मनरेगा में भाड़े के नाम पर जिले भर में मची लूट
- Posted By: Tejyug News LIVE
- क्राइम
- Updated: 26 April, 2025 21:46
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मनरेगा में भाड़े के नाम पर जिले भर में मची लूट
-मनरेगा और पंचायत की गाइड लाइन में भाड़ा देने का कहीं कोई जिक्र नहीं
-अल्पकालीन निविदा में ही रेट के साथ में भाड़ा भी जुड़ा
-जब हम सामग्री बस्ती में खरीद रहे हैं, तो हम भाड़ा क्यों मुंबई का देगें?
-आखिर एक लाख 76 हजार भाड़े का किसकी जेब में गया और क्यों गया
-क्या मनरेगा कार्यक्रम अधिकारी को यह नहीं मालूम कि टेंडर में भाड़ा जुड़ा हुआ
बस्ती। जब मनरेगा और राज्य एवं 15वें वित्त आयोग में ग्राम पंचायतों को सामग्रियों की आपूर्ति पर भाड़ा देने का कोई प्राविधान ही नहीं है, तो किस नियम के तहत दस-दस हजार की सामग्री पर डेढ़-डेढ़ लाख से अधिक का भाड़े का भुगतान मनरेगा में मनरेगा कार्यक्रम अधिकारी कर रहे है। शुक्रवार को डीएम से लेकर विकास भवन तक यह चर्चा होती रही है, कि आखिर कोई बीडीओ कैसे दो किमी, से मंगाई गई दस हजार की सामग्री पर एक लाख 76 हजार भाड़ा दे सकता है? और भाड़े की इतनी बड़ी रकम किन-किन के जेबों में गई। सरकार ने क्या आपूर्तिकर्त्ता को मालामाल करने के लिए भाड़ा देने का प्राविधान किया है। ग्राम पंचायतें जब भी अल्पकालीन निविदा आमंत्रित करती है, तो उसमें रेट के साथ भाड़ा भी जुड़ा रहता है। अनेक ग्राम प्रधानों ने बताया कि मनरेगा और पंचायत में भाड़े का भुगतान करने का कोई प्राविधान नहीं है। कहते हैं, कि अगर कोई बीडीओ मनरेगा और सचिव ग्राम निधि में भाड़े का भुगतान करते हैं, तो वह गलत है। कहने का मतलब अगर कोई बीडीओ/पीओ मनरेगा में सामग्री की आपूर्ति के नाम पर भाड़ा का भुगतान करते है, तो इसका मतलब उन्हें मनरेगा गाइड लाइन की जानकारी ही नहीं है, क्यों कि मनरेगा के नवीनतम गाइड लाइन में भाड़े का भुगतान करने का कोई प्राविधान नहीं है। अब सवाल उठ रहा है, कि क्यों बीडीओ लाखों रुपया भाड़े का भुगतान कर रही है, और सरकार क्यों अपना नुकसान करेगी? यहां तक कि इस्टीमेट में भी सब शामिल रहता है। उसके बाद भी अगर कोई बीडीओ यह लिखकर देते हैं, कि भाड़े के भुगतान में कोई अनियमितता नहीं हुई तो इसे क्या माना जाए? यह जांच का विषय अवष्य हो सकता है, और इसकी जांच भी होनी चाहिए, क्यों कि यह किसे के गले नहीं उतर रहा है, कि चार किमी, की दूरी का भाड़ा कैसे दस हजार की सामग्री पर एक लाख 76 हजार हो सकता हैं, जबकि भाड़ा देने का कोई प्राविधान ही नहीं है। अगर कोई बीडीओ यह लिखकर देते हैं, कि हमने तो सामग्री के उत्पादन स्थल से परियोजना स्थल तक का भाड़ा दिया तो यह किसी के भी समझ में नहीं आएगा, क्यों कि सामान की आपूर्ति तो बस्ती से की गई, मुंबई से तो की नहीं गई। मान लीजिए कि सीमेंट का उत्पादन चुनार में होता है, तो क्या हम चुनार से बस्ती तक भाड़ा देगें? जबकि सीमेंट बस्ती के किसी आपूर्तिकर्त्ता ने आपूर्ति किया। सीमेंट चुनार के किसी आपूर्तिकर्त्ता के द्वारा आपूर्ति किया गया होता तो भी बात समझ में आती, लेकिन जब हमने चुनार यानि उत्पादन स्थल से खरीदा ही नहीं तो क्यों और कैसे हम भाड़ा चुनार का देगें। अगर भाड़े का भुगतान चुनार के किसी आपूर्तिकर्त्ता के द्वारा किया जाता तो भी बात समझ में आती, लेकिन यहां पर तो हम साउंघाट, रामनगर, रुधौली और सल्टौआ क्षेत्र के किसी बिल्डिगं मैटेरिएल के द्वारा आपूर्ति किया गया। जब इसकी जानकारी डीएम को दी गई तो वह भी हैरान रह गए, डीसी मनरेगा कार्यालय के लोग भी हैरान रह गए। हर कोई कह रहा है, कि यह कैसे हो सकता है? इस कैसे का जबाव तो जांच के दौरान बीडीओ साहब लोग ही दे पाएगें। वैसे डीएम ने रुधौली के शिकायतकर्त्ता असलम अली की शिकायत पर तीन अधिकारियों की जांच टीम बनाई।
सामग्री खरीदा जमदाशाही में भाड़ा दिया दुबई का
विकास खंड साउंघाट के बीडीओ/पीओ ने मनरेगा में जमदाशाही में किए गए सामग्री की आपूर्ति का भाड़ा अमेरिका का दिया, यानि 24696 के सामग्री की आपूर्ति पर एक लाख 90 हजार का भुगतान भाड़े के रुप में किया। भाड़े का भुगतान बिल संख्या 574 के जरिए 11 फरवरी 24 को किया। इसी ग्राम पंचायत में 60 हजार के सामान की आपूर्ति पर किराया 64050 रुपया दिया। विकास खंड सल्टौआ के ग्राम पंचायत अमरौली सुमाली में 54 हजार के सामग्री की आपूर्ति हुई, और भाड़े का भुगतान एक लाख 32 हजार 433 रुपया किया। 20 फरवरी 23 को बिल संख्या 55 के जरिए भुगतान हुआ। इसी ग्राम पंचायत में 37 हजार के सामग्री की आपूर्ति हुई, लेकिन भाड़े का भुगतान 47719 हुआ। नौ मई 23 को बिल संख्या 81 के जरिए भुगतान हुआ। विकास खंड रुधौली के ग्राम पंचायत बांसखोर कला में बिल संख्या 101 के जरिए 13 जनवरी 23 को 34 हजार के सामग्री की आपूर्ति पर एक लाख 19 हजार 800 का भुगतान हुआ। इसी ब्लॉक के ग्राम पंचायत चंद्रभानपुर में 34 हजार के सामग्री की आपूर्ति हुई, और भाड़े का भुगतान 30 हजार किया गया। पचारी खुर्द में आठ हजार के सामग्री की आपूर्ति पर दस हजार का भुगतान भाड़े के रुप में किया गया। साउंघाट के गंधरिया फैज में 30 हजार की सामग्री पर दिया एक लाख 76 हजार भाड़ा। रुधौली के खंभा में दो हजार पर 8400 का भाड़ा दिया गया। सल्टौआ के सिसवा बरुवार में दस हजार की सामग्री पर 66000 का भाड़ा। यह तो एक बानगी है, पूरे जिले का यही हाल रहा, इसी लिए जिला मनरेगा में भ्रष्टाचार के मामले में नंबर वन हुआ। साढ़े चार अरब से अधिक इस वित्तीय साल खर्च हो गए, लेकिन 1185 ग्राम पंचायतों में से एक भी ग्राम पंचायत माडल नहीं बनी।
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