डाक्टर्स नहीं, हम आप से प्यार करतें, हम्हें स्वीकारिए!

डाक्टर्स नहीं, हम आप से प्यार करतें, हम्हें स्वीकारिए!

 डाक्टर्स नहीं, हम आप से प्यार करतें, हम्हें स्वीकारिए!

-यह अपील उन मरीजों से की जा रही है, जिन्हें डाक्टर्स सस्ती और असरकारक जेनरिक दवाएं नहीं लिखते, बल्कि महंगी ब्राडेंड दवाएं लिखते, जिससे मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, और डाक्टर्स का लाभ होता

-जेनरिक दवाएं कहती है, कि हम मरीजों को सुरक्षित रखते हैं, और उनका पैसा भी बचाते, कहते हैं, कि पेसेंट लव मी, आई एम चीप

-वहीं ब्रंाडेड दवाएं कहते हैं, कि आई एम ब्रांडेड, हम डाक्टर्स और कंपनी से प्यार करते, क्यों कि आई एम कास्टली

-जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल करके पढ़े लिखे मरीज उन लालची डाक्टर्स को अवष्य सबक सिखा सकते हैं, औ।र कह सकते हैं, कि अब हम लोग जाग गए हैं, और आपके झांसे में नहीं आने वाले

-मरीजों को सरकार या फिर डाक्टर्स के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्यों कि सरकार ब्रांडेउ कंपनियों के हाथों बिक चुकी है, और डाक्टर्स खून चुसवा हो गएं

-डाक्टर्स के पास अवष्य जाइए और उनकी फीस भी दीजिए, लेकिन उनके मेंडिकल स्टोर्स ने मत खरीदिए, जन औषधि केंद्र पर जाइए, यकीन मानिए कीमत देखकर आप का माथा ठनक जाएगा, तब आप को पता चलेगा कि क्यों डाक्टर्स एक रुपये जेनरिक टेबलेट को 77 रुपये में ब्राडेंड का बेचतें

-मरीजों को अगर सूदखोरों और खून चुसवा डाक्टर्स से बचना है, तो जेनरिक दवाएं मरीजों की मदद कर सकती हैं, याद रखिए पुलिस और सरकार आप को इन दोनों के चंगुल से नहीं बल्कि जेनरिक दवाएं ही छुटकारा दिला सकती

-जिस दिन से मरीजों और आम लोगों ने जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया, उसी दिन मरीजों के परिजन चैन की नींद सो सकेगें, तब उन्हें इस की चिंता नहीं रहेगी कि डाक्टर्स के द्वारा लिखे गए मंहगी ब्रांडेड दवाओं को खरीदने के लिए पैसा कहा से आएगा?

-आज के अधिकांष खून चुसवा डाक्टर्स को अपनी फीस और मरीज से अधिक ब्रांडेड दवाएं लिखने की रहती है, तभी तो मर्ज एक और दवाएं एक दर्जन, वह भी प्रोपेंडा बेस की दवाएं, जिसमें 70 फीसद तक कमीशन मिलता

-डाक्टर्स के पास सबसे अधिक उन दवा के कंपनी के एमआर जाते हैं, जिनकी दवाएं या तो असरकारक नहीं रहती या फिर जिसके लिखने पर फारेन टूर पैकेज सहित अन्य लुभावने आफर होते

-बहुत कम ऐसे डाक्टर्स होगें जो गरीब मरीजों की परेषानियां और उनके आर्थिक पहलू को ध्यान में रखकर इलाज करते होगें, कैसे अधिक से अधिक मरीजों से पैसा एंठा जा सके इस पर सारा ध्यान रहता

बस्ती। मरीजों और उनके परिजनों को अगर सूदखोरों और खून चुसवा डाक्टर्स के चगंुल से छुटकारा पाना और चैन की नीद सोना हैं, तो जेनरिक दवाओं पर भरोसा करना ही होगा, यकीन मानिए, जिस भी मरीज ने जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल किया, उन सभी ने डाक्टर्स को कोसा बुरा भला और खून चुसवा तक कहा। कहा जाता है, कि डाक्टर्स के पास अवष्य जाइए और उनकी फीस भी दीजिए, लेकिन उनके मेंडिकल स्टोर्स से दवाएं मत खरीदिए, जन औषधि केंद्र पर जाइए, एक बार जाएगें तो कीमत देखकर आप का माथा ठनक जाएगा, तब आप को पता चलेगा कि क्यों डाक्टर्स एक रुपये जेनरिक टेबलेट को 77 रुपये में ब्राडेंड का बेच रहें है। यह अपील उन मरीजों से भी की जा रही है, जिन्हें डाक्टर्स सस्ती और असरकारक जेनरिक दवाएं नहीं लिखते, बल्कि महंगी ब्राडेंड दवाएं लिखते, जिससे मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है, और डाक्टर्स का लाभ होता है। जेनरिक दवाएं कहती है, कि हम मरीजों को सुरक्षित रखते हैं, और उनका पैसा भी बचाते, यह भी कहते हैं, कि पेसेंट लव मी, आई एम चीप, वहीं ब्रंाडेड दवाएं कहते हैं, कि आई एम ब्रांडेड, हम डाक्टर्स और कंपनी से प्यार करते, क्यों कि आई एम कास्टली। जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल करके पढ़े लिखे मरीज उन लालची डाक्टर्स को अवष्य सबक सिखा सकते हैं, और बता सकते हैं, कि अब हम लोग जाग गए हैं, और आपके झांसे में आने वाले नहीं है, जो मरीजों की जेबों को खाली करते है।  मरीजों को सरकार या फिर डाक्टर्स के भरोसे नहीं रहना चाहिए क्यों कि सरकार ब्रांडेड कंपनियों के हाथों बिक चुकी है, और डाक्टर्स खून चुसवा हो गए।ं जो दवा आप नर्सिगं होम या फिर बाहर के मेडिकल स्टोर्स में एक हजार की खरीदते हैं, उसी फारमूले और वही दवा आप को जन औषधि केंद्र पर मुस्किल से सौ दो सौ रुपये में मिल जाएगा। याद रखिए पुलिस और सरकार आप को सूदखोरों और लालची किस्म के डाक्टर्स के चंगुल से नहीं बल्कि जेनरिक दवाएं ही छुटकारा दिला सकती है। जिस दिन से मरीज और आम लोगों ने जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल करना षुरु कर दिया, उसी दिन मरीजों के परिजन चैन की नींद सो सकेगें, तब उन्हें इस बात की चिंता नहीं रहेगी कि डाक्टर्स के द्वारा लिखे गए मंहगी ब्रांडेड दवाओं को खरीदने के लिए पैसा कहां से आएगा?

आज के अधिकांष खून चुसवा डाक्टर्स को अपनी फीस और मरीज से अधिक ब्रांडेड दवाएं लिखने की चिंता रहती है, तभी तो मर्ज एक और दवाएं एक दर्जन, वह भी प्रोपेंडा बेस की दवाएं, जिसमें 70 फीसद तक कमीशन मिलता है। डाक्टर्स के पास सबसे अधिक उन दवा के कंपनी के एमआर जाते हैं, जिनकी दवाएं या तो असरकारक नहीं रहती या फिर जिसके लिखने पर फारेन टूर पैकेज सहित अन्य लुभावने आफर होते है। बहुत कम ऐसे डाक्टर्स होगें जो गरीब मरीजों की परेशानियां और उनके आर्थिक पहलू को ध्यान में रखकर इलाज करते होगें, कैसे अधिक से अधिक मरीजों से पैसा एंठा जा सके इस पर सारा ध्यान अधिक रहता है। एक भी डाक्टर का जेनरिक दवाओं को परमोट न करना और मरीजों को न लिखना यह बताता है, कि डाक्टर्स के लिए सबकुछ पैसा ही हो गया है। अधिकांष डाक्टर्स को मरीजों से नहीं बल्कि नोटों से प्यार है। इसी लिए जेनरिक दवाएं कहती है, कि आई लव पेसेंट, बिकाज आईएम चीप एंड इफेक्टिव।

सरकार ने नाम तो जन औषधि रख दिया लेकिन जन-जन तक नहीं पहुंचाया। जबकि सस्ती दवाएं घर-घर की जरुरत है। पीएम मोदी इसे घर-घर तक पहुंचाने में पूरी तरह नाकाम है। यहां तक कि आज तक पीएम अपने सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवाओं की आपूर्ति को अनिवार्य नहीं बना सके, जब कि चाहें तो एक मिनट में हो जाए, इसी लिए मोदी के बारे में कहा जाता है, कि इनकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर होता है। अगर सरकार जेनरिक दवाओं को सिर्फ सरकारी अस्पतालों में अनिवार्य कर दें तो सरकार का अरबों रुपये का बचत तो होगा ही साथ ही डाक्टर्स बाहर की दवाएं भी नहीं लिख पाएगें। कहना गलत नहीं होगा कि सरकार ही नहीं चाहती कि जेनरिक दवाओं को बढ़ावा मिले। अगर चाहती तो आज गरीब मरीजों के परिजन को सूदखोरों और लालची डाक्टर्स के चंगुल में फंसकर जमीन, घर और जेवर को गिरवी न रखना पड़ता। कहना गलत नहीं होगा कि सरकार की नाकामी ने गरीबों से जेनरिक दवाओं को छीन लिया, उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया, मोदीजी अपना नाम लिखाकर आपने कोई महान काम नहीं किया, महान तो उस दिन जनता मानती जब घर-घर जेनरिक दवाएं पहुंचती।

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