जिनकी ‘चाहत’ में वे ‘बदगुमान’ रहे, वही ‘चहेते’ अब ‘चेहरे’ से ‘परहेज’ कर ‘रहें’!

जिनकी ‘चाहत’ में वे ‘बदगुमान’ रहे, वही ‘चहेते’ अब ‘चेहरे’ से ‘परहेज’ कर ‘रहें’!

जिनकी ‘चाहत’ में वे ‘बदगुमान’ रहे, वही ‘चहेते’ अब ‘चेहरे’ से ‘परहेज’ कर ‘रहें’!


बस्ती। बड़े बुजुर्ग यह समझाते हुए नहीं थकते, हैं कि एहसान करने वालों के साथ कभी एहसान फरामोशी मत करना, जिसने मदद की उसे कभी मत भूलना, एहसान का बदला बुरे वक्त में अवष्य चुकाना, क्यों कि एहसान और मदद हमेषा बुरे वक्त में ही कोई करता है, और मदद की जरुरत भी उसे बुरे वक्त में ही पड़ती। यह भी कहते हैं, कि अगर कोई किसी का एहसान भूल जाता है, और बुरे वक्त में मदद करने के बजाए उसे चिढ़ाता हैं, तो ऐसे लोगों को समय और समाज कभी माफ नहीं करता। बुरा और अच्छा वक्त आने में समय नहीं लगता। यह बात व्यक्तिगत और राजनीति दोनों पर लागू होती है। पूर्व सांसद को पोस्टरों से गायब करके और आयोजन से दूर करके, सबसे अधिक सवाल भावेशजी पर ही उठ रहे है। वैसे भावेशजी से पहले यह आरोप जिला पंचायत अध्यक्ष संजय चौधरी पर भी लग चुका है। एहसान फरामोशी का खेल बस्ती वाले अनेक बार देख भी चुके है। वैसे संजय चौधरी और भावेशजी ने समाज को एक बहुत अच्छा संदेश नहीं दिया हैं। यह भी कहा जा रहा है, कि अगर संजय चौधरी और भावेशजी जैसे सभी हो जाए तो कोई किसी की मदद ही नहीं करेगा। आज यह बात मिनी मैराथन के बाद फिर दोहराई जा रही है, और कहा जा रहा है, कि आज भावेशजी जो कुछ भी है, या फिर सफल आयोजन करने में सफल रहें, तो इसके पीछे उनकी मेहनत और पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी का एहसान/मदद छिपा हुआ है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर खूब कमेंट हो रहे हैं, और कहा जा रहा है, कि भावेशजी को इस तरह पूर्व सांसद को नहीं चिढ़ाना चाहिए, और न ही पोस्टरों से ही गायब करना चाहिए। अगर यह भूल है, तो ठीक हैं, लेकिन अगर कहीं राजनीति और साजिश है, तो गलत है।  कौन नहीं जानता कि आज जिस स्थान पर भावेशजी खड़े हैं, उसमंे पूर्व सांसद और अन्य का  कितना योगदान है।

बहरहाल, हम आप लोगों को मैराथन के बाद सोशल मीडिया पर किए गऐ कमेंट को पढ़ाते है। चित्रसेन चर्तुेवेदी का कहना है, कि ‘यह सिर्फ रुपया कमाने का जरिया बना रखा है, जिसे खेल के बारे में कोई जानकारी न हो और जो खुद फिट न हो वह दूसरों को फिट करने चला, सिर्फ सत्ता का लाभ लेकर रुपया कमा रहा है’। आलोक चौरसिया कहते हैं, कि ‘पूर्व सांसद एवं असम के प्रभारी हरीश द्विवेदीजी के प्रयास से मिनी मैराथन के कार्यक्रम का आगाज हुआ, अपार सफलता मिली, लेकिन....’? ग्राम प्रधान संगठन कहता हैं, कि ‘पूर्व को ही गायब कर दिए भावेजी...इन्होंने साबित कर दिया कि बस्ती में कोई भी आयोजन माननीयजी की उपस्थित के बिना भी सफल हो सकता है’। बृजेश उपाध्याय सवाल करते हैं, कि ‘पूर्व सांसदजी नहीं रहे गए क्या भैया’। अखिलेश शुक्ल मंटू कहते हैं, कि ‘यशस्वी गायब हैं, या नजरअंदाज किए गए, इन्हें नजरअंदाज करके कुछ प्राप्त होने वाला, भविष्य में इसका परिणाम राजनीतिक हित में शुभ नहीं होगा, भाजपा में रहकर यशस्वी के विरोधी विपक्षी हो जाएगें’। इजी. सिद्धार्थ मिश्र लिखते हैं, कि ‘यह पोस्टर चिढ़ाने के लिए बनाया गया, जिले के दो बार के पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, और तो और वर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष को ही गायब कर दिया गया’। वैभव यादव सवाल करते हैं, कि ‘पूर्व होने के बाद इतनी कम वैल्यू हो जाती है क्या? पड़ोस के जिले के पूर्व और वर्तमान है, मगर जिले के पूर्व कहां, वर्तमान का तो कोई महत्व ही नहीं’। प्रदीप तिवारी का कहना है, कि ‘भाजपा की ऐसी तैसी कर रहे लोग’। अनूप श्रीवास्तव कहते हैं, कि ‘भाजपा के सारे नेता हैं, लेकिन योगी और मोदीजी नहीं दिख रहें’। अमरदीप लिखते हैं, कि ‘भईया क्या कहिएगा अभी भी ना समझे माननीय लोग तो ही अच्छे, एक टाइम था कि....आगे आप समझदार है, देखा गया अपनी आंखों से’। विपिन राजपूत कहते हैं, कि ‘बस्ती मिनी मैराथन किसी पार्टी का कार्यक्रम नहीं बल्कि बस्ती के होनहार प्रतिभा को निखारने का एक मंच है, जिसका राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए, अगर लोगों को मंच पर आकर अपनी राजनीति की ताकत दिखाने का इतना ही शोक हैं, तो एक बार रैली कोई बस्ती के स्टेडिएम में करके और भर कर दिखाए..’। अमर दीप लिखते हैं, कि ‘जान तो पूरा जिला और संगठन रहा है,, आपने कुछ लोगों को धोखा दिया, जिसको अपना बनाया, वह भी आप जैसा हो गया, बात कड़ुवी जरुर है’। चंद्रमणि पांडेय कहते हैं, कि ‘तना कितना भी मजबूत हो, टहनियों के बिना वजूद की कल्पना मिथ्या’। रंजीत सिंह लिखते हैं, कि ‘भावेश पांडेय एवं उनकी टीम के द्वारा शानदार आयोजन कर सरायनीय कार्य किया’। संतोष जायसवाल कहते हैं, कि ‘खेल को खेल की भावना से देखना चाहिए, ना कि राजनीति की नजर से, कम से कम कुछ तो हो रहा’। विवेक ओझा कहते हैं, कि ‘जीत टाइम्स तो बढ़-चढ़ के बता रहा रहें, क्यों कि मैं भी वहां मौजूद था, कौने दुख तो न है, भैया माननीय जी का’। पत्रकार अनूप मिश्र कहते हैं, कि ‘असल मसला यहां पर रिष्तेदारी का है। राजनीति का चस्का है, और दाउ भैया को बुला नहीं सकते, जिनकी बदौलत पहचान बनी, वही गायब तो लोकल पालिटिक्स के बिना सफल आयोजन हो तो कैसे, यशंकात सिंह को छोड़कर भाजपा का कोई भी प्रमुख, नगर पंचायत अध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष, सपा सांसद, सपा विधायक इस बार भी नहीं आए, ऐसे बैर से क्या मिला..,न सत्ता मिली और न राम, जय सियाराम’। यह कमेंट उन लोगों के लिए एक सबक हैं, तो जो लोग एहसान का बदला एहसान फरामोशी से देते हैं, या फिर देने की मंषा रखते है। मीडिया बार-बार कह रही है, और चेता भी रही हैं, कि कोई पूर्व सांसद को कमजोर समझने की गलती न करें।

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