‘अयाशबाजों’ पर टिका ‘अधिकांश’ होटलों का ‘कारोबार’!

‘अयाशबाजों’ पर टिका ‘अधिकांश’ होटलों का ‘कारोबार’!

‘अयाशबाजों’ पर टिका ‘अधिकांश’ होटलों का ‘कारोबार’!

-अगर होटलों में अयाशी का धंधा न हो तो बिजली का बिल जमा करना मुस्किल हो जाए, बड़े होटलों में अयाश अधिकारी एवं बड़े कारोबारी और छोटे होटलों में अधिकांश प्रेमी और प्रेमिका मौजमस्ती करने जाते

-होटल वाले भी बहुत चालाक हो गए पुलिस से बचने के लिए अलग-अलग कमरा देते, बुक प्रेमी को अगर 104 नंबर तो प्रेमिका को बगल वाले 106 नंबर का कमरा बुक करत, होटल वाले अच्छी तरह जानते हैं, कि दोनों अयाशबाज हैं, फिर भी गांधीजी के लिए अनैतिक कार्य करते

-जो प्रोफेशनल महिलाएं होती है, वह एक दूसरे से परिचित रहती, इस लिए कभी कभी आधार कार्ड बदल देती, सिद्वार्थनगर और संतकबीरनगर के अधिकारी दौरे के नाम पर बस्ती के होटल में मौजमस्ती करते

-शहर में पिछले कई सालों से न तो कोई बड़ा उद्योग लगा और न किसी बड़ी कंपनी का कार्यालय ही खुला, लेकिन हर गली और मोहल्ले में होटल खुल रहे, यह जानते हुए भी कि रेस्टोरेंट का तो स्कोप है, लेकिन ठहरने वाले होटल का कोई स्कोप नहीं, फिर भी व्यापारी होटल खोलने पर पैसा लगा रहा

-पिछले दिनों मालवीय रोड पर एक बड़े होटल का नाम सामने आया, जहां पर मुंबई का एक विधायक प्लेन से बस्ती आता और होटल में एक दो दिन रुक कर मस्ती करता और चला जाता, इस होटल का नाम बलात्कार की शिकार महिला ने जज के सामने लिया, रिकार्ड में भी होटल का नाम दर्ज

-अगर मोटी रकम लेकर पुलिस फाइनल रिपोर्ट न लगाती तो कई बड़े कहे जाने वाले सफेद पोश और होटल मालिक बेनकाब हो जाते, वैसे कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को पीड़ित महिला के विरोध पर रिजेक्ट कर दिया

-कई होटल वाले तो बड़े डाक्टरों का पर्चा कथित पत्नी के नाम इस लिए बनवा लेते हैं, ताकि पुलिसिया जांच में यह बताया जा सके कि भीड़ अधिक होने के कारण नंबर नहीं आया, मालवीय रोड पर एक मैरिज हाल था, जिसमें पांच-छह कमरे का होटल भी था, मालिक को होटल इस लिए बंद करना पड़ा क्यों कि अधिकांश मौजमस्ती के लिए आते  

बस्ती। आप लोग भी यह देख कर हैरान हो रहें होगें, कि आखिर हर मोहल्ले में इतनी बड़ी संख्या में सराय होटल क्यों खुल रहे हैं? आखिर इन होटल का खर्चा कैसे निकलता होगा, और वे कौन लोग हैं, और कहां से यह लोग होटलों में आ रहे हैं? जबकि जिले में पिछले कई सालों से न तो कोई नया उद्योग लगा और न कोई किसी बड़ी कंपनी का कार्यालय ही खुला, तो फिर इतने होटल क्यों खोले जा रहे हैं? आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि 80 फीसद से अधिक ऐसे होटल होगें, जिनमें लोग मौजमस्ती करने के लिए जाते। कहने का मतलब अधिकांश होटल का कारोबार अयाशबाज लोगों पर ही टिका। होटल से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि अगर होटलों में गलत काम न हो तो होटल का बिजली का बिल तक जमा करना मुस्किल हो जाएगा। बंद हो चुके मालवीय रोड स्थित एक मैरिज हाल के मालिक को होटल इस लिए बंद करना पड़ा, क्यों कि उनके होटल में लोग ठहरने नहीं आते थे, बल्कि चार-पांच घंटा के लिए मौजमस्ती करने आते थे। ऐसे भी होटल मालिक हैं, जिन्हें पैसा नहीं बल्कि इज्जत प्यारी है। सवाल उठ रहा है, कि ऐसे कितने लोग हैं, जो पैसा नहीं इज्जत कमाना चाहते। पिछले दिनों मालवीय रोड पर स्थित एक बड़े होटल का नाम सामने आया, जहां पर मुंबई का एक कथित विधायक प्लेन से बस्ती आता और होटल में एक दो दिन रुक कर मस्ती करता और चला जाता, एफआईआर तक कथित विधायक के खिलाफ के दर्ज है, इस होटल का नाम बलात्कार की शिकार महिला ने जज के सामने लिया, रिकार्ड में भी होटल का नाम दर्ज हैं, अगर मोटी रकम लेकर पुलिस फाइनल रिपोर्ट न लगाती तो कई बड़े कहे जाने वाले सफेद पोश और होटल मालिक बेनकाब हो जाते, वैसे कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को पीड़ित महिला के विरोध पर रिजेक्ट कर दिया। यह सही है, कि अगर होटलों में अयाशी का धंधा न हो तो बिजली का बिल जमा करना भी मुस्किल हो जाए, बड़े होटलों में अयाश अधिकारी एवं बड़े कारोबारी और छोटे होटलों में अधिकांश प्रेमी और प्रेमिका मौजमस्ती करने जाते है। होटल वाले भी बहुत चालाक हो गए पुलिस से बचने के लिए अब यह लोग एक साथ जोड़े को कमरा नहीं देते,  अलग-अलग कमरा देते, अगर प्रेमी को 104 नंबर दिया तो प्रेमिका को बगल वाले 106 नंबर का कमरा बुक करते, होटल वाले अच्छी तरह जानते हैं, कि दोनों अयाशबाज हैं, फिर भी गांधीजी के लिए अनैतिक कार्य करते है। जो प्रोफेशनल महिलाएं होती है, वह एक दूसरे से परिचित रहती, इस लिए कभी कभी आधार कार्ड बदल देती, सिद्वार्थनगर और संतकबीरनगर के अधिकारी दौरे के नाम पर बस्ती के होटल में मौजमस्ती करने आते है। यह जानते हुए भी कि होटल का स्कोप नहीं, फिर भी खोले जा रहे, इतना ही नहीं सारे होटल प्रशासन की मेहरबानी से अनैतिक रुप से संचालित हो रहे हैं, बहुत कम ऐसे होटल होगें जिनका शायद ही सराय एक्ट में पंजीकरण हो। कहने का मतलब कारोबार भी गंदा और संचालन भी नियम विरुद्व। ऐसे-ऐसे सकरी रास्तों में होटल खोल दिया गया, जहां पर अगर आगजनी जैसी घटना हो जाए तो फायर बिग्रेड की गाड़ी तक नहीं जा सकती, फिर भी ऐसे होटलों पर सीएफओ और प्रशासन की नजर न जाने क्यों नहीं पड़ती? कहा जाता है, कि रेस्टोरेंट का तो स्कोप है, लेकिन ठहरने वाले होटल का कोई स्कोप नहीं, फिर भी व्यापारी होटल बनाने में पानी की तरह पैसा बहा रहे है। क्षेत्र की पुलिस ने भी छानबीन करना बंद कर दिया, क्यों कि बिना इनके हिस्सेदारी के कोई भी होटल एक दिन भी नहीं चल सकता। अगर होटलों में अयाषी का कारोबार हो रहा है, तो उसके लिए पूरी तरह क्षेत्र की पुलिस को ही जनता जिम्मेदार मान रही है।

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