बीडीओ का दर्द, क्यों सारा मलाई प्रमुखजी खा रहें?

बीडीओ का दर्द, क्यों सारा मलाई प्रमुखजी खा रहें?
बीडीओ का दर्द, क्यों सारा मलाई प्रमुखजी खा रहें?

-बहादुरपुर के बीडीओ का मन अतिरिक्त प्रभार वाले सदर ब्लॉक में नहीं लगता क्यों कि इन्हें बखरा नहीं मिलता

-यह जैसे ही ब्लॉक में प्रवेश करते वैसे ही कर्मियों को अपमानित करते रहतें

-ब्लाक के कमियों को बहादुरपुर के प्रधानों के सामने उल्टा-सीधा बोलने लगते

-कमीशन न मिलने का गुस्सा बीडीओ साहब वहां के कर्मियों पर उतार रहें

-बैठक में कर्मियों को अपमानित करते रहते हैं, बीच से उठकर चले जाते

-इनके कार्यशेली के कारण ब्लॉक हर मामले में पीछे चल रहा
-जाहिर सी बात हैं, बहादुरपुर जैसा मजा तो सदर ब्लॉक में मिलेगा नहीं

बस्ती। जिले के बीडीओ को बखरा की इतनी लत गई हैं, कि अगर उन्हें कमीषन न मिले तो वह परेषान हो जाते हैं, अपना सारा गुस्सा अतिरिक्त प्रभार वाले ब्लॉक के कर्मियों पर उतारने लगते है। बहादुरपुर जाकर यह प्रधानों से कहते हैं, कि सारा मलाई तो प्रमुखजी खा ले रहे हैं, हमारे लिए तो कुछ छोड़ते ही नहीं। वहां जाकर क्या फायदा। इसी लिए यह बहुत कम सदर ब्लॉक आते जाते है। कोई पूछने वाला नहीं है। अगर किसी बीडीओ के कार्य करने की शैली सिर्फ बखरा पर निर्भर रहेगी तो सरकारी कामकाज कहां से और कैसे होगा? जाहिर सी बात की ब्लॉक पीछे रहेगा ही। यही हो रहा है। ब्लॉक वाले बताते हैं, कि यह जैसे ही ब्लॉक में घुसते हैं, इनका पारा आसमान में पहुंच जाता है। कुर्सी पर बैठते ही कर्मियों का अनर्गल क्लास लेने लगते हैं, यह सबकुछ करते हैं, लेकिन ब्लॉक हित में नहीं करते, उसका कारण ब्लॉक से कमीशन न मिलना रहा। बखरा न मिलने का यह अपना दुखड़ा विकास भवन तक पहुंचा चुके हैं, चूंकि सीडीओ साहब टाईट हैं, नहीं तो अब तक बीडीओ साहब को कब का बखरा मिलने लगता है। जिस बीडीओ की बोहनी तक चार माह में सदर ब्लॉक से नहीं हुई हो वह फ्रस्टेट तो रहेगा ही, और फ्रस्टेशन कहीं न कहीं उतारेगें, प्रमुख पर तो उतार नहीं सकते। कर्मियों का यह भ्ळाी कहना है, कि साहब को बहादुरपुर जैसा मलाई तों सदर में खाने को तो मिलेगा नहीं, और जब नहीं मिलेगा तो गुस्सा होगें ही। इनका गुस्सा एक तरह से जायज भी माना जा रहा है, और यहां पर प्रमुख की गलती मानी जा रही है। लेकिन प्रमुखजी भी क्या करें, उनका भी अंतिम साल चल रहा है, वह भी चाहेगें कि अधिक से अधिक मलाई खाने का मौका मिले। बीडीओ साहब को अगर मलाई खाने का मौका नहीं मिल रहा है, तो इसमें कर्मियों का क्या दोष? उनको क्यों बीडीओ का कोपभाजन बनना पड़ रहा है। ऐसा लगता है, कि बीडीओ साहब को सदर ब्लॉक की भरपाई बहादुरपुर में कर रहे है। क्यों कि अधिकांश बीडीओ सबकुछ बर्दास्त कर सकते हैं, अधिकारियों की डांट सुन सकते हैं, नेताओं को बर्दास्त कर सकते हैं, लेकिन बखरा का न मिलना बर्दास्त नहीं कर सकते। हालांकि इन्हें तो बहादुरपुर में बखरा तो मिल ही जा रहा हैं, जितना चाह रहे हैं, बखरा मिल जा रहा है, क्यों कि वहां पर बखरा की कोई दिक्क्त नहीं है। बखरा का जितना ध्यान वहां के असली/नकजी प्रधान बीडीओ की रखते हैं, उतना किसी अन्य ब्लॉक के प्रधान नहीं रखते है। वैसे भी जिस ब्लॉक का संचालन तीन-तीन नकली प्रमुख करे, उस ब्लॉक के बीडीओ की हमेशा चांदी रहती है। बाकी देखभाल करने के लिए भ्रष्ट प्रधान तो हैं, ही है।
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