निधि नहीं बेचेगें तो माननीयों का खर्चा कैसे चलेगा?
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 21 August, 2025 20:49
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निधि नहीं बेचेगें तो माननीयों का खर्चा कैसे चलेगा?
-पहले कार्यकर्त्ता भूजा खाकर प्रचार करता था, अब जब तक दारु मुर्गा और हजार पांच सौ नहीं मिलता घर से ही नहीं निकलेगें
-एक विधायक का कहना है, कि जब तक वह दो लक्जरी गाड़ी से नहीं चलेगें और आधा दर्जन लोग नहीं बैठेगें लोग उन्हें फटहा विधायक समझेगें
-आखिर विधायक और सांसद क्यों न चोरी चकारी करें और निधि बेचें? अब विधायक तो बैंक में डाकां डाल नहीं सकता है, इस लिए भ्रष्टाचार करके अपना और कार्यकर्त्ताओं का पेट भरता
-विधायक की माने तो डेली का उनका खर्चा लगभग 30 से 40 हजार का है, कहते हैं, कि सरकार जितना भत्ता देती, वह हफतेभर भी नहीं चलता
-जाहिर सी बात हैं, कि अगर कोई विधायक 30 से 40 हजार डेली खर्चा करेगा तो वह कम से कम एक लाख कमाएगा ही
-एक विधायक कम से कम डेली 40-50 न्यौता हकारी करते होगें, अगर पांच सौ भी दिया तो कम से कम 20 से 25 हजार हो जाता, इसमें बहुभोज से लेकर, शादी विवाह और अन्य निंमत्रण शामिल रहता
-जनता दरबार में किसी को इलाज तो किसी को दवा तो किसी को बच्चे की फीस के नाम हजारों देना पड़ता, सिर्फ दो गाड़ी का ही खर्चा आठ हजार का, गाड़ी में बैठने वाला और चालक का खर्चा भी हजारों में
-विधायकजी अगर किसी नुक्कड़ पर बैठ गए तो दुकान का सारा खर्चा उन्हें ही उठाना पड़ेगा अब हर कोई पाल साहब तो हो नहीं जाएगें
-अगर कोई सत्ता पक्ष का विधायक हैं, तो उसके कमाई के अनेक स्रोत होते हैं, लेकिन अगर विपक्ष का विधायक हैं, इज्जत बचानी मुस्किल हो जाती, क्यों कि इनके कहने पर जब एक चपरासी और सचिव का तबादला नहीं होगा तो इन्हें क्यों को कोई पूछेगा
बस्ती। विधायक बनना उतना कठिन नहीं जितना विधायक बनने के बाद विधायकी को मेनटेंन करना। विधायक हैं, तो लोगों की अपेक्षाएं भी होगीं। पहले का कार्यकर्त्ता भूजाखाकर अपने विधायक के लिए प्रचार करता था, लेकिन अब तो जब तक दारु मुर्गा और हजार-पांच सौ रोज नहीं मिलेगा घर से बाहर ही नहीं निकलेगा, बीमारी का बहाना बना देते। एक विधायक का कहना है, कि जब तक वह दो लक्जरी गाड़ी से नहीं चलेगें और आधा दर्जन लोग नहीं बैठेगें लोग उन्हें विधायक ही नहीं समझेगें। आखिर विधायक और सांसद क्यों न चोरी चमारी करें और क्यों न निधि बेचें? अब विधायक तो बैंक में डाकां डाल नहीं सकता है, इस लिए भ्रष्टाचार करके अपना और कार्यकर्त्ताओं का पेट भरता है। विधायक की माने तो डेली का उनका खर्चा लगभग 30 से 40 हजार का है, कहते हैं, कि सरकार जितना भत्ता देती, वह हफतेभर भी नहीं चलता। जाहिर सी बात हैं, कि अगर कोई विधायक 30 से 40 हजार डेली खर्चा करेगा तो वह कम से कम एक लाख कमाएगा ही, क्यों कि उसके भी तो व्यक्तिगत खर्चे होते हैं।
एक विधायक कम से कम डेली 40-50 न्यौता हकारी करते होगें, अगर पांच सौ भी दिया तो कम से कम 20 से 25 हजार हो जाता, इसमें बहुभोज से लेकर, शादी विवाह और अन्य निंमत्रण शामिल रहता। हर निमंत्रण पर जाना और न्यौता देना जरुरी भी होता, अगर खुद नहीं जा पाए तो न्यौता देकर किसी और को भेजना पड़ता है, कहने का मतलब आम आदमी का बहाना तो चल जाता है, लेकिन विधायकजी लोगों का नहीं चलता, अगर बहाना करेगें तो वोट से हाथ धोना पड़ेगा। जनता दरबार में किसी को इलाज तो किसी को दवा तो किसी को बच्चे की फीस के नाम पर हजारों देना पड़ता, सिर्फ दो गाड़ी का ही खर्चा आठ हजार का, गाड़ी में बैठने वाला और चालक का खर्चा भी हजारों में होता है। विधायकजी अगर किसी नुक्कड़ पर बैठ गए तो दुकान का सारा खर्चा उन्हें ही उठाना पड़ेगा अब हर कोई पाल साहब तो हो नहीं जाएगा। अगर कोई सत्ता पक्ष का विधायक हैं, तो उसके कमाई के अनेक स्रोत होते हैं, लेकिन अगर विपक्ष का विधायक हैं, तो इज्जत बचानी मुस्किल हो जाती, क्यों कि इनके कहने पर जब एक चपरासी और सचिव का तबादला नहीं होगा तो इन्हें क्यों को कोई पूछेगा। विधायकों का भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज न उठाने के पीछे खुद भ्रष्टाचार में शामिल होना माना जा रहा। विधायक अगर ठेकेदार नहीं बनेगा और निधि नहीं बेचेगा तो खर्चा कैसे निकलेगा? एक विधायक का कहना है, कि उनका सबसे अधिक खर्चा मीडिया के लोगों पर होता। कहते हैं, कि उनके पास एक रजिस्टर हैं, जिसमें 395 पत्रकारों का नाम शामिल है, रजिस्टर पर उनके हस्ताक्षर भी है। इनमें किसी को पांच सौ तो किसी को एक हजार देना पड़ता। कहते हैं, कि उनकी समझ में नहीं आता कि इतने पत्रकार कहां से बस्ती में आ गए। यह भी कहते हैं, कि एक दो पत्रकार ऐसे भी हैं, जिन्होंने आज तक न तो उनके पास आए और न ही उन्होंने कभी विज्ञापन ही मांगा। कहते हैं, कि इसी को देखते हुए जिले से बाहर चला जाता हूं। 15 अगस्त, 26 जनवरी, होली, दिपावली और नया साल मिलाकर उनका हर साल कम से कम आठ लाख रुपया खर्चा होता है। कहने का मतलब जनता और पत्रकारों ने मिलकर विधायकों को भ्रष्ट बना दिया। विधायकजी लोग जो विकास के नाम पर गेट पर गेट लगवाते जा रहे हैं, उसके पीछे प्रति गेट 50 फीसद कमीशन का लेना माना जा रहा है। यही कमीशन का पैसा वह जनता के बीच बांट देते है। कहने का मतलब जनता का पैसा जनता को वापस कर दिया, तरीका भले ही चाहें गलत ही क्यों न हों। यहां पर किसी भी विधायक को क्लीन चिट नहीं दिया जा रहा है, बल्कि उनके द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार से कमाए गए धन के उपयोग/दुरुपयोग के बारे में बताने का प्रयास किया गया। रही बात जनता की समस्याओं और उनके निस्तारण की तो आज कोई ऐसा विधायक और सांसद इस स्थित में नहीं हैं, कि वह किसी भी अधिकारी से कोई काम करवा सके। यह अपना नीजि काम भी नहीं करवा पाते। इसके लिए माननीयों को दोश देने के बजाए योगीजी को देना चाहिए, जिन्होंने अधिकारियों को बेलगाम कर दिया।

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