा रहा है, और रिटेलर किसानों को चूना लगा रहा, अधिकारी रिटेलर्स और होल सेलर्स दोनों से धन की उगाही कर रहें है। अधिकारियों, रिटेलर्स और होल सेलर्स के बीच किसान पिसकर रह जा रहा है, पूरा प्रशासनिक अमला मिलकर भी किसानों को एक बोरी खाद तक उचित दाम में नहीं दिला पा रहा, आखिर किसान करे तो क्या करें? ऐसे प्रशासन और विभागों की टीम के होने से क्या फायदा जब किसानों को अधिक मूल्य पर खाद लेना पड़े। जिला स्तरीय निरीक्षण टीम जिसमें जिला कृषि अधिकारी, अतिरिक्त जिला कृषि अधिकारी, पीपीओ, उप निदेशक कृषि, एसडीओ एवं भूमि संरक्षण अधिकारी ने एक भी न तो होलसेलर्स के गोदामों का निरीक्षण किया, और न रैक प्वाइंट पर आने वाले खाद का ही नूमना और जांच किया। पूरा जिला खाद में जल रहा है, अधिकारी, बाबू और समितियों के सचिव नोट बटोरने में लगे हुए है। अपर कृषि निदेशक चावल खाद की कालाबाजारी की जांच करने आए, निर्देश तो किसानों से मिलकर समस्या जानने का था, लेकिन जैसे ही मोटा लिफाफा मिला यह सारे निर्देश भूल गए आए तो थे खाली हाथ और गए हाथ में मोटा लिफाफा लेकर। कहने का मतलब किसानों के नाम पर जिला स्तर और राजधानी स्तर के अधिकारी अपनी जेबें भर रहे हैं, किसानों की समस्याओं से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया, जाहिर सी बात जब समस्याओं के बीच किसान खेती बारी करेगा तो उसकी माली हालत कैसे सुदृढ़ होगी, कैसे उसकी आय दोगुना करने की सरकार की मंशा पूरी होगी। किसानों का कहना है, अगर प्रशासन वाकई जांच करवाना चाहता है, तो डीलर्स टू रिटेलर्स की जांच होनी चाहिए। खाद के इस क्राइसिस के दौर में अगर अपर कृषि निदेशक चावल लगभग 15 होल सेलर्स को क्लीन चिट दे रहे हैं, तो सवाल तो कृषि निदेशक और विभागीय मंत्री पर भी उठेगा। सवाल उठ रहा है, कि जब होल सेलर्स ही रिटेलर्स को 20 रुपया प्रति बोरी अधिक मूल्य लेकर खाद देगा तो जाहिर सी बात हैं, कि रिटेलर्स किसानों से 50 रुपया बोरी अधिक लेगा। अधिक मुनाफा कमाने के लिए वह खाद को नेपाल भी भेजेगा। कहा जा रहा है, कि अगर प्रशासनिक अमला और विभाग मिलकर 15 होल सेलर्स पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं, तो 1700-1800 रिटेलर्स पर क्या रख पाएगें? ऐसा लगता है, कि मानो विभाग और प्रशासन ने खाद वितरण के लिए कोई ठोस योजना बनाया ही नहीं। बनाया होता तो किसानों को एक-एक बोरी के लिए इतनी मेहनत न करनी पड़ती।

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