अध्यक्षजी कहां से सदस्यों को 15-15 लाख का बखरा देगें?

अध्यक्षजी कहां से सदस्यों को 15-15 लाख का बखरा देगें?

अध्यक्षजी कहां से सदस्यों को 15-15 लाख का बखरा देगें?

-15 लाख छोड़िए अगर पांच लाख भी सदस्यों के हाथ में जाजे-जाते आ जाए तो यह अध्यक्ष की मेहरबानी होगी

-अगर अध्यक्ष और एएमए अपने हिस्से के बजट के कमीशन को भी सदस्यों को दे दे तो भी पांच-पांच का बखरा नहीं मिलेगा

-75-75 लाख का काम या 15 लाख बखरा देने की जो लड़ाई सदस्य गिल्लम चौधरी की अगुवाई में लड़ रहें, वह सपना ही रह जाएगा, 50-50 लाख के काम के बदले दस-दस लाख भी नहीं मिलेगा

-एक सदस्यों के हिस्से में लगभग 35-35 लाख का काम आ रहा, ऐसे में अध्यक्ष कहां से 50 या 75 लाख का काम देगें

-राज्यांश और केंद्राश मिलाकर जिला पंचायत को कुल लगभग 27 करोड़ का ग्रांट मिलना है, इसमें पांच करोड़ वेतन का, चार करोड़ जीएसटी और लगभग एक करोड़ लेबर सेस और इंकम टैक्स में चला जाएगा

-बचा कुल 17 करोड़ एएमए भी कम से कम दो करोड़ का काम लेगें, बचा 15 करोड़, अगर अध्यक्ष भी दो एक करोड़ का काम ले लेगें ही, अगर अध्यक्ष ने अपने काम का हिस्सा छोड़ भी दिया तो बचा कुल 15 करोड़

-सदस्यों को भले ही चाहें पांच लाख न भी मिले, लेकिन अध्यक्ष को बखरा के रुप में अवष्य लगभग चार करोड़ मिलेगा

बस्ती। जिला पंचायत अध्यक्ष को कुर्सी से गिराने के लिए जिन शर्तो पर पिछले चार सालों से अधिक समय से सौदेबाजी हो रही हैं, अब उसकी सफलता पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। सच्चाई यह है, कि अध्यक्ष चाहकर भी सदस्यों की मंषा को पूरा नहीं कर सकते हैं, क्यों कि उनके पास इतना ग्रांट ही नहीं बचेगा जिससे प्रत्येक सदस्यों को 75-75 लाख का काम या फिर 15-15 लाख नकद का बखरा दें सकंे। हकीकत यह है, कि अगर सदस्यों को पांच-पांच लाख का बखरा भी मिल जाए तो वह अपने आप को खुशकिस्मत समझें। अब अध्यक्षजी होटल और जमीन-मकान बेचकर तो सदस्यों को 15-15 लाख पाने के सपने को तो पूरा नहीं कर सकते। जो अध्यक्ष सदस्यों को दिए गए हजार-पांच हजार का हिसाब रखता हो, वह अपनी अचल संपत्ति को बेचकर कुर्सी थोड़े बचाएगा। यहां पर हम आपको, सच बताने वाला आकड़ा बताने जा रहें है। कार्यकाल के अंतिम साल में जिला पंचायत को राज्याषं ऑैर क्रेद्रांष का लगभग 27 करोड़ का ग्रांट मिलना है। पिछले साल यह ग्रांट दिसंबर माह में मिला था। अब हम आपको 27 करोड़ के खर्च का हिसाब बताते हैं, उसके बाद सदस्यों को यह बात समझ में आ जाएगी, कि उनकी अगुवाई करने वाला उन्हें धोखें में रख रहा है। 27 करोड़ में से पांच करोड़ कर्मियों के वेतन का निकल जाएगा, बचा 22 करोड़, लगभग चार करोड़ जीएसटी चला जाएगा, बचा 18 करोड़, लगभग एक करोड़ लेबर सेस और आईटी में चला जाएगा, बचा 17 करोड़, दो करोड़ एएमए अपना हिस्सा लें लेगें, बचा 15 करोड़, अगर अध्यक्ष ने भी एक-दो करोड़ एएमए की तरह ले लिया तो बचा 14 करोड़, मान लीजिए कि अध्यक्ष ने अपना कस्सिे का नहीं लिया, तब बचा 15 करोड़, अगर हम इस 15 करोड़ को 42 जिला पंचायत सदस्यों के बीच बांट दें तो एक-एक सदस्य के हिस्से में लगभग 35-35 लाख का प्रस्ताव आता है। अगर यह रकम 50 लाख का होता तो प्रत्येक सदस्यों को बखरे के दस-दस लाख मिलता। 75-75 लाख का प्रस्ताव होता तो 15-15 लाख प्रत्येक सदस्यों को मिलता।  इसी 15-15 लाख को लेकर सदस्य बस्ती से लेकर लखनउ और कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। असल में लड़ाई बैठक को जीरो करने की कम बल्कि इसी आड़ में 15-15 लाख बखरा लेने की अधिक हो रही है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि संजय चौधरी कहां से और कैसे सदस्यों की मंषा को पूरा करेगें। इन्हें सदस्यों से इतना भी मोह नहीं कि अपनी जेब से एक-दो लाख प्रत्येक सदस्यों को दे सकें, जिस अध्यक्ष की अध्यक्ष की कुर्सी नहीं बल्कि गांधीजी को नोट प्यारा हो, वह कैसे दरियादिली दिखा सकता है।

अब हम आपको 15 करोड़ में से अध्यक्ष को कितना बखरा मिलेगा के बारे में बताने जा रहे है। 20 फीसद बखरा के हिसाब से तीन करोड़ और 15 करोड़ के भुगतान पर छह फीसद के दर से 90 लाख, इस तरह लगभग चार करोड़ अध्यक्ष को जाते-जाते उस कुर्सी की बदौलत मिलेगा, जिसे यह कंलकित करके जाएगे। इसी कुर्सी ने इन्हें जिले के प्रथम नागरिक की हैसियत से हर बैठकों में मुख्य अतिथि के बगल में बैठने का अधिकार दिया, उसी कुर्सी का इन्होंने इतना अपमान किया, कि कोई सोच भी नहीं सकता। रही बात सदस्यों की तो अगर यह लोग सही और ईमानदार होते तो संजय चौधरी कुर्सी पर इतने दिन तक नहीं बैठ पाते। बहरहाल, इन्हें अभी जनता और मीडिया को कुर्सी से उतरने के बाद अनेक सवालों का जबाव देना हैं। गिल्लम चौधरी एंड पार्टी को भी जिला पंचायत के भ्रष्टाचार को लेकर जबाव देना होगा। यह भी बताना होगा कि जिला पंचायत को भ्रष्टाचार की आग में किसने झांेका और क्यों झोंका? अपने राजनीति की महत्वकाक्षां को पूरा करने के लिए कोई जिला पंचायत सदस्य इस हद तक गिर सकता है, यह भी जिले के लोगों ने देखा। रही बात जिला पंचायत सदस्यों की तो वैसे भी अधिकांष लोगों के राजनीति का सफर जिला पंचायत में ही समाप्त हो जाता है। सदस्यों की तो छोड़िए, अनेक ऐसे अध्यक्ष रहे, जिनका नाम और चेहरा भी लोग भी भूल गए।

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