छठें दामाद को नौकरी देने में कहीं हाजी मुनीर को जेल की हवा ना खानी पड़े!

छठें दामाद को नौकरी देने में कहीं हाजी मुनीर को जेल की हवा ना खानी पड़े!

छठें दामाद को नौकरी देने में कहीं हाजी मुनीर को जेल की हवा ना खानी पड़े!

-हाईकोर्ट के आदेश को हाजी मुनीर ने मानने से किया इंकार, अवमानना की नोटिस जारी ऐसे में इनके छठें ‘दामाद’ को ‘नौकरी’ देने का सपना तो चकनाचूर होगा ही साथ ही जेल की हवा भी खानी पड़ सकती

-जिदद और पैसे की अकड़ में यह अपने साथ जिला अल्प संख्यक अधिकारी और निंबधक को भी ले डूबेंगे

हाईकोर्ट ने छह जनवरी 25 को सभी तीनों आरोपियों को प्रस्तुत होने का नोंटिस जारी किया, अगर छह जनवरी से पहले बर्खास्त गुलाम हुसैन को नहीं ज्वाइन कराया तो कोर्ट तीनों को सजा भी सुना सकती

-दूषित व्यवस्था से लड़ते-लड़ते गुलाम हुसैन का मकान तक बिक चुका, सिर पर लाखों का कर्ज

-छह जनवरी 25 को कप्तानगंज स्थित मदरसा दारुल उलूम सुन्नत फैजुन्नवी के प्रबंधक हाजी मुनीर की तानाषाही को न्यायालय समाप्त कर सकता

बस्ती। कप्तानगंज स्थिति मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजुन्नवी के प्रबंधक हाजी मुनीर अली ने हाईकोर्ट के आदेश को ना मानकर बहुत बड़ी गलती की है, कोर्ट ने इनके साथ में अन्य को भी छह जनवरी 25 को व्यक्तिगत उपस्थित होने का आदेष दिया, अगर यह लोग छह जनवरी से पहले हाईकोर्ट के आदेष को मानकर बर्खास्त गुलाम हुसैन को ज्वाइन नहीं करवाया तो कोर्ट अवमानना के आरोप में हाजी मुनीर अली के साथ अन्य को जेल की सजा भी सुना सकती है। जिस तरह हाजी मुनीर अली ने अपने छठें दामाद को नौकरी देने के लिए नियम विरुद्व गुलाम हुसैन को बर्खास्त किया था, आज उस हाजी मुनीर का घमंड छह जनवरी को चूर होने वाला है। पैसे से सबको खरीदने का दंभ भरने वाले हाजी को न्यायालय के ताकत का पता उस समय चलेगा जब इन्हें जेल जाना पड़ेगा। जिस न्यायालय ने मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के बड़े-बड़े अधिकारियों के घमंड को चूर किया, उसे हाजी जैसे लोगों का घमंड तोड़ने में न्यायालय को पांच मिनट भी नहीं लगेगा, तब इन्हें लगेगा कि न्यायालय की अवमानना का कितना बड़ा जुर्म होता है। ऐसा लगता है, कि जिस हाजी मुनीर ने अपने छठें दामाद को नौकरी पर रखने के लिए गुलाम हुसैन को नियम विरुद्व और मनमाने तरीके से बर्खास्त किया उस गुलाम हुसैन की आहें हाजी मुनीर को लगने वाली है। हज करने के बाद भी अगर कोई किसी की रोजी रोटी छीनता है, तो खुदा भी उसे माफ नहीं करता।

न्याय और अन्याय की इस लड़ाई में गुलाम हुसैन का मकान तक बिक गया, लाखों के कर्जदार अलग से हो गए, आर्थिक स्थित दयनीय होने से इनके सामने परिवार का भरण-शोषण करना मुस्किल हो गया था, फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहें, इस लड़ाई में सही होने के बावजूद भी विभाग का कोई अधिकारी ने साथ नहीं दिया, साथ इस लिए नहीं दिया, क्यों कि हाजी मुनीर ने सबको खरीद जो रखा था। कार्यालय वाले ठीक से बात नहीं करते थे, जिन अधिकारी को सबसे अधिक ईमानदार माना जाता था, उन्होंने ने भी साथ देने से इंकार कर दिया, पैसे में कितनी ताकत होती है, यह मुनीर अली ने सबको दिखा दिया, लेकिन इनकी ताकत हाईकोर्ट के सामने बौना साबित होने वाला है। कोर्ट ने ना सिर्फ गुलाम हुसैन को वेतन के साथ बहाल ही नहीं किया, बल्कि प्रबंधक के निर्णय को निरस्त भी किया। कोर्ट का आदेष हुए 90 दिन से अधिक हो गए, लेकिन हाजी ने पैसे के बल पर ना तो खुद और ना अधिकारियों को पालन करने दिया। गलती हाजी मुनीर की नहीं बल्कि उन अधिकारियों की भी है, जिन्होंने हाजी के सामने नतमस्तक हो गए, कोर्ट के आदेष का पालन कराना संबधित विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी हैं, यह कहकर हाजी नहीं बच सकते हैं, कि मामला डबल बेंच में है। न्यायालय जब छह जनवरी से इनसे और अधिकारियों से यह पूछेगी कि क्यों नहीं आप लोगों ने मेरे आदेष का पालन करवाया, तब यह कर कोई नहीं बच सकता कि मामला डबल बेंच में। कानून के जानकारों का कहना है, कि इससे कोई फर्क नहीं पढ़ता कि मामला डबल में विचाराधीन हैं, कोर्ट इस बात को नहीं मानती, कोर्ट तो यह चाहती है, कि उसके आदेष का पालन हुआ कि नहीं, अगर इसे बाद भी डबल बेंच का निर्णय आता है, तो ऐसे समय में डबल बेंच का निर्णय महत्वपूर्ण हो जाएगा, लेकिन किसी को इस लिए न्याय ना मिले कि मामला डबल बेंच में हैं, नियम विरुद्व है। चूंकि हाजी की नजर में सभी बिकाउ होते हैं। इस लिए वह तानाषाही रर्वैया अपना रहे है। जोर देकर कहा जा रहा है, कि कोर्ट में किसी की भी तानाषाही नहीं चलती। भले ही चाहें वह पीएम या फिर सीएम ही क्यों ना हो। यह बात तो केजी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा भी जानता है, पता नहीं क्यों इततनी छोटी सी बात घमंडी हाजी मुनीर अली के समझ में आती। हाजी मुनीर जैसे ना जाने कितने लोग होंगे जो अपनी दौलत के नशे में चूर होकर अपनों के साथ नाइंसाफी कर रहे है। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मदरसे वाले ज्वाइन नहीं करा रहे हैं, ज्वाइनिगं लेटर और हाईकोर्ट का आदेष तक लेने से इंकार कर दे रहें है। हाजी मुनीर के गलत कार्यो को बढ़ावा और मनमानी करने की छूट जिला अल्प संख्यक अधिकारी कार्यालय, सहायक निबंधक फर्म्स एंड चिट फंड गोरखपुर और रजिस्टार/निरीक्षक मदरसा षिक्षा परिषद लखनउ के अधिकारियों और बाबूओं ने अगर ना दिया होता तो आज यह कोर्ट के निर्णय का अनादर ना करते।

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