आखिर हरीश सिंह की जाल में फंस ही गए सीएमओ

आखिर हरीश सिंह की जाल में फंस ही गए सीएमओ

आखिर हरीश सिंह की जाल में फंस ही गए सीएमओ

-सीएमओ को वित्तीय अनियमितता में बर्खास्त और एफआईआर दर्ज करने की मांग, बर्खास्तगी का पूरा किया इंतजाम

-तत्कालीन सीडीओ की जांच में तत्कालीन सीएमओ डा. आरएस दूबे को एक बिंदु पर की दोषी माना था, और रही सही कसर वर्तमान सीडीओ ने पूरा कर दिया

-पांच बिंदु पर शिकायत की गई थी, जिसमें चार बिंदु पर दोषी पाए गए, पांचवे बिंदु पर दोषी पाए जाते अगर टीम सीएमओ की आख्या का परीक्षण करती

-जांच में लग गए पांच माह, यह मामला दिशा की बैठक में एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के प्रतिनिधि हरीश सिंह ने साक्ष्य के साथ सीएमओ के भ्रष्टाचार की आवाज उठाते हुए जांच कराने की मांग की थी

-अगर मामला डिप्टी सीएम/ हेल्थ मंत्री बृजेश पाठक के स्तर से मैनेज नहीं हुआ तो तत्कालीन सीएमओ की बर्खास्तगी तय

बस्ती। जो लोग यह कहते फिरते रहते हैें, कि लिखने और षिकायत करने कुछ नहीं होता उन लोगों की धारणा को एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के प्रतिनिधि हरीश सिंह ने गलत साबित कर दिया। इन्होंने यह दिखा दिया कि सिर्फ शिकायत करने से कुछ नहीं होगा, जब तक उसकी पैरवी प्रभावी तरीके से न की जाए। इन्होंने उस आम धारणा को भी झूठा साबित कर दिया, जिसमें यह कहा जाता हैं, कि नेताओं के शिकायत करने के पीछे भ्रष्टाचार को न तो मिटाने और न भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की रहती, ऐसे लोगों की मंशा शिकायत करने के नाम पर भ्रष्टाचारियों से धन उगाही करने की रहती है। ऐसे लोगों का सोचना गलत भी नहीं हैं, क्यों कि हमारे जिले के अधिकांष नेता शिकायत करने के बाद यह कहकर पलटी मार देते हैं, कि किसी ने उनके पैड का दुरुपयोग किया। जबकि नेताजी ही शिकायत करते हैं, क्यों कि शिकायत करने के बाद उसे मीडिया में वायरल करना नहीं भूलते। जैसे ही मीडिया में खबर प्रकाशित होती है, वैसे ही भ्रष्टाचारी धड़ाम से नेताजी के चरणों में गिर पड़ता और बचाने की गुहार लगाता है, तब सौदेबाजी होती है। उसके बाद शिकायत को यह कहकर झुठला दिया जाता हैं, उनके पैड का दुरुपयोग किया गया, किसने किया यह नहीं बताते। सवाल यह है, कि पैड तो उनके पास रहता है, तो दुरुपयोग किसने किया। अब ऐसे नेताओं को कौन समझाने जाए कि उनके पैड का दुरुपयोग करके किसी को क्या मिलेगा, जो मिलना जुलना होगा वह तो नेताजी को ही मिलेगा। जिले की जनता ने नेताओं के पलटी मारने की घटना को अनेक बार देख चुकी है। एक नेताजी को तो पलटीमार नेता कहा जाने लगा। शिकायतें भी सबसे अधिक इनके पैड पर ही होती है। बहरहाल, यह भी सही है, कि सारे नेता पलटीमार नहीं होते। भले ही चाहें पलटीमारने की जो भी लालच/कीमत दी जाए, वह नहीं मारते। मैनेज के नाम पर उस समय सीएमओ कुछ भी करने को तैयार थे। तत्कालीन सीएमओ के मामले में भी शिकायतकर्त्ता पर बहुत दबाव पड़ा, बड़े-बड़े लालच दिए गए। फिर भी शिकायतकर्त्ता मैनेज नहीं हुए। अलबत्ता मैनेज कराने के नाम पर कई पत्रकार लखपति अवष्य हो गए। किसी ने एक लाख लिया तो किसी ने दो लाख। शिकायतकर्त्ता को अच्छी तरह मालूम था, कि अगर मैनेज हो गए, तो फिर वह कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ दमदारी से आवाज नहीं उठा पाएगें। जो उनकी छवि बनी है, वह खराब हो जाएगी, और एमएलसी साहब की अलग से बदनामी होगी। बड़े अधिकारियों के द्वारा सीएमओ से यहां तक कहा गया कि शिकायतकर्त्ता से लिखवा लीजिए, हम मामले को समाप्त कर/करवा देंगे। कहा भी जा रहा है, कि हरीश सिंह तो मैनेज नहीं हुए लेकिन डिप्टी सीएम/हेल्थ मंत्री बृजेश पाठक की गारंटी नहीं ली जा सकती है। जिस तरह शिकायतकर्त्ता ने ईमानदारी दिखाया अगर यही ईमानदारी डिप्टी सीएम दिखा दे ंतो सीएमओ को बर्खास्त भी हो सकते हैं, और इनके खिलाफ वित्तीय अनियमितता/गबन में एफआईआर भी दर्ज हो सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि आज जो पूरे प्रदेश में सीएमओ ने लूट खसोट मचा रखा हैं, उसके लिए जनता सीएम को कम और डिप्टी सीएम को अधिक जिम्मेदार मानती है। कहती है, कि जब सीएमओ 25 लाख देकर कुर्सी पाएगें तो उनसे कैसे ईमानदारी की उम्मीद की जा सकती है?

पांच माह, पहले दिशा की बैठक में एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के प्रतिनिधि हरीश सिंह ने साक्ष्य के साथ तत्कालीन सीएमओ के भ्रष्टाचार की आवाज उठाते हुए जांच कराने की मांग की थी। आरोप था, कि तत्कालीन सीएमओ ने एक ही व्यक्ति के नाम जय मां वैष्णों, जय मां सरस्वती, मेडी डिवाइस हब, सजिर्किल हाउस, टेक्नो प्रा.लि. एवं विदिशा सर्विसेज को सामानों की आपूर्ति के नाम पर बिना सामान प्राप्त किए रात 11 बजे से दो बजे तक डीएससी लगाकर एक करोड़ 60 लाख का भुगतान कर दिया। तत्कालीन सीडीओ जयदेव सीएस ने आरोप को सही माना। अवशेष चार बिंदुओं की जांच इस लिए नहीं हो सकी, क्यों कि जांच अधिकारी को अभिलेख उपलब्ध नहीं कराया। बाद में अवशेष बिदंुओ की जांच वर्तमान सीडीओ सार्थक अग्रवाल ने किया। जिसमें सामानों की आपूर्ति के मामले में कराद जांच में पाया गया कि समस्त सामग्रीकी आपूर्ति एवं वितरण का अंकल पंजिका पर एक ही तिथि में और एक ही व्यक्ति के द्वारा एक ही कलम से किया गया। इससे पता चलता है, शिकायत होने के बाद आनन-फानन में सामानों की आपूर्ति हेल्थ वेलनेस सेंटर पर की गई। आयुष चिकित्सालयों में दो साल से एक रुपये की किसी प्रकार की औषधि खरीद न करने की शिकायत को भी सही माना गया। इसमें भी सीएमओ दोषी पाए गए। इसी तरह आशा संगिनी का साक्षात्कार के एक साल बाद भी परिणाम घोषित न करने के मामले में सीएमओ दोषी पाए। परिणाम घोषित न करने का कोई कारण नहीं बताया गया। यह भी शिकायत सही पाया गया। इसी तरह जब पांचवें ंिबदु यानि आवास विकास कालोनी स्थित गैलेक्सी आई अस्पताल में आयुषमान के मरीजों के आंख का आपरेशन जमीन पर करने और 10 मरीजों की रोषनी चले जाने की शिकायत के मामले में जांच टीम ने सीएमओ के आख्या को आधार मानकर क्लीट चिट दे दिया, जब कि इसी आरोप में इस अस्पताल के लगभग 400 मरीजों के आपरेशन को अवैध मानकर इनके 28 लाख के बिल पर भुगतान करने से मुख्यालय ने इंकार करते हुए सारे बिल को डीलीट कर दिया। बताते हैं, कि अस्पताल को क्लीट चिट देने के लिए सीएमओ और उनकी टीम के द्वारा भारी सौदेबाजी की गई।

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