आखिर 15 साल तक फाइल को क्यों लटकाया?

आखिर 15 साल तक फाइल को क्यों लटकाया?

आखिर 15 साल तक फाइल को क्यों लटकाया?

-पांच जिला कृषि अधिकारी और स्थापना पटल सहायक पर भी होनी चाहिए कार्रवाई

15 साल तक फाइल को दबाए रखने वाले स्थापना पटल सहायक महेश सिंह पर नहीं हुई कार्रवाई और एक साल वाले मानवेंद्र श्रीवास्तव को कर दिया निलंबित

-निदेशालय ने इन 15 सालों में जाने कितने स्मरण पत्र जारी किया होगा, लेकिन किसी ने संज्ञान में नहीं लिया

बस्ती। 15 साल तक फाइल लटकाने के पीछे क्या राज हो सकता है, इसका खुलासा होना जरुरी है। जो वेतन फिक्सेशन 15 साल पहले हो जाना चाहिए था, वह 15 साल बाद क्यों हुआ? और जब हुआ तो क्यों 50 लाख अधिक फिक्सेशन किया गया? क्यों कृषि निदेशक के आदेषों की अवहेलना की गई? और अवहेलना करने के पीछे मकसद क्या रहा? इन सब सवालों का जबाव जांच में छिपा हुआ है। सबसे अधिक सवालों के घेरे में तत्कालीन जिला कृषि अधिकारी डा. सतीश चंद्र पाठक, डा. मनीश कुमार सिंह, प्रभारी जिला कृषि अधिकारी राम भगेल चौधरी, प्रभारी डीओ डा. राज मंगल चौधरी, प्रभारी डीओ रतन शकर ओझा और वर्तमान जिला कृषि अधिकारी डा. बाबू राम मौर्य एवं तत्कालीन स्थापना पटल सहायक महेश सिंह आ रहे है। यह पटल इनके पास विगत 14 सालों से यानि 23-24 तक रहा। निलंबित स्थापना पटल सहायक मानवेंद्र श्रीवास्तव पिछले एक साल से पटल पर है। सवाल यह उठ रहा है, कि जो फिक्सेशन 14 साल तक पटल सहायक रहे महेश सिंह ने नहीं किया उसे एक साल में क्यों और कैसे जिला कृषि अधिकारी डा. बाबू राम मौर्य और मानवेंद्र श्रीवास्तव ने मिलकर कर दिया? और क्यों आठ साल को अधिक फिक्सेशन किया? भले ही भुगतान न हुआ हो, लेकिन साजिश तो भुगतान करने की रही। बजट होता तो भुगतान भी हो गया होता। देखा जाए तो सबसे बड़ा दोशी 14 साल तक फिक्सेशन न करने वाले पटल सहायक और पांच जिला कृषि अधिकारियों को माना जा रहा है। मानवेंद्र श्रीवास्तव की तरह इन लोगों का भी उत्तरदायित्व निर्धारित होना चाहिए, यही न्याय संगत भी होगा। बहरहाल, इस तरह का प्रकरण पूरे प्रदेश में कहीं नहीं सामने आया होगा। अगर 15 साल पहले फिक्सेशन कर दिया गया होता तो पीड़ित परिवार को लाभ भी मिल जाता, लड़कियों की धूमधाम से विवाह होता। इसमें निदेशालय को भी जिम्मेदार माना जाएगा, सवाल तो निदेशालय पर भी उठ रहे हैं, कि क्यों मृत्यु के एक साल बाद दोशमुक्त किया? क्यों नहीं जीतेजी दोशमुक्त किया, अगर जीतेजी दोशमुक्त करते तो कम से कम शाति और इज्जत से मर सकते थे। मानवेंद्र श्रीवास्तव के निलंबन के बाद बनाए गए जांच अधिकारी पर भी सवाल उठ रहे है, जिस कार्यालय का बाबू निलंबित हुआ उसी कार्यालय में कार्यरत वरिष्ठ प्राविधिक सहायक ग्रुप एक को जांच अधिकारी बना दिया, वह भी अराजपत्रित अधिकारी को जांच अधिकारी बनाया। अगर यही जांच प्रशासनिक अधिकारी से करवाई जाती तो उन पर कोई दबाव नहीं पड़ता। ऐसा लगता है, मानो जानबूझकर कार्यालय के प्राविधिक सहायक को जांच अधिकारी बनाया गया। कोई यह न समझे कि मामला शात हो गया। अगर कहीं पांच जिला कृषि अधिकारियों और पूर्व पटल सहायक की भूमिका की जांच हो गई, तो न जाने कितने अधिकारी चपेट में आ जाएगें।    

Comments

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *