सीएमओ’ को ‘बेच’ रहें ‘डा. एसबी सिंह’ और ‘डा. एके चौधरी’ःचंद्रेश सिंह
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 18 November, 2025 18:28
- 42
‘सीएमओ’ को ‘बेच’ रहें ‘डा. एसबी सिंह’ और ‘डा. एके चौधरी’ःचंद्रेश सिंह
बस्ती। भ्रष्टाचार के खिलाफ निरंतर हमला बोलने वाले भाकियू भानु गुट के मंडल प्रवक्ता चंद्रेश प्रताप सिंह का कहना है, कि सीएमओ अत्यंत सज्जन और सरल व्यक्ति हैं और इनकी सरलता और सहजता सज्जनता को वसूली अधिकारी के नाम पर चर्चित दोनों नोडल डॉ. एके चौधरी व डॉ एसबी सिंह बेच रहे हैं। इन दोनों के बारे में कहावत मशहूर हैं कोई काम बिना पैसे लिए नहीं करते हैं। सही काम कराने वाले को दौड़ाते हैं, गलत काम करवाने वालों को बगल में बैठाकर चाय-पानी करवाते है। जिले के यह दोनों पहले अधिकारी है, जिनसे कुछ भी करवा लो बस चढ़ावा वजनदार होना चाहिए। रफीउद्दीन खान की फोटो कापी एक्स-रे टेक्नीशियन की डिग्री कूटरचित तरीके से फ्राड कर लगाने वाले मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के प्रबंध संचालक निदेशक व रेडक्रास सोसायटी बस्ती के सभापति डॉ. प्रमोद कुमार चौधरी का पंजीकरण निरस्त किया, करारा दाम वसूला और फिर से पंजीकरण कर दिया। जबकि एक्स-रे टेक्नीशियन रफीउद्दीन खान के शिकायत का निस्तारण नहीं हुआ, गलत को सही बनाकर जांच रिपोर्ट अना दिया, और पंजीकरण कर दिया। कहते हैं, कि डॉ एके चौधरी डॉ एसबी सिंह अपने वरिष्ठ अधिकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पैसे के आगे कुछ नहीं समझते बल्कि यह दोनों सीएमओ को अपने जूते की नोक पर रखते हैं। भयमुक्त हो कर भ्रष्टाचार करते हैं। डा. एके चौधरी के संरक्षण में तमाम झोला छाप डॉक्टर अवैध अल्ट्रासाउंड सेंटर फल फूल रहे हैं। वहीं डॉ. एसबी सिंह के संरक्षण में मानकविहीन हास्पिटल संचालित हो रहें है। आंकड़े के हिसाब से पूरे जिले में लगभग 10-15 हजार अयोग्य झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है नाम न बताने के आश्वासन पर सीएमओ कार्यालय का एक स्टाफ ने बताया कि प्रति झोलाछाप डॉक्टर तीन हजार रुपए प्रति माह और प्रति अल्ट्रासाउंड सेंटर पांच हजार डाक्टर एके चौधरी को देते हैं, कहते हैं, कि डा. चौधरी से थोड़ा कम कमाई डॉ. एसबी सिंह की है। इनको प्रति लैब 2-3 हजार प्रतिमाह और अवैध संचालित अस्पतालों से 10-15 हजार की वसूली है और हास्पिटल रजिस्ट्रेशन में 40-50 हजार सब मिलाकर लगभग 50 लाख की अवैध कमाई प्रति माह दो नोडल अधिकारी करते है। कहते हैं, कि सीएमओ की सिधाई सज्जनता ने इन दोनों को लूटने का बड़ा अवसर प्रदान कर रहा। इनके कृत्यों से सीएमओ बदनाम हो रहे है। कहते हैं, कि अगर सीएमओ को चाहिए कि अपनी छवि बचाने के लिए तत्काल इन दोनों अधिकारियों को दिए प्रभार को वापस ले लेना चाहिए और किसी योग्य ईमानदार थोड़ा कम ईमानदार को प्रभारी बनाना चाहिए। कहते हैं, कि इन दोनों के चलते सीएमओ साहब को कहीं तत्कालीन सीएमओ डॉ आरसजू1ेउबएस दूबे की तरह दषं न झेलना पड़े। कहते हैं, कि अगर रफीद्दीन खान को न्याय नहीं मिला तो न्यायिक कार्यवाही को झेलने के लिए तैयार रहें। किसी एक महान व्यक्ति ने एक बार कहा था कि हमारा देश एक समृद्ध देश है, लेकिन यहां की जनता गरीब है। अफसोस की बात यह है कि यह कथन आज भी प्रसांगिक बना हुआ है। कहा जा रहाउब है कि हमारे देश ने विगत वर्षों में आर्थिक स्तर पर व्यापक विकास किया है, लेकिन एक कटु सत्य है कि बढ़ते भ्रष्टाचार ने देश को गरीबी के गर्त में और धकेला है। देश एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सरकारें व्यापक स्तर पर कल्याणकारी योजनाओं को लागू करती हैं। लेकिन इन योजनाओं को सफल बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सरकारी संस्थानों की होती है और इनमे बैठी नौकरशाही इसका संचालन करती है। अफसोसजनक स्थिति यह है कि भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आए लोग ही भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए काम मे लगाए गए हैं। भारत जैसे देश मे भ्रष्टाचार के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। मसलन, प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही, निष्पक्षता, संवेदनशीलता आदि गुणों का क्षरण होना दूसरा कारण है। राजनीतिक और प्रशासनिक, दोनों ही स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार तीसरा कारण है। केंर्द्रीकृत प्रणाली का दिन-प्रतिदिन विस्तार होना और भ्रष्टाचार के लिए बनाए गए कानूनों के लागू होने में ढीलापन अन्य महत्त्वपूर्ण कारण हैं। इसके अलावा, नागरिक और सरकारी कर्मचारियो,दोनों के ही द्वारा कानूनों का अनुपालन नही होना भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। कहते हैं, कि अब वक्त आ गया है कि सरकारों को भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए व्यापक स्तर पर मंथन करना चाहिए और इससे संबंधित कानूनों का फिर से निरीक्षण करना चाहिए। सरकार पहला कदम उठाए कि भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए बने कानूनों को सख्ती से लागू करवाए। दूसरा उपाय यह हो कि आरटीआई कानून में जरूरी सुधार करके इसे और मजबूत बनाया जाए और इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। कुछ दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन यह कानून अपने आप में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का लगाने का सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकता है।सरकारी संस्थाओं का राजनीतिकरण नहीं होने देना सबसे जरूरी है, ताकि वे भ्रष्टाचारियों को संरक्षण और भ्रष्टाचार को बढ़ावा न दे सकें। फिर शिकायतों से संबंधित जटिल नियमों को और सरल बनाने की जरूरत है, ताकि आमजन भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने में सहज महसूस करे।

Comments