बीडीए को कमिश्नर, डीएम और एडीएम नहीं मेट चला रहें!

बीडीए को कमिश्नर, डीएम और एडीएम नहीं मेट चला रहें!

बीडीए को कमिश्नर, डीएम और एडीएम नहीं मेट चला रहें!

-आइजीआरएस का निस्तारण जेई, एई और एक्सईएन की रिपोर्ट पर नहीं बल्कि मेट की रिपोर्ट पर होता

-बीडीए में मेट की रिपोर्ट पर होता आईजीआरएस का गुणवत्ताहीन निस्तारण, रोडवेज के सामने निर्माणधीन कामर्सिएल भवन का निर्माण बंद होने का रिपोर्ट लगा दिया, जबकि निर्माण चालू

-इनकी कमाई साहबों से कम नहीं होती, जब तक इनकी जेब भर नहीं जाती, यह क्षेत्र में भ्रमण करते रहते

-जेई, एई और एक्सइएन को पता ही नहीं चलता और यह लाखों को सौदा कर लेतें

-दस हजार मानदेय पाने वाला मेट अगर डेली लाख दो लाख कमाएगा तो वह करोड़पति कहलाएगा ही

-डीएम से की गई शिकायत, दिया जांच का आदेश


बस्ती। सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि बीडीए को कमिष्नर, डीएम, एडीएम, एक्सईएन, एई और जेई नहीं बल्कि दस-बारह हजार मानदेय पाने वाला मेट चला रहा है। बीडीए के मेट का मतलब सबकुछ। अवैध निर्माण करवाना हो, अवैध मानचित्र स्वीकृति करवाना हो, सीलिंग तोड़वाना हो, गलत रिपोर्ट लगावाना हो, बिना मेट के सहमति के कुछ नहीं हो सकता। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस पर जेई की रिपोर्ट लगनी चाहिए, उस पर मेट रिपोर्ट लगा रहा है। इतना ही नहीं अधिकारी मेट की रिपोर्ट को फाइनल मानकर डीएम के पास आईजीआरएस निस्तारित होने के लिए भेज भी देते है। जेई साहब यह तक देखने नहीं जाते कि रिपोर्ट सही है, या फिर गलत, आंखबदंकर सारे अधिकारी उसी रिपोर्ट को आधार बनाकर मामले को निस्तारित करवा देते है। बीडीए के जिम्मेदार लोग आंखबंद कर इस लिए रिपोर्ट लगाते हैं, क्यों कि उनका भी बखरा रहता है। अधिकारियों को पता ही नहीं चलता और मेट ना जाने कितने अवैध निर्माण करवा देता। रोडवेज के सामने सुभ्रदा देवी पत्नी केदार का कामर्सिएल भवन का निर्माण हो रहा है, जब इसकी शिकायत लोकायुक्त कार्यालय में कार्यरत श्रवण कुमार द्विवेदी ने आईजीआरएस में किया तो जेई ने मेट को भेज दिया, अब जरा अंदाजा लगाइए कि एक मेट क्या यह जान पाएगा, कि भवन स्वीकृति मानचित्र के अनुरुप हो रहा या फिर विपरीत। चूंकि जेई, एई और एक्सईएन का मेट पर पूरा भरोसा रहता है। शिकायत अवैध और नियमावली के विपरीत निर्माण कराने की गई। कहा गया कि मानचित्र स्वीकृति करने से पहले सभी विभागों से एनओसी लेने की प्रक्रिया को भी नहीं निभाया गया, सेट बैक भी नहीं छोड़ा गया। खासत बात यह है, कि जिस मेट ने पैसा लेकर काम बंद होने का झूठा रिपोर्ट लगाया, दरअसल में काम कभी बंद हुआ ही नहीं, एक दिन पहले तक काम जारी था, जब मजदूरों से पूछा गया कि काम चालू है, तो कहा कि बंद कब हुआ था। इस लिए मेट जो गलत सही रिपोर्ट लगा देता है, उसी को सही मानकर षिकायत को निस्तारित करने के लिए डीएम के पास रिपोर्ट भेज दिया जाता, यानि इन लोगों ने डीएम को भी नहीं छोड़ा। रिपोर्ट लगाने के बाद जेई कभी देखने ही नहीं गए, कि निर्माण हो रहा है, या नहीं?

जब से बीडीए का गठन हुआ, तब से बीडीए को मेट ही चला रहे हैं, कहने को तो जेई, एई और एक्सईएन कार्यरत हैं, लेकिन इनके रहने और ना रहने का कोई मतलब नहीं। मीडिया बार-बार इस बात को कहती आ रही है, कि बीडीए को बीडीए के लोगों ने ही बर्बाद कर किया। बीडीए के नाम पर तो विकास नहीं हुआ, अलबत्ता विनाष की ओर अवष्य ढकेल दिया। कहा भी जाता है, कि जिस बीडीए के चेयरमैन कमिश्नर हो, वाइस चेयरमैन डीएम हो और सचिव एडीएम हो, अगर उस संस्था में भ्रष्टाचार होता है, तो जिम्मेदारी किसकी बनती है। बीडीए के मेट के बारे में कहा जाता है, कि जो काम डीएम नहीं कर सकते वह काम मेट करवा देगें, इसी लिए सबसे अधिक वैध/अवैध निर्माण कर्त्ताओं के लिए मेट ही आसान होता है। मेट चाहें तो फर्जी मानचित्र भी स्वीकृति हो सकता है, और हुआ भी है। मेट चाहें सबकुछ हो सकता है। साहब लोग मेट पर इतना भरोसा क्यों करते हैं, यह सवाल बना हुआ है? कहा भी जा रहा है, कि अगर सबकुछ मेट ही कर रहा है, तो फिर जेई, एई और एक्सईएन का क्या काम? यह सुबह होते ही शिकार की खोज में निकल पड़ते है। जैसे ही यह देखते हैं, कि किसी टाली पर गिटटी, मोरंग, सीमेंट और सरिया जा रहा है, उसके पीछे चले जाते है, फिर होती है, सौदेबाजी। जब शाम को हिसाब होता है, तो वह रकम लाखों में होता है। ऐसा भी कोई मेट नहीं जिसने हिसाब करने में ईमानदारी दिखाई हो। अगर दो लाख मिला, तो बताएगें एक लाख मिला। यह लोग क्षेत्र के बेताज बादशाह तो होते ही हैं, कार्यालय में भी इनकी तूती बोलती है। यह जो चाहते हैं, वहीं होता, नोटिस भी उन्हीं को जाती है, जिसे मेट चाहता है। सील भी वहीं भवन होता जिसे मेट चाहता हैं, सील भी इन्हीं के मन से खुलती है। अब तो कार्यालय में खुले आम पैसे के लेनदेन की बाते सामने आ रही है, एक मानदेय वाला बाबू हैं, जो सीधे कहता है, कि साहब लोगों को पैसा देना पड़ता। इस बीडीए को बर्बाद होने में नेताओं का भी बड़ा हाथ हैं, यह लोग अवैध निर्माण करवाने की तो सिफारिश करते ही है, साथ ही इनके आदमी ही मेट और बाबू का काम करते। यही कारण है, कि एक बाबू को हटाने के लिए सचिव को हजार बार सोचना पड़ता है। नेताओं का आवष्यकता से अधिक दखलंदाजी ने बीडीए को भ्रष्टाचार की ओर ढ़केल दिया।

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