जेडीई कार्यालय में 2.78 करोड़ का हुआ बंदरबांट
- Posted By: Tejyug News LIVE
- राज्य
- Updated: 23 August, 2025 20:51
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जेडीई कार्यालय में 2.78 करोड़ का हुआ बंदरबांट
-एक करोड़ जेडीई ले गए एक करोड़ कंपनी ने लिया और 78 लाख आडिट बाबू ने खाया
-जिले के 278 सहायता प्राप्त माध्यमिक विधालय में आउट सोर्सिंग के जरिए हुई चपरासी की नियुक्ति में हुआ बड़ा खेल, एक-एक चपरासी से एक-एक लाख लिया गया, इसके अतिरिक्त 50-50 हजार प्रबंधकों के द्वारा ज्वाइन कराने के नाम पर लिया गया
-धन की उगाही आउट सोर्सिगं के पटल सहायक आलोक कुमार दूबे के माध्यम से हुई, इसकी शिकायत राम सुमेर यादव और भाजपा किसान मोर्चा के क्षेत्रीय महामंत्री रामानंद उर्फ नन्हें महानिदेशक माध्यमिक, निदेशक माध्यमिक और प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा से एक साल पहले कर चुके
-जांच उप निरीक्षक संस्कृत पाठशालाएं सत्येंद्र कुमार पांडेय को बनाया गया, लेकिन इन्होंने जांच करने के बजाए बाबू को बचाने के लिए लीपापोती कर दिया, जांच अधिकारी पर भी बखरा लेने का आरोप लग रहा
-दोनों शिकायतकर्त्ताओं की ओर से एक नहीं दो नहीं बल्कि चार-पांच शपथ पत्र दिए गए, लेकिन अभी तक न तो जांच पूरी की गई और न कोई कार्रवाई ही हुआ, चूंकि इस मामले में पूरा जेडीई कार्यालय फंस रहा है, इस लिए कोई जांच नहीं कर रहा, अब बाबू को बचाने में पूरा विभाग लगा हुआ
-चूंकि विज्ञापन और टेंडर जेडीई कार्यालय से निकला, कंपनी का चयन भी जेडीई के द्वारा किया गया, इस लिए जेडीई पर भी सवाल उठ रहें, आठ हजार मानदेय वाले चपरासी की नियुक्ति पाने के लिए एक-एक लाभार्थी को मानदेय मिलने से पहले 14 माह का मानदेय एडवांस में मंडलीय आडिट इकाई के कनिष्ठ लिपिक और स्कूलों के प्रबंधकों को देना पड़ा
-बिना एक रुपये का वित्तीय घोटाला किए 2.78 करोड़ जेडीई, कंपनी और बाबू के जेबों में चला गया, यह ऐसा घोटाला है, जो साबित ही नहीं हो सकता, सिर्फ घोटाले का आरोप ही लग सकता, कोई कार्रवाई भी नहीं हो सकती
बस्ती। कुछ घोटाले ऐसे होतें है, जिसकी चाहे जितना भी और चाहें जहां शिकायत कर लो लेकिन न तो जांच होती है, और न आरोप ही साबित हो पाता है, और न घोटालेबाजों के खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं होती, क्यों कि कार्रवाई और आरोप उन्हीं घोटालों के शिकायतों के मामले में होती है, जिसमें वित्तीय घोटाला होता, कहने का मतलब सरकार भी उसी मामलों में हस्तक्षेप और जांच कराने में दिलचस्पी लेती है, जिन मामलों में सरकारी धन की गड़बड़ी हुई रहती। ठीक इसी तरह का मामला जेडीई कार्यालय का सामने आया। भले ही चाहें यहां पर जिले के 278 सहायता प्राप्त माध्यमिक विधालय में आउट सोर्सिंग के जरिए हुई चपरासी की नियुक्ति में 2.78 करोड़ का बंदरबांट जेडीई, कंपनी और पटल बाबू ने मिलकर किया हो, लेकिन यह कभी भी साबित नहीं हो पाएगा कि इसमें सरकारी धन का नुकसान हुआ। यही कारण है, कि इस मामलें में षशिकायतें तो बहुत हुई पांच-पांच शपथ पत्रों के साथ हुई, लेकिन साल भर हो गए न तो जांच हुई और न किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई ही हुई। जांच के नाम पर भले ही जांच अधिकारी भी इस बहती गंगा में हाथ धो लिए हों, लेकिन उनका भी कुछ नहीं होगा। सभी को मालूम हैं, कि आउट सोर्सिगं एक कमाई का बहुत बड़ा जरिया बन चुका है। यह भी सही है, कि जेडीई कार्यालय में 2023-24 में हुए 278 चपरासियों की नियुक्ति में दो करोड़ 78 लाख का बंदरबांट हुआ और यह बंदरबांट सिर्फ तीन लोगों के बीच हुआ, पहला जेडीए, दूसरा सेवा प्रदाता और तीसरा आउट सोर्सिगं वाला पटल सहायक यानि आलोक कुमार दूबे। जेडीई साहब तो एक करोड़ लेकर चले गए, कंपनी भी एक करोड़ लेकर चली गई, और पटल सहायक 78 लाख लेकर मौज कर रहें है। जांच अधिकारी इस लिए एक साल तक जांच लटकाए हुएं हैं, क्यों कि उन्हें भी बखरा मिल गया होगा। ध्यान देने वाली बात हैं, यह हैं, कि यह शिकायतकर्त्ताओं का सिर्फ आरोप भर है। आरोपियों को तब तक नहीं दोषी माना जा सकता है, जब तक वह जांच में दोशी न साबित हो जाएं। जाहिर सी बात कि जिस मामले में जेडीई और पटल सहायक फंस रहे हो, और जिसकी जांच जेडीई के अधीनस्थ करेगें क्या वह जांच कभी पूरी होगी और अगर पूरी हो भी गई तो क्या जांच अधिकारी जेडीई और बाबू के खिलाफ लिख पाएगें? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जिसका जबाव षिकायतकर्त्ताओं को शायद कभी न मिले। जांच तो सीओ सदर को भी करनी है। धन की उगाही आउट सोर्सिगं के पटल सहायक आलोक कुमार दूबे के माध्यम से होने की शिकायत राम सुमेर यादव और भाजपा किसान मोर्चा के क्षेत्रीय महामंत्री रामानंद उर्फ नन्हें महानिदेषक माध्यमिक, निदेशक माध्यमिक और प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा से एक साल पहले कर चुके है।
सबसे पहले हम आपको राम सुमेर यादव के उस शिकायत की ओर ले चलते हैं, जो 12 जुलाई 24 को जेडीई से किया गया। कहा गया कि उसके पुत्र की नियुक्ति चपरासी के पद पर कराने के लिए आलोक कुमार दूबे ने एक लाख ले लिया। तीन माह तक दौड़ाते रहे, न तो यह नियुक्ति करवा पाए और न मेरा पैसा ही वापस कर रहे है। कहा कि मेरे द्वारा आदर्ष इंटर कालेज सल्टौआ के संबध में बराबर आरटीआई के तहत जानकारी मांगी जा रही थी, तब श्री दूबे ने कहा कि आप जानकारी मत मांगो हम आपके पुत्र की नौकरी चपरासी पद पर करवा देगें, इसके लिए एक लाख देना होगा। यह शिकायत शपथ-पत्र के साथ में करते हुए पैसा वापस दिलाने और अनुषासनिक कार्रवाई करने की मांग की गई है। 28 जुलाई 24 को शपथ-पत्र के साथ कमिष्नर को लिखा और इसमें भी श्री दूबे पर एक लाख लेने का आरोप लगाते हुए पैसा वापस दिलाने और कार्रवाई करने की मांग की गई।
भाजपा किसान मोर्चा के क्षेत्रीय महामंत्री रामानंद उर्फ नन्हें ने 22 जुलाई 24 को महानिदेशक माध्यमिक, निदेशक माध्यमिक और प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा को लिखे पत्र में कहा कि आलोक कुमार दूबे मंडलीय आडिट इकाई कार्यालय जेडीई कार्यालय में 2019 से कार्यरत है। इनके द्वारा आडिट का कोई भी कार्य नहीं किया जाता। अवैध रुप से जेडीई कार्यालय का सारा कामकाज देखते है। जब कि कार्यालय में इनसे चार वरिष्ठ सहायक है। कहा गया कि इन्होंने आउट सोर्सिंग के जरिए हुई चपरासी की नियुक्ति में भारी धन की उगाही की गई है। जांच अधिकारी/उपनिरीक्षक संस्कृत पाठशालाएं को लिखे पत्र में इन्होंने कहा कि आप इनकी जांच न करके इन्हें बचाने के लिए तरह-तरह से प्रपंच रचे जा रहे है। इन सबके बावजूद भी अगर जांच और कार्रवाई नहीं होती तो आप समझ सकते हैं, घोटालेबाजों की पहुंच कहां-कहां तक रहती है। जिस जेडीई कार्यालय पर घोटाले का आरोप लग रहा है, अगर उससे कोई शिकायत करता है, तो क्या जेडीई इसकी निष्पक्ष जांच कर पाएगें?

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